December 4, 2024

‘महादेवी के साहित्‍य संसार में महिला’ विषय पर राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी सम्पन्न

वर्धा. महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा के हिंदी एवं तुलनात्‍मक साहित्‍य विभाग द्वारा महादेवी वर्मा की 115 वीं जयंती के अवसर पर ‘महादेवी के साहित्‍य संसार में महिला’ विषय पर सम्मिश्र पद्धति से शनिवार 26 मार्च को आयोजित राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने कहा कि महादेवी का साहित्य 21 वीं सदी में पथप्रदर्शक है। उन्होंने स्त्री अस्मिता की चर्चा करते हुए कहा कि पश्चिम और यूरोप के अंधानुकरण ने स्त्री अस्मिता को प्रभावित किया है। उन्होंने महादेवी वर्मा के रचना संसार में महिला के संदर्भ में स्वस्थ समाज और श्रेष्ठ पारिवारिक जीवन की आवश्यकता पर बल दिया।
विश्‍वविद्यालय के तुलसी भवन स्थित महादेवी वर्मा सभागार में सम्पन्न हुई
संगोष्‍ठी में मुख्‍य अतिथि महाराजा गंगा सिंह विश्‍वविद्यालय, बीकानेर  की पूर्व कुलपति प्रो. चंद्रकला पाडि़या तथा सारस्‍वत अतिथि के रूप में हिंदी माध्‍यम कार्यान्‍वयन निदेशालय, दिल्ली विश्‍वविद्यालय की कार्यवाहक निदेशक प्रो. कुमुद शर्मा ने संबोधित किया। प्रो. कुमुद शर्मा ने महादेवी के रचना संसार की चर्चा करते हुए कहा कि उनकी रचनाओं में जय-पराजय, शक्ति- दुर्बलता और जीवन- मृत्यु की व्यापक दृष्टि दिखाई देती है। महिलाओं के संघर्ष को जीवंत करते हुए महादेवी ने उनके स्वाभिमान को उजागर किया है। महादेवी ने अपनी रचनाओं में समकालीन पाश्चात्य नारीवाद को टक्कर दी। प्रो. शर्मा ने कहा कि महादेवी को भारतीय स्त्री की नाड़ी की परख थी। विज्ञापन और महिला के संदर्भ में उन्होंने कहा कि महादेवी ने बीसवीं सदी में ही नारी रूप के व्यावसायीकरण पर बेबाक टिप्पणी की थी। प्रो. चंद्रकला पाडिया ने सिमाॅन द बोवा और महादेवी वर्मा की रचनाओं पर तुलनात्मक दृष्टि से प्रकाश डालते हुए महिलाओं के संबंध में उनके विचारों की चर्चा की। उनका कहना था कि महादेवी के चिंतन में समाज की पीड़ा परिलक्षित होती है। महादेवी के स्त्री विमर्श में विद्रोह का तीव्र स्वर मुखरित होता है। दोनों के विचार में समानताएं होते हुए भी वैचारिक धरातल पर अंतर भी दिखाई देती है।
कार्यक्रम में स्‍वागत वक्‍तव्‍य हिंदी एवं तुलनात्‍मक साहित्‍य विभाग की अध्‍यक्ष एवं राष्ट्रीय संगोष्ठी की संयोजक प्रो. प्रीति सागर  ने दिया। उन्होंने कहा कि महादेवी वर्मा ने ‘श्रृंखला की कडियां’  और ‘अतीत के चलचित्र’ जैसी रचनाओं के माध्यम से भारतीय स्त्री विमर्श को व्यापक फलक पर प्रस्तुत करते हुए महिलाओं के द्वंद्व को वाणी दी है। कार्यक्रम की प्रस्‍तावना क्षेत्रीय केंद्र प्रयागराज के अकादमिक निदेशक प्रो. अखिलेश कुमार दुबे ने रखी। उन्होंने महादेवी वर्मा के रचना संसार की चर्चा करते हुए कहा कि महादेवी ने प्रचुर मात्रा में गद्य तथा पद्य में साहित्य रचा है। करुणा, ममता और उदारता उनके साहित्य के केंद्र में है। कार्यक्रम का संचालन डॉ. अशोकनाथ त्रिपाठी ने किया तथा धन्‍यवाद प्रो. अवधेश कुमार ने ज्ञापित किया। संगोष्ठी में विश्वविद्यालय के अध्यापक गण, शोधार्थी एवं विद्यार्थियों ने बड़ी संख्या में सहभागिता की।

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