November 23, 2024

उस मुल्क में जिंदगी अब किसी जहन्नुम से कम नहींं : Afghan Refugee

File Photo

नई दिल्ली. अफगानिस्तान में तालिबानी युग की शुरुआत होने के बाद से ही वहां स्थिति भयावह बनी हुई है. आलम ये है कि वहां के रिहायशी इलाकों के रहने वाले हजारों-लाखों लोग अपना सबकुछ छोड़कर देश से निकलना चाहते हैं. इन दर्दनाक हालातों के बीच दिल्ली (Delhi) में रहने वाले अफगानी नागरिकों का उनके अपने मुल्क में रह रहे अपनों से कोई संपर्क नहीं हो पा रहा. इसके चलते उन्हे अपनों की चिंता सता रही. दिल्ली के अफगान शरणार्थी पल दर पल अपनों का हाल जानने के लिए बेसब्र हैं. वो हर सेकंड ये सोचकर चिंतित है कि वो अपनों को दोबारा देख भी पाएंगे या नहीं.

6 साल पहले दिल्ली आई थीं गीता

अफगानिस्तान के शहर मजारे शरीफ की गीता गफूरी 6 साल पहले दिल्ली आई. उस साल कुछ ऐसा खौफनाक हुआ, जिस कारण उन्हें अपना देश छोड़कर भारत में शरण लेनी पड़ी. दरअसल, साल 2015 में मजारे शरीफ में तालिबानी आतंकियों ने बम से हमला कर दिया था, जिसमें उन्होंने अपना घर और परिवार के सदस्य को खो दिया था. मगर भारत आने के बाद भी उनका ये खौफ कम नहीं हुआ. गीता बताती हैं कि वहां काम के लिए घर से निकलते वक्त ये पता नहीं होता था कि शाम तक घर वापस जिंदा लौटेंगे भी या नहीं. बचपन से लेकर साल 2015 तक वो कई बार तालिबानी आतंकी अत्याचारों की चश्मदीद रही हैं.

‘तालिबानियों का कोई भरोसा नहीं’

गीता के मुताबिक, तालिबानी आतंकियों ने लडकियों की जिंदगी नर्क बना दी है. पढ़ने की इजाजत नहीं, विधवा महिलाओं से जबरन शादी, नाबालिग लडकियों को अगवा कर निकाह करते हैं. बच्चों को आतंकी बनाने के लिए किसी भी घर में घुसकर उन्हें अगवा का लेना वहां आम बात है. ऐसे में जब अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे की खबर गीता को मिली तो गीता पूरी तरह से टूट गईं. वहां के हालातों के बारे में सोच-सोचकर गीता रोए जा रही हैं. बीते 3 दिनों से अच्छे से खाया पिया भी नहीं है. उनके मां-बाप जान बचाने के लिए भागकर काबुल पहुंचे हैं. वहां किसी अजनबी के घर उन्होंने रात बिताई. हालांकि गीता अपने मां बाप से पिछले कई दिनों से बात नहीं कर सकी हैं. मगर किसी के जरिए उन्हें जानकारी मिली कि मां-बाप अभी तक सुरक्षित हैं. गीता को अभी भी डर है. उनका कहना है कि तालिबानियों का कोई भरोसा नहीं, कब किसे मार दें. बस हम दुआ कर रहे हैं.

‘बच्चे और लड़कियों होती हैं निशाने पर’

वहीं, दिल्ली के कश्मीरी पार्क में आकर बसे अब्दुल मनान (19) पुराने फर्नीचर बेचने का काम करते हैं. वे 2015 में भारत आए थे. यहीं आकर उन्हें अपनी शिक्षा वापस शुरू की. इस वक्त वो लाजपत नगर के ही एक सरकारी स्कूल में 11वीं के छात्र हैं. अब्दुल मनान ने अफगानिस्तान में तालिबानी जुर्म की जो कहानी बताई वो वाकई खौफनाक है. मनान के मुताबिक, वे भारत इसलिए आए क्योकि वहां तालिबानी अत्याचार से वो परेशान हो गए थे. उन आतंकियों के निशाने पर खासकर बच्चे और लडकियां होती हैं. वो कभी नहीं चाहते कि बच्चे और लड़कियां पढ़ाई करें. घरों में जबरन घुसकर बच्चों को सौंपने को कहते हैं. तालिबानी आतंकी कहते हैं कि वो बच्चों को बन्दूक चलाना सिखाएंगे.

‘पाकिस्तान के कारण अफगान मुश्किल में’

अफगान शरणार्थी आतंक के सरपरस्त मुल्क पाकिस्तान (Pakistan) को भी जमकर कोस रहे हैं. उनके मुताबिक पाकिस्तानियों की वजह से अफगानी मुश्किल में हैं. इसके साथ ही उनका ये भी कहना है कि जो तालिबान की तारीफ करते हैं वो उनसे खौफ खाकर ऐसा करते हैं. दिल्ली के जंगपुरा इलाके में रहने वाले 16 साल के अफगानी रिफ्यूजी मतीन के परिवार के कई लोग अभी भी अफगानिस्तान में फंसे हुए हैं. मतीन का परिवार अपनो के लिए परेशान हैं. मतीन के मुताबिक, तालिबानी अत्याचार से परेशान होकर ही हम यहां आए. वहां लडकियों और महिलाओं की जिंदगी किसी जहन्नुम से कम नहीं है. हम यहां आकर खुश हैं मगर अपने छूटे हुए परिवार की चिंता भी सता रही है.

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