Home Isolation Study : घर पर कोरोना को हरा रहे हैं तो डबल खुशी और सिंगल टेंशन, यहां जानिए क्यों


नई दिल्ली. देश में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर (Corona Second Wave India) खत्म होगी अभी तक इसका कोई सटीक जवाब नहीं मिल सका है. आईआईटी (IIT) के गणितीय मॉडल के हिसाब से इसका पीक 14 से 18 मई के बीच बताया गया था. हांलाकि उसके पहले भी आए ऐसे कुछ अनुमान गलत साबित हो चुके हैं. पिछले साल वायरस नया था और तैयारी का वक्त कम था इसके बावजूद लोग कह रहे हैं कि 2020 में कोरोना ने इतना हाहाकार नहीं मचाया था. वहीं दूसरी लहर में तो पूरे देश से ऐसी तस्वीरें आईं जिनमें दिखा मौत का मातम शायद पहले किसी ने न देखा होगा.

होम आइसोलेशन बना वरदान

महामारी की शुरुआत से ही देश में बेड और अन्य मेडिकल सुविधाओं की कमी को दूर करने के लिए युद्द स्तर पर काम हुआ. रेलवे के खाली डिब्बों में अस्थाई अस्पताल बनाने जैसी खबरें आईं. शादी समारोह वाले हॉल और होटलों में लोगों को क्वारंटीन या फिर इलाज के लिए ले जाना पड़ा. इसके बावजूद अभी तक हालात पूरी तरह सामान्य नहीं हुए हैं.

ऐसे में बिना लक्षण वाले या हल्के लक्षण वाले मरीजों को होम आइसोलेशन में इलाज की सुविधा देकर अस्पतालों पर पड़े बोझ को कम करने की कोशिश हुई. इस होम आइसोलेशन में सैकड़ों लोग घर पर ही मेडिकल सुविधाएं स्थापित कर इलाज करा रहे हैं. ये एक तरह का वरदान ही साबित हुआ.

कम होगा साइड इफेक्ट का खतरा

तो ऐसे में होम आइसोलेशन में कोरोना को मात दे रहे लोगों के लिए खुशखबरी है. इसे आप डबल खुशखबरी भी कह सकते हैं. कैसे आइये बताते हैं. होम आइसोलेशन में एक तो लोग अस्पतालों के झंझट, वहां के तनाव और चुनौती भरे माहौल से दूर होने के साथ-साथ ज्यादा खर्चे करने से भी बच रहे हैं.

ऐसे लोगों में साइड इफेक्ट के खतरे कम होते हैं. एक शोध में दावा किया गया है कि कोरोना संक्रमण का घर पर रहकर इलाज कराने वाले मरीजों में गंभीर दीर्घकालिक दुष्प्रभाव वाले जोखिम का खतरा कम रहता है.

द लैंसेट इंफेक्शियस डिजीज जर्नल में प्रकाशित लेख के मुताबिक, घर पर इलाज करा रहे कोविड-19 रोगियों में गंभीर दीर्घकालिक प्रभावों का कम जोखिम होता है. हालांकि, डॉक्टर को ऐसे में घर पर भर्ती मरीज के पास अधिक बार जाना पड़ता है. अध्ययन में पाया गया है कि सार्स-सीओवी-2 संक्रमण के बाद अस्पताल में भर्ती की आवश्यकता वाली गंभीर तीव्र जटिलताओं का पूर्ण जोखिम कम है. हालांकि, स्टडी में पाया गया है कि ठीक होने के बाद किसी अन्य वजह से सामान्य चिकित्सकों से परामर्श और अस्पताल में बार-बार डॉक्टर को दिखाने के लिए जाने की वजह से कोरोना के फिर से संक्रमित होने का खतरा हो सकता है.

ये टेंशन बरकरार

स्टडी के अनुसार, भले ही अस्पताल में भर्ती ना होने वाले मरीजों को आगे चलकर कोई गंभीर खतरा नहीं होता है लेकिन इनमें कुछ दिनों के बाद थ्रोम्बोएम्बोलिज्म की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है. कोरोना के कई मरीज ठीक होने के दो हफ्ते से लेकर छह महीने के बाद तक ब्रोन्कोडायलेटर थेरेपी की जरूरत से लेकर डिस्पनिया तक की शिकायत लेकर वापस अस्पताल आ रहे हैं. यानी ये साफ है कि घर पर ठीक हुए मरीजों को आगे चलकर कोई गंभीर खतरा न हो लेकिन बार-बार डॉक्टर के पास जाने की जरूरत ये बताती है कि संक्रमण शरीर में कोई लक्षण छोड़ गया है.

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