स्वतंत्रता दिवस : अनुशासनबद्ध स्वतंत्रता से समाज में व्यवस्था, शान्ति और समरसता पैदा होती है – योग गुरु महेश अग्रवाल
भोपाल. आदर्श योग आध्यात्मिक केंद्र स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल ने बताया कि स्वतंत्रता दिवस योग साधकों द्वारा पुरे उत्साह से सामूहिक योग अभ्यास के साथ मनाया गया | इस अवसर पर प्रमुख रुप से डॉ नरेन्द्र भार्गव मधुमेह विषेशज्ञ, नीलम वसानिया वरिष्ठ शिक्षक, शिप्रा जैन, श्रीमती सरिता, अशोक देशमुख, राजेंद्र गुमडेलवार, प्राचीन विश्वनाथ मंदिर कालियासोत डेम के अध्यक्ष महंत सुनीलसिंह, बृजेश चतुर्वेदी सहित योग साधक उपस्थित रहें |
योग गुरु अग्रवाल ने इस अवसर पर बताया आत्मज्ञान के लिए आंतरिक अनुशासन की आवश्यकता तो है ही, मानवता की रक्षा के लिए भी उसका महत्त्व है। हमारे परिवार, राष्ट्र, सरकार और मानवता की रक्षा अनुशासन को बनाये रखकर ही हो सकती है। महत्तर उपलब्धि, उच्चतर आत्म-प्रकाश और बाह्य-आभ्यंतर सुखों के लिए आंतरिक अनुशासन जरूरी है। योग इसी अनुशासन की बात करता है। अनुशासनबद्ध स्वतंत्रता से समाज में व्यवस्था, शान्ति और समरसता पैदा होती है। योग गुरु अग्रवाल ने कर्मयोग – एक गतिशील पद्धति के बारे में बताया कि सबसे महत्त्वपूर्ण चीज है हमारा दैनिक जीवन, हमारा मत, हमारी महत्त्वाकांक्षायें, परिवार, सफलता, विफलता। होश संभालने से मृत्युपर्यन्त हमारे समक्ष बहुत सारी समस्याएँ आती हैं और कभी-कभी इनके कारण हम अपना संतुलन नहीं रख पाते, हम आत्म-नियंत्रण खो बैठते हैं। इस हालत में हम आसामान्य हो जाते हैं, हमारा मन व्याधिग्रस्त हो जाता है। इस अवस्था के लिए एक योग है कर्मयोग। यह एक गत्यात्मक विधि है जो मानव को दैनंदिन अनुभूतियों से जोड़ती है।
कर्मयोग द्वारा सम्पूर्ण अनुभूतियों से हमारा संबंध जुड़ता है । यह विज्ञान हमारे दैनिक कार्यों – प्रातः काल से रात्रि तक के कार्यों से संबंधित है। वैकल्पिक लाभ के लिए किए गए कार्यों से भी इसका संबंध है। कर्मयोग के दर्शन के अन्तर्गत हमारे सभी कार्य व्यापार, स्वार्थ परमार्थ से जुड़ी सभी गतिविधियाँ आ जाती हैं। कर्मयोग में जीवन जीने का एक मार्ग प्राप्त होता है। भगवद् गीता के सिवा और कोई शास्त्रीय ग्रंथ कर्मयोग पर नहीं है। यह लघुग्रंथ है और इसका विषय सरल है। इसमें अट्ठारह अध्याय हैं और प्रत्येक अध्याय में किसी एक योग की चर्चा है। प्रथम अध्याय विषाद-योग है। हठ-योग, लय-योग, क्रिया-योग, नाद-योग, सिद्ध योग और कर्म-योग सुना है, पर कभी विषाद-योग सुनने में आया है?
जब हम हताश और निराश हो जाते हैं, जब जीवन में हर कुछ छिन्न-भिन्न हो जाता है, तब हमारे मन की क्या दशा होती है? जब हर चीज हमारे विपरीत हो जाती है, जब हमारे ऊपर द्वन्द्व हावी हो जाता है, जब हम अनिश्चय के भंवर में फँस जाते हैं, जब हम किंकर्त्तव्यविमूढ़ हो जाते हैं, तो हमारे मन की क्या दशा होती है? मन की उसी दशा को विषाद योग कहते हैं। तो, हम इस निराशा और हताशा से कैसे उबरें? जब घबराहट के कारण हमारा शरीर काँपने लगता है, हमारी हथेली से पसीना छूटने लगता है, गला अवरुद्ध हो जाता है, जब निषेधात्मक तत्त्व हमारे मन के ऊपर मंडराने लगते हैं, जब हमें लगता है कि मृत्यु सामने खड़ी है, हमारी पत्नी हमसे बिछुड़ रही है, हमारी सम्पत्ति नष्ट-भ्रष्ट होने जा रही है, तब कौन-सा योग उपयोगी होगा? जब हमें लगे कि सर्वत्र अपशकुन हो रहा है, हमारे चारों ओर अंधकार छा गया है, तब कौन-सा योग हमारे लिए उपयोगी होगा? भगवत् गीता का कथन है कि इस मनोदशा में कर्म योग ही एक मात्र सहारा है। कर्म योग द्वारा मन की हताशा, दुराशा, अवसाद, कुण्ठा का निराकरण हो सकता है। कर्म योग है क्या? हम प्रतिदिन काम करते हैं। चिकित्सक, व्यवसायी, कामगार, गृहस्थ सभी काम करते हैं, पर यह कर्मयोग नहीं है, कर्म है। कर्म योग योग का एक प्रकार है जिसके पीछे एक दर्शन है। यह वह योग है जिसमें हम जीवन के हर कार्य-व्यापार में संलग्न होते हैं, पर सिर्फ कार्य करते हैं, उसमें लिप्त नहीं होते। यह बड़ी सूक्ष्म बात है- कार्य व्यापार में भाग लेते हुए भी उससे निर्लिप्त रहना।