राष्ट्रीय पोषण दिवस – स्वस्थ समृद्ध राष्ट्र एवं समाज के सर्वांगीण विकास में पोषण का समुचित ज्ञान जरुरी : योग गुरु महेश अग्रवाल
भोपाल. आदर्श योग आध्यात्मिक केंद्र स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल ने बताया कि अगर आप स्वस्थ है तो आप एक स्वस्थ समृद्ध समाज और राष्ट्र के निर्माण में सहयोगी बन सकते हैं। बेहतर स्वास्थ्य और भलाई के बारे में में लोगों को जागरुक करने के लिए हर साल 1 सितंबर से 7 सितंबर तक राष्ट्रीय पोषण सप्ताह मनाया जाता है। इस दौरान पोषण और अच्छे भोजन, स्वस्थ शरीर, मन और जीवन शैली पर जानकारी दी जाती है । हमारे दैनिक आहार में लवण, विटामिन, प्रोटीन के बारे में बताया जाता है।
योग गुरु अग्रवाल ने बताया हमलोग जो कुछ प्रतिदिन भोज्य पदार्थ के रूप में ग्रहण करते हैं वह ‘आहार’ कहलाता है। लेकिन प्रत्येक ग्रहण किया गया द्रव्य ‘आहार’ तो है, परन्तु ‘पोषण’ नहीं। आहार के रूप में लिया गया भोज्य पदार्थ जब पाचन तंत्र तथा पाचन प्रणाली से होकर गुजरता है तो उसका कुछ अंश पाचन तंत्र में अवशोषित हो जाता है एवं बाकी अनुपयोगी अंश शरीर द्वारा उत्सर्जित कर दिया जाता है। शरीर द्वारा अवशोषित किए गए द्रव्य शरीर की वृद्धि, विकास तथा मरम्मत में सहयोग प्रदान करते हैं। इन्हें ही ‘पोषक तत्व के नाम से जानते हैं और यह क्रिया ‘पोषण’ कहलाती है।
साधारणतया हम लोग पौधों तथा जीव-जगत से ही विभिन्न प्रकार के पोषण अवयवों को प्राप्त करते हैं। उदाहरण के लिए पादप-जगत से हमें विभिन्न तरह के अन्न, दालें, फल-फूल इत्यादि आहार-द्रव्यों के रूप में प्राप्त होते हैं। जन्तु-जगत् से मुख्य रूप से भोजन हमें मांस, मछली, अंडा इत्यादि के रूप में प्राप्त होता है।
पोषण हमारे शरीर के लिए आवश्यक है : – यह मानव शरीर में ऊर्जा का स्त्रोत है जिससे प्राण प्रस्फुटित होता है। पोषण मुख्य रूप से हमारे शरीर के विकास, वृद्धि तथा मृत कोशिकाओं के बदले नए कोशिकाओं के निर्माण एवं टूट-फूट की मरम्मत करने में सहयोगी होता है। भोज्य पदार्थों के साथ लिए गए विटामिन्स तथा लवण हमारे शरीर की रासायनिक प्रक्रिया तथा वृद्धि जैसी जटिल प्रक्रिया को दिशा प्रदान करते हैं।
जिस स्थूल शरीर को हमलोग अपनी आंखों से देखते हैं यह असंख्य कोशिकाओं का बना होता है। यह उसी तरह है जैसे एक विशाल भवन की इकाई एक ईट होती है। उसी तरह शरीर की रचनात्मक इकाई “कोशिका” या कोसा कहलाती है। जिसे मात्र अनुविक्षण यंत्र से ही स्पष्ट देखा जा सकता है। न सिर्फ रचना वरन् कार्य की दृष्टि से भी ये बड़े महत्वपूर्ण है। अतः इन्हें कार्यात्मक इकाई भी कहते हैं। ये कोशिकाएं वृद्धि के क्रम में ऊत्तक और फिर ऊतकों से शरीर के महत्वपूर्ण अंग और अंगों के बाद शरीर के जटिल प्रणालियों की संरचना करती है। इन सभी अंगों एवं अंग संस्थान की वृद्धि में पोषण की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। गर्भावस्था में ये सारी आवश्कताएं मां के द्वारा पूर्ण होती है लेकिन जन्म के उपरान्त सबसे पहले हमारे फेफडे कार्यशील होते हैं जो आक्सीजन ग्रहण करते हैं तथा कार्बनडाईआक्साईड छोड़ते हैं और शरीर में आक्सीजन के प्रवेश तथा कोशिकाओं तक पहुंचने के लिए हृदय तथा रक्त संचार की प्रक्रिया भी सहयोग देती हैं। अतः सर्वप्रथम इन अंगों का पोषण होता है और इस तरह अंगों के पोषण की कहानी शुरू होती है। उपनिषदों में भोज्य पदार्थों के पोषण की बात कही गई है, इसके अनुसार “भोज्य पदार्थों का सब से स्थूल भाग मल के रूप में हमलोगों के शरीर से उत्सर्जित कर दिया जाता है, मध्य भाग मांसपेसियों तथा ऊत्तक का निर्माण करती है जबकि सबसे सूक्ष्म अंग मन का निर्माण करती है।”
इस तरह पुरातन काल से ही भोज्य पदार्थ और पोषण के महत्व को लोगों ने स्वीकारा है परन्तु आज कल बढ़ती आधुनिकता के बावजूद भोज्य पदार्थों और पोषण के बारे में लोगों में जो सोच विकसित हुई है वह बड़ी निराशाजनक है। एक सर्वेक्षण किया गया जिसके आँकड़ों से पता चलता है कि अमीरों के घरों के भोजन पर आये खर्च में प्रत्येक वर्ष बेतहाशा वृद्धि हो रही है। अर्थात् भोज्य पदार्थ कीमती होते जा रहे हैं। भोजन पर आने वाले प्रति व्यक्ति का खर्च कई गुना बढ़ा परन्तु इनमें पाये जाने वाले पोषक तत्वों की गणना की गई तो पता लगा कि ये कीमती भोजन उचित पोषक तत्वों से समृद्ध नहीं है। अतः ऐसे समृद्ध राष्ट्र के लोग भी कुपोषण के शिकार हो रहे हैं जिसके फलस्वरूप इन समृद्ध राष्ट्रों के नागरिकों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ा है। विभिन्न समृद्ध राष्ट्रों में कुपोषण पर किये गये शोध कार्य के आँकड़े बताते हैं कि इन राष्ट्रों में कुपोषणजन्य बिमारियों के आंकड़ों का ग्राफ उत्तरोत्तर वृद्धि की ओर है। इन बीमारियों में हृदय रोग, जोड़ों का दर्द, मधुमेह, मोटापा, शारीरिक तथा मानसिक रोग प्रमुख है और कुपोषण के कारण मानव की प्रतिरोधक क्षमता में काफी ह्रास हुआ जिसकी वजह से वह कई. तरह के संक्रामक रोगों से ग्रस्त होते देखे जा रहे है। अतः समय रहते अगर इस स्थिति में सुधार न किया गया तो आज का आधुनिक समाज आगे आने वाली सदी में कई भयावह बीमारियों के शिकार होने से बच नहीं पाएगा। अतः वक्त रहते पोषण की दिशा में सही कदम उठा कर ही आने वाली पीढ़ी को एक स्वस्थ शरीर और मन प्रदान किया जा सकता है। स्वास्थ्य के लिए उपयुक्त आहार अत्यन्त आवश्यक है। आधुनिक समय में आहार व पोषण अपने आप में एक विस्तृत तथा विशिष्ट अध्ययन का विषय बन चुका है।
परन्तु आधुनक परिप्रेक्ष्य में आजकल केवल आहार के स्थूल पोषक घटकों पर विचार कर अपने आहार की रूप रेखा तैयार करते हैं जो मूलतः कैलोरी पर आधारित रहता है लेकिन यह एक भयंकर भूल है। महत्वपूर्ण है विभिन्न तरह के भोजन प्रणाली तथा भोजन कब, कैसा, कितना तथा भोजन किस तरह ग्रहण करें, भोजन किस तरह बनें , संतुलित भोजन का सही प्रारूप क्या हो ? इसके महत्वपूर्ण घटकों पर विचार होना चाहिये। पौष्टिकता के नाम पर अत्यधिक मात्रा में तामसिक / राजसिक आहार का सेवन शरीर के पाचन व चयपचयन संस्थान पर अनावश्यक भार डालता है। यौगिक आहार व्यवस्था का मूल सिद्धान्त “मिताहार” अर्थात् अल्पाहार ही है। मिताहार का तात्पर्य मात्रा में कम तथा पाचन में सरल आहार से है। हमारी प्राचीन परम्परा तथा आयुर्वेद में भी इस सिद्धान्त का सुस्पष्ट निर्देश है।
हमारी शिक्षा प्रणाली में इस विषय को महत्वपूर्ण स्थान देना चाहिये।अतः स्वास्थ्य के सर्वांगीण विकास के लिए इन भोज्य पदार्थों के प्रमुख अवयवों के बारे में समुचित ज्ञान आवश्यक है क्योंकि आवश्कतानुसार लोग तब इनकी खोज उन स्त्रोतों में कर पायेंगे जहां से इन्हें मूल रूप में प्राप्त किया जा सकता है और एक सन्तुलित भोजन प्रणाली का विकास कर मानव शरीर को समुचित पोषण प्राप्त कराने की दिशा में एक प्रभावी कदम साबित हो सकता है।