त्याग, तपस्या, समर्पण व सेवा की प्रतिमूर्ति थीं मम्मा : मंजू दीदी

बिलासपुर. टिकरापारा सेवाकेन्द्र में ब्रह्माकुमारीज़ की प्रथम मुख्य प्रशासिका मातेश्वरी जगदम्बा सरस्वती ‘मम्मा’ की 57वीं पुण्यतिथि मनाई गई । बिलासपुर टिकरापारा  जीवन में सुख और दुख कर्म के आधार से चलते हैं। वर्तमान में हम जो भी भोगना भोग रहे हैं चाहे दुख या सुख, सभी हमारे कर्मों का ही परिणाम हैं। वह कर्म इस जन्म के भी हो सकते हैं या पूर्व के जन्मों के भी। कर्म को किस्मत नहीं कहेंगे। कई सुख-दुख को किस्मत समझकर कर्म पर ध्यान नहीं देते और अपने दुखों के लिए भगवान को कोसते रहते हैं। इसलिए आम कहावत है कि जो करेगा सो पायेगा, जैसा कर्म वैसा फल। भगवान को दुःखहर्ता सुखकर्ता कहते हैं तो वे दुख कैसे दे सकते हैं। और इसलिए जीवन में दुख, रोग, शोक, अशान्ति आने पर ईश्वर को याद करते हैं।
 उक्त बातें ब्रह्माकुमारीज़ की प्रथम मुख्य प्रशासिका मातेश्वरी जगदम्बा सरस्वती की 57वीं पुण्यतिथि के अवसर पर सेवाकेन्द्र प्रभारी ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी जी ने मातेश्वरी जी के महावाक्य सुनाते हुए कही। आपने उनके जीवन चरित्र पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मातेश्वरी जी के वात्सल्य और मातृवत पालना के कारण सभी ब्रह्मावत्स उन्हें मम्मा कहकर पुकारते थे। मम्मा परमात्म महावाक्यों का दृढ़ता से पालन करती थीं। श्रीमत के अनुरूप चलने में कभी आलस्य को आने का स्थान नहीं दिया। उनका हां जी का पाठ पक्का था।मम्मा के मन में सबके प्रति इतनी शुभभावना रहती थी कि वे किसी के अवगुण को जानते हुए भी नफरत या घृणा का भाव न रखते हुए सदा कल्याण की ही भावना से शिक्षा व समझानी देती थीं। वे कभी भी एक बार की हुई गलती को दोहराती नहीं थी। सेवा की लगन, समर्पण भावना और योग तपस्या में गहन रूचि होने के कारण वो सबसे आगे रहीं। 24 जून 1965 को सम्पूर्ण स्वरूप को प्राप्त करने के उपरान्त अपने नश्वर शरीर का त्याग किया था। दीदी ने कहा कि आज इस आध्यात्मिक संगठन ने सारे संसार में अपनी एक अलग ही पहचान बनायी है। अंत में मातेश्वरी जी के निमित्त परमात्मा को भोग स्वीकार कराया गया। सभी बहनों व साधकों ने मम्मा के चित्र पर पुष्प अर्पित किये। दीदी ने सभी साधकों को मम्मा की शिक्षाओं को अमल में लाने व प्रतिदिन सत्संग करने के लिए संकल्प कराया। दीदी ने जानकारी दी कि कल 24 जून को मुख्यालय माउण्ट आबू की दिनचर्या के अनुसार सभी योग-साधना करेंगे।

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