सदियों पुराना है भारत-उज्बेकिस्तान संबंध : प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल

वर्धा. महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के अनुवाद अध्ययन विभाग द्वारा उज्बेकिस्तान के प्रतिभागियों के लिए संचालित ‘अल्पावधि हिंदी-अंग्रेजी-हिंदी भाषांतरण कार्यक्रम’ (1 अगस्त से 3 सितंबर) के संपूर्ति समारोह (3 सितंबर) में अध्यक्षीय उद्बोधन के दौरान विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने कहा कि भारत-उज्बेकिस्तान का संबंध नया नहीं है, बल्कि यह सदियों पुराना है और भाषाओं व संस्कृतियों के अध्ययन के माध्यम से इस संबंध को जाना-समझा और मजबूत किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि भारत विश्व का एक मात्र ऐसा देश है जहाँ आज भी पुरानी फारसी; जिसे जिंद आवेस्ता की भाषा से भी जाना जाता है, पढ़ाई जाती है। वैदिक संस्कृत और पुरानी फारसी के तुलनात्मक अध्ययन से इस संबंध को और करीब से समझा जा सकता है। भारत सरकार की वर्तमान नीतियाँ भी संबंध को और बल प्रदान करती हैं। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि भारत सरकार की वर्तमान नीतियों के कारण अब यह संभव हो पाया है कि हम सीधे अल्पावधि के कार्यक्रमों के अतिरिक्त समझौता ज्ञापन के द्वारा उपाधि कार्यक्रमों को भी संचालित कर सकते हैं। अनुवाद, तुलनात्मक अध्ययन और भाषा के अध्यापकों व शिक्षार्थियों को इस दिशा में विचार करने व कार्य करने की आवश्यकता है।

उज्बेकिस्तान के डॉ. सिराजुद्दीन नुर्मातोव ने अपना अनुभव साझा करते हुए कहा कि हम सभी लोग भाषांतरण कार्यक्रम से काफी लाभान्वित हुए हैं और भविष्य में इस प्रकार के अध्ययन कार्यक्रमों को संचालित करने हेतु इस विश्वविद्यालय और ताशकंद राजकीय प्राच्यविद्या विश्वविद्यालय, उज्बेकिस्तान के साथ समझौता ज्ञापन की आवश्यकता अनुभव करते हैं। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि हम सभी ने हिंदी की आजीवन सेवा का व्रत लिया है और अपनी आखिरी साँस तक हम हिंदी की सेवा करते रहेंगे। कार्यक्रम की प्रस्तावना और स्वागत वक्तव्य में प्रतिकुलपति प्रो. हनुमानप्रसाद शुक्ल ने कहा कि यह भाषांतरण कार्यक्रम सितंबर में होने वाले संघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। उन्होंने आगे बाते कि यहाँ भाषांतरण की प्रक्रिया को सीखने और अभ्यास करने आए सभी उज्बेकी प्रशिक्षु आगामी शिखर सम्मेलन में दुभाषिए के रूप में कार्य करेंगे।

भाषांतरण कार्यक्रम के समापन समारोह में उज्बेकिस्तान से प्रतिभागी के रूप में उज्बेकिस्तान से पधारे श्रीमती मकतुबा मुर्तजाखोजाएवा, श्रीमती निलुफर खोजाएवा, श्रीमती मामुरा सुलैमानोवा, श्रीमती निलुफर नोरोवा, डॉ. सिराजुद्दीन नुर्मातोव एवं श्री काबिलजान खाजियेव, विश्वविद्यालय से कुलसचिव श्री कादर नवाज खान, साहित्य विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो. अवधेश कुमार, विधि विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो. चतुर्भुज नाथ तिवारी, शिक्षा विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो. गोपाल कृष्ण ठाकुर, आवासीय लेखक डॉ. रामजी तिवारी, अनुवाद अध्ययन विभाग से डॉ. रामप्रकाश यादव, डॉ. श्रीनिकेत कुमार मिश्र, सुश्री ऋचा कुशवाहा, डॉ. मीरा निचले, डॉ. जीतेन्द्र, और प्रवासन एवं डायस्पोरा अध्ययन विभाग से डॉ. राजीव रंजन राय उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन डॉ. श्रीनिकेत कुमार मिश्र ने किया तथा अनुवाद एवं निर्वचन विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो. कृष्ण कुमार सिंह ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

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