अंतर्राष्ट्रीय खुशी दिवस – व्यक्ति अपना जीवन खुशहाल तभी बना सकता है जब उसके प्रत्येक कार्य में पवित्रता और सात्त्विकता हो : योग गुरु

भोपाल. आदर्श योग आध्यात्मिक केन्द्र स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के  संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल ने बताया कि 20 मार्च को पुरे विश्व में खुशी दिवस मनाया जाता है। इस दिन को मनाने मुख्य उद्देश्य लोगों में जागरूकता पैदा करना है कि किसी व्यक्ति के जीवन में खुशी एक सबसे महत्वपूर्ण चीज है।इस वर्ष के अंतर्राष्ट्रीय खुशी दिवस की थीम ‘शांत रहो, समझदार रहो और दयालु रहो’ के रूप में निर्धारित की गई है। अपने जीवन में खुशी और संतुष्टि प्राप्त करने के लिए उनके लिए हर संभव स्थिति में शांत और शांत रहना महत्वपूर्ण है। कठिन परिस्थिति में बुद्धिमान रहने से व्यक्ति को स्थिति की बेहतर समझ मिलती है और उसे सही कदम उठाने में मदद मिलती है।

योग गुरु अग्रवाल ने कहा कि संसार में प्रत्येक प्राणी अपनी बुद्धि परिस्थिति और शक्ति के अनुसार आशा-आकांक्षा रखता है और इसी को अनुलक्ष्य बनाकर जीवन व्यतीत करता है। जीवन में कोई लक्ष्य नहीं है, यह मिथ्या है। जब तक इस शरीर में आशा है तब तक आशा और आकांक्षा का लक्ष्य है, परन्तु इस सत्य को कितने लोग आज जानते हैं? आज सांसारिक जीवन में संघर्ष और अशान्ति फैली हुई है। किसलिये? कारण यही है कि हम आनन्द और शान्तिदायक लक्ष्य से बहुत दूर हैं। आज भी पूर्व जन्मों के अनुसार पशु संस्कार हमारे मानस पटल से पूर्णरूपेण दूर नहीं हुए हैं। हमें उसे दूर करने का प्रयत्न करना चाहिये। यही जीवन का वेदान्त है। वेदान्त का श्रीगणेश भी यहीं से होता है। प्रत्येक व्यक्ति को विशाल दृष्टि एवं उदात्त भावना रखनी चाहिये।
आज विश्व में अशान्ति का तूफान मच रहा है। एक प्रान्त दूसरे प्रान्त पर अधिकार करने के लिये व्याकुल है। एक देश दूसरे देश को हड़पने के लिये कूद रहा है। एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र को खतम करने के लिये अवसर ढूँढ रहा है। बताओ क्या यही हृदय की विशालता और मन की उदारता है? क्या विश्व को आज ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता है जो समस्त संसार को अपने रंग में रंगना चाहे? आज इस धर्माचार की दुनिया को परवाह नहीं है जो जबर्दस्ती अपने मत एवं सिद्धान्तों को दूसरों से कबूल करवाता हो। अतः हमें योग द्वारा जीवन का परिमार्जन करना होगा, समाज और राष्ट्र की सूरत बदलनी होगी, तभी राष्ट्र परस्पर दृढ़ मैत्री में बँधेगे। राष्ट्र की आज की परिस्थिति के लिये वे ही व्यक्ति जवाबदेह हैं जो अपने हाथों से अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारते हैं। आज राष्ट्र को धार्मिक अनुशासन की आवश्यकता है।
योग इस शताब्दी के अंत से अगली शताब्दी के दौरान महान् शक्ति बनने जा रहा है, तथापि इसका मतलब यह नहीं है कि मनुष्य बीमार नहीं पड़ेगा या स्पर्धा नहीं होगी और हर कोई एक-दूसरे से प्रेम ही करने लगेगा। इसका अर्थ यह भी नहीं है कि दुनिया में घृणा नहीं रहेगी और हर आदमी सुखी हो जायेगा अथवा समस्याओं व रोगों से वह मुक्त ही हो जायेगा।
ऋषि-मुनियों के अनुसार यह बिल्कुल स्पष्ट है कि संसार त्रिगुणों की लीला-भूमि है, तीन गुणों का खेल मात्र है। ये तीन गुण हैं-तमस्, रजस और सत्त्व | अगर इन विभिन्न गुणों को एक साथ मिला दें, तो वे मानसिक स्तर पर लाखों पदार्थों की सृष्टि कर देते हैं। योग एक शक्तिशाली संस्कृति बने, लेकिन वे त्रिगुणात्मक पदार्थ विद्यमान रहेंगे, वे सदा एक से रहेंगे। संसार का वे स्वभाव ही विभिन्नता, विरोधाभास या विविधता का है। योग भी इस नियम के विपरीत नहीं जा सकता। समाज में परस्पर विरोधी धर्म और सम्प्रदाय रहेंगे ही। युद्ध भी होंगे, प्रेम भी होगा, घृणा भी रहेगी और जनसंहार भी होंगे। राम, कृष्ण, बुद्ध और ईसामसीह जैसे लोग भी समय-समय पर आते रहेंगे। इन सबसे परे तुम जा नहीं सकते, क्योंकि यह सृष्टि त्रिगुणों की लीला-स्थली है। तुम एक आदर्शवादी जीवन पद्धति, विश्व शान्ति या विश्व एकता का काल्पनिक मानसिक चित्र बना सकते हो, मगर यह होगा कैसे? यह संभव है ही नहीं। घास हमेशा रहेगी ही, कंटीली झाड़ियाँ होंगी ही, सर्प इत्यादि प्राणी भी होंगे। अति वृष्टि से बाढ़, अनावृष्टि से सूखा और अन्य संक्रामक से रोग होंगे ही, भले ही उच्च रक्तचाप, कैंसर और गठिया रोग समाप्त हो जायें। हाँ, एक बात याद रखना। योग की शक्ति से एक महान् परिवर्तन अवश्य आयेगा। योग मनुष्य की विचार प्रक्रिया को प्रकाश देगा और उसके विचारों और ज्ञान की गुणवत्ता को सुधारेगा। फलतः योग मनुष्य को उसकी समस्याओं की अनिवार्यता को समझने की शक्ति देगा और इसी की हम आशा कर रहे हैं।

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