August 9, 2021
केंद्र एवं राज्य की कॉर्पोरेटपरस्ती के खिलाफ पूरे प्रदेश में हुए धरना-प्रदर्शन, जलाई गई कृषि कानूनों की प्रतियां
रायपुर. संयुक्त किसान मोर्चा, अखिल भारतीय किसान संघर्ष समिति और विभिन्न ट्रेड यूनियन संगठनों के आह्वान पर आज 9 अगस्त को पूरे छत्तीसगढ़ में भी ‘भारत बचाओ, कॉर्पोरेट भगाओ’ के नारे के साथ आंदोलन हुआ। यह आंदोलन कॉर्पोरेटपरस्त तीन किसान विरोधी कानूनों तथा मजदूर विरोधी श्रम संहिता को वापस लेने, फसल की सी-2 लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करने और किसानों की पूरी फसल की सरकारी खरीदी का कानून बनाने, बिजली कानून में जन विरोधी संशोधनों को वापस लेने, छत्तीसगढ़ में खाद-बीज-दवाई की कमी और बाजार में इसकी कालाबाज़ारी पर रोक लगाने, बिजली दरों में की गई वृद्धि वापस लेने, आदिवासियों पर हो रहे राज्य प्रायोजित दमन तथा विस्थापन पर रोक लगाने तथा इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों को सजा देने, प्रदेश के कोयला खदानों की नीलामी पर रोक लगाने, वनाधिकार कानून, पेसा और 5वीं अनुसूची के प्रावधान लागू करने, मनरेगा में 200 दिन काम देने, आयकर दायरे से बाहर हर परिवार को प्रति माह 7500 रुपये की नगद मदद करने तथा प्रति व्यक्ति हर माह 10 किलो अनाज सहित राशन किट मुफ्त देने की मांग पर आयोजित किया गया।
यह जानकारी छत्तीसगढ़ किसान सभा के प्रदेश अध्यक्ष संजय पराते और महासचिव ऋषि गुप्ता ने दी। उन्होंने बताया कि आदिवासी एकता महासभा के साथ मिलकर किसान सभा ने प्रदेश के अधिकांश जगहों पर स्वतंत्र रूप से, तो कुछ जगहों पर ट्रेड यूनियनों के साथ मिलकर धरना और प्रदर्शन आयोजित किये गए तथा अनेकों जगहों पर किसान-मजदूर विरोधी कृषि कानूनों और श्रम संहिता की प्रतियां जलाई गई। उनकी इस कार्यवाही को मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी सहित सभी वामपंथी पार्टियों का भी समर्थन प्राप्त था और वामपंथी कार्यकर्ता भी इन आंदोलनों में शामिल हुए। रायपुर, कोरबा, सरगुजा, सूरजपुर, रायगढ़, जांजगीर, बस्तर, बिलासपुर, मरवाही, कांकेर, राजनांदगांव, धमतरी सहित 20 से ज्यादा जिलों में ये आंदोलन आयोजित किये गए। संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से पूर्व सांसद हन्नान मोल्ला ने सफल विरोध कार्यवाहियां आयोजित करने के लिए प्रदेश की आम जनता और मजदूर-किसानों को बधाई दी है।
किसान सभा नेताओं ने कहा कि मोदी सरकार ने जिस तरह संसदीय प्रक्रिया को ताक पर रखकर और देश के किसानों व राज्यों से बिना विचार-विमर्श किये तीन कृषि कानून बनाये हैं, ये कानून अपनी ही खेती पर किसानों को कॉरपोरेटों का गुलाम बनाने का कानून है। इन कानूनों के कारण निकट भविष्य में देश की खाद्यान्न आत्म-निर्भरता ख़त्म हो जाएगी, क्योंकि जब सरकारी खरीद रूक जायेगी, तो इसके भंडारण और सार्वजनिक वितरण प्रणाली की व्यवस्था भी समाप्त हो जायेगी। इसका सबसे बड़ा नुकसान देश के गरीबों, भूमिहीन खेत मजदूरों और सीमांत व लघु किसानों को उठाना पड़ेगा। इसलिए इन कानूनों की वापसी तक छत्तीसगढ़ में भी आंदोलन जारी रहेगा।
उन्होंने कहा कि जब देश की जनता और अर्थव्यवस्था कोरोना संकट से बर्बाद हो रही है और आम जनता अपनी रोजी-रोटी गंवा रही है, उसे मुफ्त अनाज और नगद राशि से मदद करने के बजाय संघपरस्त मोदी सरकार ने अपनी तिजोरियों का मुंह देशी-विदेशी कॉरपोरेटों के लिए खोल दिया है और देश के प्राकृतिक संसाधनों और सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों को उन्हें सौंपने की मुहिम चला रही है। इसका नतीजा है कि केवल अडानी और अंबानी मिलकर हर घंटे औसतन 200 करोड़ रुपये कमा रहे हैं, जबकि मोदी और भाजपा के पिछले सात सालों के राज में हर घंटे दो किसान आत्महत्या कर रहे हैं। किसान सभा नेताओं ने कहा कि इसलिए यह आंदोलन स्वतंत्र भारत के इतिहास में कार्पोरेट लूट के खिलाफ सबसे बड़ा जन आंदोलन है।
इस आंदोलन के जरिये राज्य की कांग्रेस सरकार की आदिवासी विरोधी नीतियों का भी विरोध किया गया। किसान सभा नेताओं ने कहा कि प्रदेश में कॉरपोरेटों द्वारा जल-जंगल-जमीन की लूट को आसान बनाने के लिए उन्हें अपनी भूमि से विस्थापित करने की नीति अपनाई जा रही है। प्रदेश के 17 कोयला खदानों की नीलामी से और बस्तर में नक्सलियों से निपटने के नाम पर आदिवासियों के संवैधानिक प्रावधानों को ताक पर रखकर उन पर गोलियां चलाये जाने से यह स्पष्ट है।