बौद्धिक संपदा का प्रबंधन समय की आवश्यकता : डॉ. पंकज बोरकर

वर्धा. मनुष्य के मस्तिष्क से उपजी कल्‍पना से किया गया आविष्कार बौद्धिक संपदा है। बौद्धिक संपदा का प्रबंधन करना आज के समय की आवश्यकता है। यह विचार राजीव गांधी राष्‍ट्रीय बौद्धिक संपदा प्रबंधन संस्‍थान नागपुर के उप नियंत्रक डॉ. पंकज बोरकर ने व्यक्त किये। वे महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के आंतरिक गुणवत्ता सुनिश्‍चायन प्रकोष्‍ठ के बौद्धिक संपदा अधिकार प्रकोष्‍ठ एवं राजीव गांधी राष्‍ट्रीय बौद्धिक संपदा प्रबंधन संस्‍थान नागपुर के संयुक्‍त तत्‍वावधान में बौद्धिक संपदा अधिकार पर आयोजित ऑनलाइन कार्यशाला में संबोधित कर रहे थे। कार्यक्रम की अध्‍यक्षता विश्‍वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्‍ल ने की। कार्यशाला का आयोजन 27 जनवरी को किया गया।

डॉ. बोरकर ने बौद्धिक संपदा की पृष्‍ठभूमि और उसकी विस्‍तार से व्‍याख्‍या करते हुए कहा कि भारत सरकार के वाणिज्‍य एवं उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत राष्‍ट्रीय बौद्धिक संपदा जागरूकता मिशन की स्‍थापना की गयी है। इसके तहत व्‍यक्ति अपनी कल्‍पनाओं और सृजन का पेटेंट कर सकता है। आज कल इस क्षेत्र में रोज़गार की असीम संभावनाएं पैदा हुई है और इस क्षेत्र में विज्ञान विषय के स्‍नातकों की मांग काफी संख्‍या में बढ़ गयी है। उन्‍होंने कहा कि पेटेंट से संबंधित कार्यालय कोलकाता, दिल्‍ली, चेन्‍नई और मुंबई शहरों में स्‍थापित किये गये है जिसके माध्‍यम से हम अपने आविष्‍कार का पेटेंट करवा सकते है। पेटेंट से संबंधित पूरी जानकारी www.ipindia.gov.in से ली जा सकती है। इस वेबसाइट पर भविष्‍य में होने वाले आविष्‍कार की पूरी जानकारी मौजूद होती है और इसका प्रकाशन हर सप्‍ताह किया जाता है। पूरे विश्‍व में कौन-कौन से आविष्‍कार हुए है इसके बारे में भी विस्‍तार से देखा जा सकता है। डॉ. बोरकर ने पेटेंट फाइल करने से लेकर व्‍यक्ति के तमाम बौद्धिक अधिकारों की जानकारी प्रदान की। उन्‍होंने कहा कि शिक्षा संस्थानों में अनुसंधान और सृजनात्‍मकता को लेकर पेटेंट कराना आवश्‍यक कार्य हो गया है और इस दिशा में भारत सरकार पेटेंट की प्रक्रिया के लिए संस्‍थाओं को छूट भी देती है। इसके लिए शुल्‍क भी कम कर दिया गया है। इससे अब पेटेंट फाइल करना आसान और रस्‍ता हो गया है। उन्‍होंने कहा कि जितना बौद्धिक संपदा अधिकार का उपयोग होगा उतने ही उद्योग स्‍थापित होंगे और रोज़गार भी बढे़गा। उन्‍होंने कहा कि जो व्‍यक्ति आविष्‍कार करता है वह आर्थिक दृष्टि से सम्‍पन्‍न होगा और उसके जीवन में परिवर्तन आएगा। पुस्‍तक लिखना, गाना गाना, चित्र बनाना, फिल्‍म तैयार करना, वीडियो बनाना, ड्रेज डिजाइनिंग जैसे कार्य सृजनात्‍मकता या हमारी संपदा की श्रेणी में आते है और इसके लिए पेटेंट का संरक्षण देकर अपनी बौद्धिक संपदा का प्रबंधन किया जा सकता है। इससे अनुसंधान का दोहराव रोका जा सकता है। शिक्षा जगत के लिए पेटेंट अहम हो गया है और इससे किसी भी शिक्षा संस्‍थान की अकादमिक उंचाईयों का पता चलता है। उन्‍होंने ट्रेड मार्क, ब्रांड, स्‍वामित्‍वाधिकार और भौगोलिक विशेष (जीआई टैग) की चर्चा भी अपने व्‍याख्‍यान में की।

अध्‍यक्षीय उदबोधन में कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्‍ल ने कहा कि वर्तमान समय में पेटेंट एक आवश्‍यक कार्य हो गया है और विश्‍वविद्यालय इस दिशा में भरसक प्रयास कर रहा है। बौद्धिक संपदा अधिकार के अंतर्गत जिसमें नयापन है वह सबकुछ संरक्षित किया जा सकता है। उन्‍होंने कहा कि अकादमिक क्षेत्र में हो रहे अनुसंधान को संरक्षित करने की दिशा में जागरूकता बढ़ाने की आवश्‍यकता है। उन्‍होंने कहा कि विश्‍वविद्यालय में पेटेंट और स्‍वामित्‍वाधिकार को लेकर कार्य को गति दी जाएगी।

कार्यक्रम का स्‍वागत एवं प्रास्‍ताविकी आंतरिक गुणवत्ता सुनिश्‍चायन प्रकोष्‍ठ के निदेशक प्रतिकुलपति डॉ. चंद्रकांत रागीट ने की। उन्‍होंने कहा कि पेटेंट को लेकर अध्‍यापक और अध्‍येताओं में जागरूकता लाने की दिशा में इस कार्यशाला का आयोजन किया गया। आने वाले दिनों में दिन भर की कार्यशाला आयोजित कर इस अभियान को गति प्रदान की जाएगी।

कार्यक्रम का संचालन आंतरिक गुणवत्ता सुनिश्‍चायन प्रकोष्‍ठ के सह-निदेशक डॉ. शंभू जोशी और महात्‍मा गांधी फ्यूजी गुरुजी समाज कार्य अध्‍ययन केंद्र के सहायक प्रोफेसर डॉ. शिव सिंह बघेल ने किया तथा धन्‍यवाद आंतरिक गुणवत्ता सुनिश्‍चायन प्रकोष्‍ठ के सह-निदेशक अनिकेत आंबेकर ने ज्ञापित किया। प्रारंभ में मंगलाचरण संस्‍कृ‍त विभाग के विद्यार्थी गोपाल कुमार साहू एवं विमल कुमार मिश्र ने प्रस्‍तुत किया। विश्‍वविद्यालय के कुलगीत से कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। इस अवसर पर अध्‍यापक, शोधार्थी, विद्यार्थी बड़ी संख्‍या में जुड़े थे।

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