मेरिट की बात, कहीं कुछ स्टूडेंट्स और प्रतियोगी उम्मीदवारों के साथ अन्याय तो नहीं..! : विचारक हुलेश्वर जोशी
“सर्कस के शेर, हाथी, कुत्ते और अन्य जानवर सर्कस में अधिकतर एक्ट बेहतर कर सकते हैं। यदि अन्य स्वजातीय जानवरों के साथ इनकी एक मानक टेस्ट या परीक्षा ली जाये तो सर्कस के ये जानवर अन्य जानवरों से अच्छे या कहें तो अधिक अंक लाएंगे। ख्याल रखना इन नम्बर्स के आधार पर आप इन सर्कस वाले जानवरों को स्किल्ड समझ सकते हैं मगर इन्हे मेरिटधारी समझना आपकी गलती होगी।”
चलिए अब मनुष्यों के भी भ्रम को तोड़ते हुए मेरिट के बारे में कुछ बातें कर लेते हैं, क्योंकि एक वर्ग खुद को मेरिटधारी समझने की गलती कर रहा है और अपनी मानसिकता में गैर मेरिट लोगों को देश के उन्नति के लिए घातक प्रमाणित करने की कोशिशें कर रहे हैं।
What is this merit?
सबसे पहले हम “व्हाट इस मेरिट?” को ही जान लेते हैं : “मेरिट वह है मानक है जो किसी भी टेस्टिंग थ्योरी में सर्वाधिक अंक हासिल करने वालों को दी जाती है।” हालाँकि अब तक की थ्योरी के आधार पर यह उचित थ्योरी है मगर इसमें निहित अन्याय को हम अनदेखी कर जाते हैं। हम मेरिट सिस्टम की कमी क्या है इसे जानने और दूर करने की कोई प्रयास नहीं कर रहे हैं ये अत्यंत दुर्भाग्यजनक है।
आप कहेंगे, फिर कमी क्या है ?
मैं पुनः प्रश्न करूँगा क्या टेस्ट अथवा एग्जामिनेशन में शामिल समस्त प्रतिभागियों की स्टार्टिंग लाइन समानांतर थी?
आप कह सकते हैं “हाँ” क्योकि आपका दर्शन सिमित है।
मैं कहूंगा- नहीं, क्योंकि सभी प्रतिभागियों को उनके स्टार्टिंग ऑफ़ लाइफ से अवसर की समानता नहीं मिलती है।
आपको कोई ताज्जुब नहीं होगी कि मोटी फ़ीस वाली बड़ी स्कूलों, एक्सपर्ट्स कोचिंग, व्यक्तिगत ट्यूटर सहित घरेलु काम, पारिवारिक समस्याओं से मुक्त लोग ख़ुद को मेरिट वाले बताते हैं। जबकि यह जांचने की न्यायोचित तकनीक नहीं है; क्योंकि मेरिट और ग़ैरमेरिट का सवाल तब न्यायोचित होगा, जब सभी प्रतिभागियों की शिक्षा और जीवन में अवसर की समानता हो।
वे ग़ैरमेरिट हो ही नहीं सकते जो:
1- असुविधाओं से युक्त जीवन जीने को मजबूर हों।
2- जिन्हें अपनी स्किल्स बढ़ाने का अवसर न मिला हो।
3- जिन्हें अच्छी स्कूल, कोचिंग और निजी ट्यूटर न मिला हो।
4- जिनके पास अच्छे प्रकाशको की किताबें, गाइड, स्मार्टफोन, TV, AC, कूलर, बड़े बंगले न हों।
5- जिनके स्कूल जाने के लिए Ac वाहन न हो।
6- जिनके होमवर्क के लिये घर में सदस्य न हों।
7- जिनके घर में हाई स्पीड Free WiFi न हो।
यदि आप भी मेरिट की ढिंढोरा पीटने वालों में से हैं तो आओ अपनी औकात आजमा लो हम मूलनिवासी, खासकर आदिवासियों के साथ। आओ तो भला कम से कम 01 साल ही अबूझमाड़ में जीकर देखो… तुम्हारी पूरी मेरिट बासी हो जाएगी।
मेरा मानना है सामाजिक न्याय के लिए केवल आरक्षण अथवा जनसंख्या के आधार पर सामाजिक प्रतिनिधित्व का अधिकार ही पर्याप्त नहीं है बल्कि सभी स्टूडेंट्स को समान अवसर उपलब्ध कराया जाना भी आवश्यक है। हालाँकि मैं कुछ ख़ास स्टूडेंट्स को ख़ास ट्रीटमेंट मिलने का विरोध कर सकता था, मगर मैं मानव समुदाय के उन्नति का विरोधी नहीं हूँ।