June 9, 2021
व्यक्तित्व के संतुलित विकास के लिए समन्वित योगाभ्यास आवश्यक है : योग गुरु महेश अग्रवाल
भोपाल. आदर्श योग आध्यात्मिक केंद्र स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल कई वर्षो से निःशुल्क योग प्रशिक्षण के द्वारा लोगों को स्वस्थ जीवन जीने की कला सीखा रहें है वर्तमान में भी ऑनलाइन माध्यम से यह क्रम अनवरत चल रहा है | योग प्रशिक्षण के दौरान केंद्र पर योग साधकों को वही योग सिखाया या बताया जाता है जो उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी हो।
योग गुरु अग्रवाल ने कहा कि हमें योगासनों के प्रभाव एवं उद्देश्य के बारे में पता होना चाहिये | योगासनों का उद्देश्य मात्र व्यायाम नहीं है, मत्स्यासन का अर्थ मछली कसरत नहीं है, मयूरासन का अभिप्राय मोर कसरत नहीं है, शलभासन का अर्थ टिड्डी व्यायाम नहीं है, टिड्डी के बैठने का ढंग है।आसन हम व्यायाम की तरह नहीं करते। हम अपने अंगों का संचालन करते हैं, किन्तु मांस-पेशियों अथवा जोड़ों से उनका सीधा संबंध नहीं रहता। उनका संबंध शरीर के उन केन्द्रों से रहता है जहाँ से ऊर्जा का अंगोपांग में वितरण होता है। इसलिए योगासनों का उद्देश्य उन केन्द्र बिन्दुओं से ऊर्जा को मुक्त करना है जहाँ उसके प्रवाह में अवरोध पैदा हो गया है। जहाँ कहीं भी ऊर्जा प्रवाह में गतिरोध उत्पन्न हो गया है, योगासनों से उसे दूर किया जा सकता है। योग कक्षाओं में अभ्यासियों को बताया जाता है कि योगासन से आप बेहतर महसूस करेंगे। घर जाकर वे योग करते हैं और बेहतर महसूस करते हैं। वे क्यों अच्छा महसूस करते हैं? इसलिए कि योगासनों के फलस्वरूप ऊर्जा प्रवाह जो कहीं अवरुद्ध हो गया था, चलने लगता है। योगासनों से संबंधित इन महत्त्वपूर्ण बातों को समझना जरूरी है।
एक समन्वित क्रिया – हम लोग कर्मयोग, भक्तियोग, ज्ञानयोग, राजयोग, मंत्रयोग, हठयोग, और कतिपय अन्य योगों की चर्चा करते हैं। अधिक लाभ के लिए इन योगाभ्यासों का संयोजन करना चाहिए। सिर्फ एक प्रकार का योग अधिक लाभप्रद नहीं होगा। यदि हम लोग सिर्फ हठयोग पर जोर दें और अन्य प्रकार के योगों की उपेक्षा करें तो व्यक्तित्व का एकांगी विकास होगा, समन्वित विकास नहीं। आप सिर्फ शरीर, भावना, बुद्धि या आत्मा नहीं हैं, इन सभी तत्त्वों के समन्वित रूप से आपका व्यक्तित्व निर्मित है। अतः जब हम लोग व्यक्तित्व की चर्चा करते हैं तो हम सभी चारों पक्षों की बात करते हैं। अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए आपको कर्मयोग, राजयोग, भक्तियोग और ज्ञानयोग समन्वित रूप से करना होगा। कुछ लोग सिर्फ ज्ञान योग की बातें करते हैं, क्योंकि यह आरामदायक है। बस आपको चिन्तन-मनन करना है और कुछ करना नहीं है। आपको प्राणायाम नहीं करना है। आपको सबेरे जगना नहीं है। आपको अपने शरीर, मन आदि के संबंध में कोई अनुशासन का बंधन नहीं स्वीकारता है। परिणाम क्या होता है? आपका सिर्फ बौद्धिक विकास होगा, जो एक पक्षीय विकास है।
मानव गतिशीलता, भावना, आत्मा और बुद्धि का समन्वित रूप है। इन सभी चारों पक्षों का साथ-साथ विकास होना चाहिए। जीवन में समन्वित व्यक्तित्व का ही महत्त्व है। समन्वित व्यक्तित्व में मानसिक और भावनात्मक व्याधियाँ कम होती हैं। समन्वित व्यक्तित्व में घबराहट और अधीरता विरल होती है।अभी क्या हो रहा है? चाहे पूरब हो या पश्चिम, हम लोगों ने व्यक्तित्व के एक पक्ष को ही सजाने-संवारने पर अधिक-से-अधिक जोर दिया है। फलतः व्यक्तित्व के अन्य पक्ष उपेक्षित होते गये हैं। हम सिर्फ प्रोटीन ही लेते जायें और कार्बोहाईड्रेट बिल्कुल ही न लें तो क्या होगा? यह शरीर का एकांगी विकास होगा। ऐसा भी हो सकता है कि आप सिर्फ कार्बोहाइड्रेट ही लें, प्रोटीन बिल्कुल नहीं लें, तब भी शरीर का एकांगी विकास होगा। जैसे शरीर के सर्वांगीण विकास के लिए विटामिन और अन्य पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार आपके व्यक्तित्व को भी विटामिन और अन्य पोषक तत्त्वों की आवश्यकता है। अतः व्यक्तित्व के संतुलित विकास के लिए समन्वित योगाभ्यास आवश्यक है।
सही अनुपात – योग में भी उचित अनुपात होता है,अनुपात इस प्रकार होना चाहिए – 70% कर्म योग, 20% राज योग, हठ योग कुण्डलिनी योग आदि, 5% ज्ञान योग और भक्ति योग 5%। यदि आप 70% ध्यानयोग, कुण्डलिनीयोग, क्रियायोग, तन्त्रयोग करने की चेष्टा करेंगे तो पागलखाने जाने की नौबत आ सकती है। अथवा 70% ज्ञान योग करेंगे तो महाज्ञानी हो जायेंगे, किन्तु व्यक्तित्व के अन्य क्षेत्रों में महाबौने हो जायेंगे। अथवा यदि 70% भक्तियोग करेंगे तो आप यह उद्घोष करने लगेंगे, “भगवान् यह माईक आपकी कृपा से चल रहा है, यह फूल भगवत् कृपा से लाल है। आज भगवत् कृपा से वर्षा नहीं हो रही है।” आप हर बात में भगवान् को ला खड़ा करेंगे, यहाँ तक कि अपने शौचालय में भी। अतिभक्ति का भी होना ठीक नहीं। उससे असंतुलन पैदा होता है। ज्ञानयोग और राजयोग का आधिक्य भी व्यक्तित्व को असंतुलित बनाता है। आप स्थूल शरीर में हैं, अत: आपके अभ्यासों में कर्म योग की मात्रा अधिक होनी चाहिए।