अंतर्राष्ट्रीय न्याय दिवस-प्रमाणों के आधार पर किसी निर्णय पर पहुँचना ही न्याय है : योग गुरु महेश अग्रवाल

भोपाल. आदर्श योग आध्यात्मिक केंद्र  स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल ने बताया कि  न्यायशास्त्र के अध्ययन से पदार्थों का तत्वज्ञान होता है और उससे आत्मतत्व का साक्षात्कार होकर मोक्ष की प्राप्ति होती है। जिन पदार्थों के तत्त्वज्ञान से मोक्ष होता है उनकी संख्या इस शास्त्र में सोलह मानी गई है;सही न्याय के लिए जरुरी है उनके नाम ये हैं : प्रमाण, प्रमेय, संशय, प्रयोजन, दृष्टान्त, सिद्धान्त, अवयव, तर्क,निर्णय, वाद, जल्प,  वितण्डा, हेत्वाभास, छल, जाति और निग्रहस्थान. योग गुरु अग्रवाल ने बताया कि अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायालय (ICC) के काम को समर्थन और मान्यता देने के लिए 17 जुलाई को विश्व स्तर पर  न्याय दिवस मनाया जाता है। आज पुरे संसार में किसी भी विवादित बात का सही न्याय हो इसके लिए सभी को शारीरिक, मानसिक भावनात्मक स्वास्थ्य की जरुरत है उसके लिए योग प्राणायाम एवं ध्यान ही एक मात्र उपाय है उसमें से ध्यान का अभ्यास  अग्नि की तरह है, बुराइयां उसमें जलकर भस्म हो जाती हैं। ध्यान है धर्म और योग की आत्मा। ध्यानियों की कोई मृत्यु नहीं होती। लेकिन ध्यान से जो अलग है बुढ़ापे में उसे वह सारे भय सताते हैं, जो मृत्यु के भय से उपजते हैं। अंत काल में उसे अपना जीवन नष्ट ही जान पड़ता है। इसलिए ध्यान करना जरूरी है। ध्‍यान से ही हम अपने मूल स्वरूप या कहें कि स्वयं को प्राप्त कर सकते हैं अर्थात हम कहीं खो गए हैं। स्वयं को ढूंढने के लिए ध्यान ही एक मात्र विकल्प है। दुनिया को ध्यान की जरूरत है चाहे वह किसी भी देश या धर्म का व्यक्ति हो। ध्यान से ही व्यक्ति की मानसिक संवरचना में बदलाव हो सकता है। ध्यान से ही हिंसा और मूढ़ता का खात्मा हो सकता है। ध्यान के अभ्यास से जागरूकता बढ़ती है जागरूकता से हमें हमारी और लोगों की बुद्धिहिनता का पता चलने लगता है। ध्यानी व्यक्ति चुप इसलिए रहता है कि वह लोगों के भीतर झांककर देख लेता है कि इसके भीतर क्या चल रहा है और यह ऐसा व्यवहार क्यों कर रहा है। ध्यानी व्यक्ति यंत्रवत जीना छोड़ देता है। मौन कर देता है ध्यान : ध्यान बहुत शांति प्रदान करता है। ध्यानस्थ होंगे, तो ज्यादा बात करने और जोर से बोलने का मन ही नहीं करेगा। जिनके भीतर व्यर्थ के विचार हैं वे ज्यादा बात करते हैं। वे प्रवचनकार भी बन जाते हैं। यदि गौर से देखा जाए तो वे जिंदगीभर वही वहीं बातें करते रहते हैं जो अतीत में करते रहे हैं। भटके हुए मन के लोग जिंदगी भर व्यर्थ की बकवास करते रहते हैं जैसे आपने टीवी चैनलों पर बहस होते देखी होगी। समस्याओं का समाधान बहस में नहीं ध्यान में है। लोगों को ध्यान की शिक्षा दी जानी चाहिए। न्यायशास्त्र उच्चकोटि के संस्कृत साहित्य (और विशेषकर भारतीय दर्शन) का प्रवेशद्वार है, न्यायशास्त्र वस्तुतः बुद्धि को उन्नत , तीव्र और निर्मल बनाने वाला शास्त्र है। न्यायदर्शन में पदार्थों के तत्व ज्ञान से निःश्रेयस् की सिद्धि बतायी गयी है। न्याय दर्शन भारत के छः वैदिक दर्शनों में एक दर्शन है।जिसकी सहायता से किसी सिद्धान्त पर पहुँचा जा सके, उसे न्याय कहते हैं। प्रमाणों के आधार पर किसी निर्णय पर पहुँचना ही न्याय है। यह मुख्य रूप से  तर्कशास्त्र  और  ज्ञानमीमांसा है। इसे तर्कशास्त्र, प्रमाणशास्त्र, हेतुविद्या, वादविद्या तथा अन्वीक्षिकी भी कहा जाता है।

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