जनजाति नायकों के बलिदान को सामने लाना जरूरी : अनंत नायक
वर्धा. आज़ादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग, भारत सरकार एवं महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के संयुक्त तत्वावधान में ‘स्वतंत्रता संग्राम में जनजाति नायकों का योगदान’ विषय पर सोमवार, 5 सितंबर को आयोजित व्याख्यान में मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग, भारत सरकार, नई दिल्ली के सदस्य अनंत नायक ने कहा कि संविधान ने जनजाति समाज को अधिक अधिकार दिए हैं। इसके अनुरूप जनजाति के सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक विकास को सुनिश्चित किया जा सकता है। जनजाति समुदाय की अस्मिता, अस्तित्व और विकास के सूत्र पर राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग कार्य कर रहा है। हमें जनजाति समुदाय के प्रति अपनी मानसिकता बदलनी चाहिए। जनजाति समुदाय के इतिहास और नायकों के बलिदान को लेकर सच्चाई सामने लाने के लिए अनुसंधान की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि जनजाति समुदाय का मूल स्वभाव सामाजिक दायित्व को निभाना है। हमें जनजाति के परंपरागत ज्ञान को अनुसंधान के माध्यम से नई पीढ़ी के सामने लाना चाहिए। उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति और प्रधानमंत्री आवास जैसी योजना का लाभ जनजाति समुदाय को लेने का आह्वान किया।
अध्यक्षीय वक्तव्य में कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने कहा कि जनजाति समुदाय के बारे में अवधारणाएं गढ़ी गई कि स्वाभिमान के लिए लड़ने वाले अपराधी करार दिए गये। उन्होंने आजादी के 75 वर्ष में जनजाति के विकास की चर्चा करते हुए कहा कि जनजाति समाज के जागरण से भारत का विकास संभव है। उन्होंने जनजाति के पर्व और त्यौहारों की चर्चा करते हुए कहा कि जनजाति हमें सभ्यता दृष्टि दे सकती है। उन्होंने छात्र और शोधार्थियों से आह्वान किया कि जनजाति समुदाय की पारंपारिक पद्धतियां, ज्ञान और बलिदान को अपने शोध का विषय बनाना चाहिए। हमें स्वाभिमान की चिंता करने वाला समाज बनाना होगा। पूर्वजों के इतिहास को आधुनिक ज्ञान विज्ञान की मदद से अद्यतन करना होगा। उन्होंने विश्वास जताया कि इस आयोजन से विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों को जनजाति नायकों से प्रेरणा मिलेगी और अनुसंधान दृष्टि प्रशस्त होगी।
मध्यप्रदेश शासन में मुख्यमंत्री कार्यालय के उपसचिव लक्ष्मण राज सिंह मरकाम ने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम में सबसे अधिक जनजाति के लोग मारे गए। सन 1871 में जनगणना की शुरूआत इसलिए भी हुई ताकि अंग्रेज यह जान सकें कि किस क्षेत्र में कितने आदिवासी हैं और उसपर नियंत्रण कैसे किया जाये। उसी वर्ष से मार्शल लॉ लागू हुआ और कहा गया कि किसी के पास धनुषबाण दिखे तो उसे गोली मार दो। उन्होंने आगे कहा कि भगवान बिरसा मुंडा का कहना था कि हमारे देश में हमारा राज है। बिरसा मुंडा ने स्वधर्म से स्वराज का रास्ता बताया। उन्होंने कोमाराम भीम जैसे जननायक के शौर्य की चर्चा करते हुए ताना भगत, मुरिया विद्रोह, भगत आंदोलन, कोल विद्रोह, अहोम विद्रोह से लेकर, सिदो कान्हू के संघर्षों को उल्लेखित किया। जनजाति के लोगों से ‘राइट टू फाइट’ छीन लिया गया और तथाकथित लोगों द्वारा जनजातियों के उल्लेखनीय योगदान को इतिहास में नहीं उकेरा गया है।
प्रास्ताविक वक्तव्य में डॉ. सुनील कुमार ने कहा कि आदिवासियों के इतिहास को न लिखा जाना गलत है, इतिहास को गलत तरीके से प्रस्तुत किया जाना और भी अफसोसजनक है। आदिवासियों का जीवन जियो और जीने दो पर आधारित है। आदिवासी समाज लंबे समय गणतांत्रिक रहा है। संस्कृति विद्यापीठ के अधिष्ठाता एवं अध्यक्ष प्रो. एल. कारूण्यकरा ने स्वागत वक्तव्य दिया। कार्यक्रम के दौरान कुमिरम भूमिरौ गीत की प्रस्तुति की गई। कार्यक्रम का संचालन शिक्षा विद्यापीठ की सहायक प्रोफेसर डॉ. गौरी शर्मा ने किया तथा भाषा विद्यापीठ के सहायक प्रोफेसर डॉ. संदीप कुमार ने आभार ज्ञापित किया।
कार्यक्रम का प्रारंभ दीप दीपन एवं कुलगीत से तथा समापन राष्ट्रगान से किया गया। अतिथियों का स्वागत सूतमाला, अंगवस्त्र एवं विश्वविद्यालय का प्रतीक चिन्ह से किया गया। कार्यक्रम में वर्धा एवं नागपुर से पधारे गणमान्य अतिथि, अधिष्ठातागण, अध्यापक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी उपस्थित थे । इस अवसर पर कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल, मुख्य अतिथि अनंत नायक, लक्ष्मण राज सिंह मरकाम ने विश्वविद्यालय के अटल बिहारी वाजपेयी भवन में आयोजित भव्य प्रदर्शनी का अवलोकन कर सराहना की।