रक्षा बंधन : भारतीय संस्कृति के पर्व हर जीवन की रक्षा के साथ प्रेम, समर्पण, निष्ठा व संकल्प के द्वारा हृदयों को भी बांधने का वचन देते है – महेश अग्रवाल
भोपाल. आदर्श योग आध्यात्मिक केंद्र स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल ने रक्षाबंधन पर्व की सभी भाई बहनों को हार्दिक शुभकामनायें देते हुए बताया कि भारतीय संस्कृति में पर्वों का प्राचीनकाल से विशेष महत्व रहा है। प्रत्येक त्यौहार के साथ धार्मिक मान्यताओं, सामाजिक एवं ऐतिहासिक घटनाओं का संयोग प्रदर्शित होता है। रक्षाबंधन भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का प्रमुख त्यौहार माना जाता है जो श्रावण मास पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन बहन अपनी रक्षा के लिये भाई को राखी बांधती है ।
योग गुरु अग्रवाल ने बताया कि भारतीय संस्कृति के सभी पर्व व्यक्ति और राष्ट्र के नवनिर्माण का मार्ग बताते है ।* संसार में प्रत्येक प्राणी अपनी बुद्धि परिस्थिति और शक्ति के अनुसार आशा-आकांक्षा रखता है और इसी को अनुलक्ष्य बनाकर जीवन व्यतीत करता है। जीवन में कोई लक्ष्य नहीं है, यह मिथ्या है। जब तक इस शरीर में आशा है तब तक आशा और आकांक्षा का लक्ष्य है, परन्तु इस सत्य को कितने लोग आज जानते हैं? आज सांसारिक जीवन में संघर्ष और अशान्ति फैली हुई है। किसलिये? कारण यही है कि हम आनन्द और शान्तिदायक लक्ष्य से बहुत दूर हैं। आज भी पूर्व जन्मों के अनुसार पशु संस्कार हमारे मानस पटल से पूर्णरूपेण दूर नहीं हुए हैं। हमें उसे दूर करने का प्रयत्न करना चाहिये। यही जीवन का वेदान्त है। वेदान्त का श्रीगणेश भी यहीं से होता है। प्रत्येक व्यक्ति को विशाल दृष्टि एवं उदात्त भावना रखनी चाहिये।
आज विश्व में अशान्ति का तूफान मच रहा है। एक प्रान्त दूसरे प्रान्त पर अधिकार करने के लिये व्याकुल है। एक देश दूसरे देश को हड़पने के लिये कूद रहा है। एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र को खतम करने के लिये अवसर ढूँढ रहा है। बताओ क्या यही हृदय की विशालता और मन की उदारता है? क्या विश्व को आज ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता है जो समस्त संसार को अपने रंग में रंगना चाहे ? आज इस धर्माचार की दुनिया को परवाह नहीं है जो जबर्दस्ती अपने मत एवं सिद्धान्तों को दूसरों से कबूल करवाता हो। अतः हमें योग द्वारा जीवन का परिमार्जन करना होगा, समाज और राष्ट्र की सूरत बदलनी होगी, तभी राष्ट्र परस्पर दृढ़ मैत्री में बँधेगे। राष्ट्र की आज की परिस्थिति के लिये वे ही व्यक्ति जवाबदेह हैं जो अपने हाथों से अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारते हैं। आज राष्ट्र को धार्मिक अनुशासन की आवश्यकता है। धर्म तो एक ही है। केवल मार्ग विभिन्न हैं। प्रत्येक राष्ट्र को जीवन का सच्चा अर्थ जानना आवश्यक है। धर्म को जीवन में चरितार्थ करना है। आत्मशुद्धि, परितुष्टि और आत्म-संयम से धर्म जीवन में चरितार्थ हो सकता है। अपने धर्म का सच्चा अनुयायी मनुष्य तभी हो सकता है जब वह सच्चा मानव बने। हम स्वयं भले बनें, साथ ही औरो को बनायें। यही विश्व शान्ति का मार्ग है। देश के नव-निर्माण के लिये आज ऐसे व्यक्तियों की आवश्यकता है जिनने प्रलोभनों को ठुकरा दिया हो। ऐसे ही व्यक्तियों ने जीवन में योग का शुभारम्भ किया है। उनके हाथों में राष्ट्र अवश्य सुरक्षित है। देश, शान्ति, समृद्धि और सुख का भार जिनके सिर पर है, वे यदि अपने को योगमय बना दें तो जीवन की सफलता शत-प्रतिशत निश्चित है।
व्यक्ति अपना जीवन योगमय तभी बना सकता है जब उसके प्रत्येक कार्य में पवित्रता और सात्त्विकता हो। जीवन संघर्ष में और जीवन की परीक्षाओं में वे ही सफलता प्राप्त करते हैं। ‘योगः कर्मसु कौशलम्’। जो भी कार्य हमारे हाथ में हो, उसे कुशलतापूर्वक पूरा करना, अर्थात् जीवन के जिस योग में भी हो, उसे कुशलतापूर्वक पूरा करना। उस कर्तव्य का पूर्ण पालन हम तभी कर सकते हैं जब हम जान लें कि प्रत्येक व्यक्ति का कार्य दो भागों में बँटा रहता है। एक स्वजाति के प्रति और दूसरा समाज के प्रति | कर्तव्य पालन तो तभी होता है जब हम समाज के साथ-साथ स्वयं के लिये भी उपयोगी और महान् बनें। सच्चे नागरिक और सच्चे मनुष्य बनकर ही हम कर्तव्य पालन कर सकते हैं।