“भारतीय परम्परा में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की अवधारणा ” पर राष्ट्रीय संगोष्ठी
वर्धा. महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने कहा कि राष्ट्र निर्माण में पहला अभिन्न तत्त्व मातृ-भूमि के प्रति अटूट प्रेम तथा समर्पण का भाव है। प्रो. शुक्ल पार्श्वनाथ विद्यापीठ,वाराणसी द्वारा 11 से 13 नवम्बर 2022 तक भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद नई दिल्ली द्वारा “भारतीय परम्परा में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की अवधारणा” विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे।
उद्घाटन सत्र में दीप प्रज्वलन के साथ भगवान् पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर माननीय अथिथियों के द्वारा माल्यार्पण किया गया । तदनन्तर जैन मंगलाचरण णमोकार मंत्र और गीत “महावीर स्वामी, नयन पंथ गामी” का गायन हुआ। साथ ही बौद्ध और वैदिक मंगलाचरण भी किया गया।
संगोष्ठी के प्रथम उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता डॉ. बालमुकुन्द पाण्डेय, राष्ट्रीय संगठन सचिव, अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना, नई दिल्ली ने की। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो. रजनीश शुक्ल, कुलपति महात्मा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय, वर्धा, थे। विशिष्ट अतिथि थे डॉ. सुनील कुमार पटेल, विधायक रोहनिया, वाराणसी तथा सास्वत अतिथि थे श्री धनपतराज जी भंसाली अध्यक्ष प्रबन्ध समिति, पार्श्वनाथ विद्यापीठ जी का अंगवस्त्र, माला और स्मृति-चिन्ह प्रदान करके सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम के प्रारम्भ में मंगलाचरण के बाद संस्थान के निदेशक डॉ. श्रीप्रकाश पाण्डेय ने स्थानीय एवं बाहर से आये हुए अतिथियों एवम् प्रतिभागियों का स्वागत किया तथा संस्था का परिचय देते हुए संस्था की गतिविधियों से अतिथियों को अवगत कराया। साथ ही संगोष्ठी के आयोजन के उद्देश्य तथा उसकी रूपरेखा के विषय में प्रतिभागियों को सूचना दी।इसके उपरान्त डां. ओ. पी. सिंह ने पार्श्वनाथ विद्यापीठ की ऐतिहासिक जानकारी प्रदान करते हुए वर्तमान में इसकी स्थिति का ज्ञान कराया।राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर के इतिहास और संस्कृति विभाग की पूर्व अध्यक्षा प्रो. विभा उपाध्याय ने बीज वक्तव्य (key note address) प्रस्तुत किया।
सास्वत अतिथि श्रीधनपतराज भंसाली ने अपने उद्बोधन में कहा कि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, राष्ट्रवाद का वह विशेष रूप है, जिसमें राष्ट्र को एक साझी संस्कृति के रूप में देखा जाता है। विशिष्ट अतिथि श्री सुनील कुमार पटेल ने बताया कि भारतीय संस्कृति एक विशाल और संशिलष्ट संस्कृति रही है जिसके संवर्धन में वैदिक और श्रमण दोनों परम्पराओं का समान अवदान रहा है।कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे डाँ. बालमुकुन्द पाण्डेय ने अपने उद्बोधन में कहा कि वर्तमान समय में भारत अपने संक्रमण काल से गुजर रहा है। अनेक बाहरी शक्तियाँ भारतीय शान्ति और सद्भाव को नष्ट करने पर आमादा है। ऐसे में भारत के प्रत्येक देशवासी के मन में भारतीय राष्ट्रवाद की संकल्पना और उसके प्रति अगाध प्रेम का होना अति आवश्यक है।कार्यक्रम के अन्त में धन्यवाद ज्ञापन डॉ. ओम प्रकाश सिंह ने किया ।
द्वितीय सत्र की अध्यक्षता प्रो. विभा उपाध्याय ने की। सर्वप्रथम प्रो. कौशल कुमार मिश्र ने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के संकुचित अर्थ बाहर निकल कर विस्तृत अर्थ में व्याख्या करते हुए उदापरण सहित समझया। दुसरे वक्ता प्रो. सीताराम दुबे ने सास्कृतिक राष्ट्रवाद ऐतिहासिक रूप में प्रस्तुत किया जो बहुत ही सारगर्भित था । तीसरे वक्ता प्रो. डी. बी. चौबेजी ने भाक्ति आन्दोलन के आधार पर सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की व्याख्या प्रस्तुत की ।
तीसरे सत्र की अध्यक्षता प्रो. मारुति नन्दन त्रिपाठी जी ने की। जिसमे प्रथम वक्ता डा. शान्ति स्वरुप सिन्हा जी ने दृष्य माध्यम से सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को प्रस्तुत किया। इस सत्र में जिन विद्वनों अपने पत्र प्रस्तुत किये है वे डां. विनय कुमार, डां प्रभाकर उपाध्याय, डां. अरुण प्रताप आदि ।इस अवसर पर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के विभिन्न विद्वान् एवं देश के कोने-कोने से आये अन्य विद्वान् उपस्थित रहें।