September 29, 2024

हार्ट अटैक के समय तुरंत लाभ अपानवायु मुद्रा, मृत-संजीवनी मुद्रा, कार्डियक मुद्रा, सोर्बिट्रेट मुद्रा : योग गुरु

भोपाल. आदर्श योग आध्यात्मिक योग केंद्र  स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल कई वर्षो से निःशुल्क योग प्रशिक्षण के द्वारा लोगों को स्वस्थ जीवन जीने की कला सीखा रहें है वर्तमान में भी ऑनलाइन माध्यम से यह क्रम अनवरत चल रहा है |योग प्रशिक्षण के दौरान साधकों को हाथों की अंगुलीओं के पोरो को आपस में मिलाने से बनने वाली हस्त मुद्राओं के लगाने से होने वाले लाभ के बारे में भी बताया जाता हैं |

योग गुरु अग्रवाल ने बताया कि हमारा शरीर पाँच तत्वों से बना हैं अग्नि, वायु, आकाश, पृथ्वी एवं जल | शरीर में इनका एक निश्चित अनुपात होता है, लेकिन शरीर में जब इन तत्वों में असंतुलन पैदा होता है तो रोग होने लगते है, यदि हम इन तत्वों का संतुलन करना सीख जायें तो बीमार हो ही नहीं सकते एवं यदि हो भी जायें तो इन तत्वों को संतुलित करके आरोग्य पुनः प्राप्त कर सकते हैं | *हमारे हाथ की अंगुलीयां, अंगूठा – अग्नि, तर्जनी – वायु, मध्यमा – आकाश, अनामिका – पृथ्वी, एवं कनिष्ठिका जल तत्व   पांचो तत्वों का प्रतिनिधित्व करती हैं |*
ऋषि-मुनियों ने हजारों साल पहले इसकी खोज कर ली थी एवं इसका प्रयोग करके ही वे लोग स्वस्थ रहते थे ।* क्योंकि ये शरीर में चैतन्य को अभिव्यक्ति देने वाली कुंजियाँ हैं। शरीर का निर्माण करने वाले पाँचों तत्व अंगुलियों के नीचे स्थित (जड़ों में) पाँच चक्रों से जुड़े होते हैं। यह एक-एक चक्र कई-कई नाड़ियों में जीवन ऊर्जा के प्रवाह को संचालित करता है। विभिन्न मुद्राओं के प्रयोग से हम इन चक्रों को जाग्रत कर पुराने एवं असाध्य रोगों को भी दूर कर आजीवन स्वस्थ रह सकते हैं। अग्नि-आँख को, वायु-त्वचा को, आकाश – कान को, पृथ्वी-गंध को एवं जल-तत्व श्वास को नियंत्रित करता है। ज्योतिष (हस्तरेखा) के अनुसार अँगूठा-मंगल, तर्जनी बृहस्पति, मध्यमा शनि, अनामिका- सूर्य, तथा कनिष्ठिका चन्द्रमा को दर्शाती है। इन पाँचों अंगुलियों से हजारों मुद्राएं बनाई जा सकती हैं, परन्तु उल्लिखित मुद्राओं का ही हमें प्रयोग करना चाहिए।
अपानवायु मुद्रा का दूसरा नाम मृत-संजीवनी मुद्रा है इसका सीधा सम्बन्ध  ह्रदय से होता है। अपान वायु मुद्रा दो मुद्राओ से मिलकर बनी है एक है वायु मुद्रा जो पेट की बढ़ी हुई गैस को कम करने में हमारी सहायता करती है। और दूसरी है अपान मुद्रा जो की हमारे ह्रदय को सही रखती है। और यह मुद्रा पाचन शक्ति को भी बढाती है। इसलिए इसे ह्रदय मुद्रा के नाम से भी जाना जाता है। अचानक से आये हार्ट अटैक के समय इस मुद्रा को करने से रोगी की तुरंत लाभ होता है।
इस मुद्रा में दो मुद्राएं एक साथ लगाई जाती हैं – वायु मुद्रा और अपान मुद्रा। इसीलिए इसका यौगिक नाम है – अपान वायु मुद्रा। यह हार्ट अटैक में अत्यन्त लाभकारी होने के कारण इसे मृत संजीवनी मुद्रा की संज्ञा भी दी गई है। यदि अपान वायु मुद्रा ही कहें तो इस मुद्रा की विधि स्मरण करना आसन हो जाता है – वायु मुद्रा + अपान मुद्रा।
वायु मुद्रा पीड़ानाशक है –  शरीर में कहीं भी पीड़ा हो , गैस की समस्या हो, वायु मुद्रा उसे ठीक करती है। अपान मुद्रा पाचन शक्ति एवं ह्रदय को मजबूत करती है।  ह्रदय की पीड़ा के लिए तो यह शक्तिशाली मुद्रा है।
*अपान वायु मुद्रा करने के विधि :-*
सबसे पहले आप जमीन पर कोई चटाई बिछाकर उस पर पद्मासन या सिद्धासन में बैठ जाएँ , ध्यान रहे की आपकी रीढ़ की हड्डी सीधी हो। अपने दोनों हाथों को अपने घुटनों पर रख लें और हथेलियाँ आकाश की तरफ होनी चाहिये।अब अपने हाथ की तर्जनी अंगुली को मोड़कर अंगूठे की जड़ में लगा दें तथा मध्यमा व अनामिका अंगुली के प्रथम पोर को अंगूठे के प्रथम पोर से स्पर्श कर हल्का दबाएँ और कनिष्ठिका अंगुली को सीधी रहने दें। अपना ध्यान साँसों पर लगाकर अभ्यास करना चाहिए। अभ्यास के दौरान सांसों को सामान्य रखना है। इस अवस्था में कम से कम 48 मिनट तक रहना चाहिये।
अपान वायु मुद्रा करने का समय व अवधि 
इसका अभ्यास हर रोज़ करेंगे तो आपको अच्छे परिणाम मिलेंगे। सुबह के समय और शाम के समय यह मुद्रा का अभ्यास करना अधिक फलदायी होता हैं। मुद्रा का अभ्यास प्रातः, दोपहर एवं सायंकाल को 16-16 मिनट के लिए किया जा सकता है।
अपान वायु मुद्रा से होने वाले लाभ
1. अपान वायु मुद्रा का ह्रदय पर विशेष प्रभाव पड़ता है। हार्ट अटैक रोकने में एवं हार्ट अटैक हो जाने पर भी यह मुद्रा तत्काल लाभ पहुँचती है। यह मुद्रा सोरबीटेट की गोली का कार्य करती है – दो तीन सेकंड के भीतर ही इस मुद्रा का लाभ आरम्भ हो जाता है। रोगी को चमत्कारिक राहत मिलती है। बढ़ी हुई वायु के कारण ही ह्रदय की रक्तवाहिनियाँ शुष्क होने लगती हैं – उनमें सिकुडन पैदा होने लगती है। ह्रदय में रक्त संचार कम हो जाता है वायु मुद्रा से ह्रदय की नालिकाओं की सिकुडन दूर होती है। और ह्रदय में रक्त संचार बढ़ जाता है।
2. ह्रदय शूल दूर होता है। ह्रदय के सभी रोग दूर होते हैं| उच्च रक्तचाप और निम्न रक्तचाप दोनों ही ठीक होते हैं। दिल की धड़कन बढ़ जाये या धीमी हो जाये – दोनों ही स्थितियों में दिल की धड़कन सामान्य करती है।घबराहट व , स्नायु तंत्र के सभी रोगों में लाभकारी। फेफड़ों को स्वस्थ बनाती है अस्थमा में लाभकारी है।
3. वातरोगों में तुरंत लाभ – पेट की वायु , गैस , पेट दर्द , गुदा रोग , एसिडिटी , गैस से ह्रदय की जलन सभी ठीक होते हैं।
4. सिर दर्द , आधे सिर का दर्द ,वास्तव में पेट की खराबी से ही होता है। सिर  दर्द में इस मुद्रा का चमत्कारी लाभ होता है। अनिंद्रा अथवा अधिक परिश्रम से होने वाले रोग ठीक होते हैं।
5. घुटने के दर्द में आराम – सीढियां चढ़ने से पहले 5 से 7 मिनट अपान वायु मुद्रा लगाने से सीढियां चढ़ते हुए न साँस फूलेगा न ही घुटनों में दर्द होगा। हिचकी आनी बंद हो जाती है । दांत दर्द में भी लाभदायक |
6. आँखों का अकारण झपकना भी रुकता है। हमारी संस्कृति में स्त्रियों की दायीं आंख व पुरुषों की बायीं आँख का फड़कना अशुभ माना जाता है अपानवायु मुद्रा से लाभ मिलता है।
7. वात-पित्त-कफ तीनों दोषों को दूर करती है। रक्तसंचार प्रणाली , पाचन प्रणाली सभी को ठीक करती है।
8.शरीर एवं मन के सभी नकारात्मक दबाव दूर करती है। इस मुद्रा के लगातार अभ्यास से सभी प्रकार के ह्रदय रोग दूर होते हैं परन्तु मुद्रा के साथ अपने भोजन , दिनचर्या ,व्यायाम आदि पर ध्यान देना भी आवश्यक है। ह्रदय रोग में यह मुद्रा रामबाण है। एक प्रभावशाली इंजेक्शन से भी अधिक लाभदायक है।
9. भोजन करते समय यदि भोजन का कोई कण सांस की नली में चला जाता है तो सांस उखड़ने लगती है। एक-दो मिनट में ही सांस रुक कर मृत्यु हो सकती है । ऐसी आपात स्थिति में यह मुद्रा अत्यन्त कारगर है , तुरंत आराम मिलता हैं |
10. ह्रदयघात होने पर 70 प्रतिशत लोग अस्पताल पहुंचने से पहले ही मर जाते हैं – ऐसा सुप्रसिद्ध ह्रदय रोग विशेषज्ञ  कहते हैं, ह्रदय घात होने पर तुरंत मृतसंजीवनी मुद्रा लगा देने से मृत्यु से बचा जा सकता है।
अपान वायु मुद्रा के दौरान सावधानी – यह अपान वायु मुद्रा खाली पेट करनी चाहिए। इस मुद्रा को करते समय अपना ध्यान भटकना नहीं चाहिए। अपान वायु मुद्रा एक शक्तिशाली मुद्रा है इसमें एक साथ तीन तत्वों का मिलन अग्नि तत्व से होता है इसलिए इसे निश्चित समय से अधिक बिलकुल भी नही करना चाहिए और इस मुद्रा को दिन में दो बार 16-16 मिनट तक ही लगाएं।

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