रामचरितमानस ने वसुधैव कुटुंबकम की चेतना को विस्तारित किया है : पद्मश्री प्रो. हरमहेन्द्र सिंह बेदी
वर्धा. भारतीय भाषाओं में किसी महाकाव्य का प्रमुखता से उल्लेख है तो वह रामचरितमानस है । सभी आशियाई देश आज रामकाव्य में अपना सांस्कृतिक इतिहास ढूंढ रहे हैं, क्योंकि रामचरितमानस ने वसुधैव कुटुंबकम की चेतना को विस्तारित किया है, जिसका श्रेय गोस्वामी तुलसीदास को जाता है। उक्त विचार हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलाधिपति पद्मश्री प्रो. हरमहेन्द्र सिंह बेदी ने गुरूवार 04 अगस्त को व्यक्त किए ।
भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् तथा भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली के सहयोग से महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के प्रवासन एवं डायस्पोरा अध्ययन विभाग, अनुवाद एवं निर्वचन विद्यापीठ द्वारा ‘भारतीय डायस्पोरा का वैश्विक परिप्रेक्ष्य : जीवन और संस्कृति’ विषय पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के उपलक्ष्य में विश्वविद्यालय के गालिब सभागार में ‘भारतीय डायस्पोरा और तुलसी’ पर आधारित सत्र की अध्यक्षता करते हुए वे बोल रहे थे ।
सत्र में वक्ता के रूप में उत्तर प्रदेश उच्च शिक्षा परिषद के अध्यक्ष प्रो गिरीश चंद्र त्रिपाठी, विश्वविद्यालय के आवासीय लेखक डॉ रामजी तिवारी, लखनऊ विश्वविद्यालय के हिंदी एवं आधुनिक भारतीय भाषा विभाग की प्रो. अलका पाण्डेय की उपस्थिति थी । पद्मश्री प्रो. हरमहेन्द्र सिंह बेदी ने कहा कि रामचरितमानस से विस्तारित हुए इस अकादमिक डायस्पोरा को संभालने की जरुरत है, जिससे हम इस डायस्पोरा के सांस्कृतिक सामाजिक उचाइयों को ढूंढ सकते है । प्रो. गिरीश चंद्र त्रिपाठी ने कहा कि राम एक आदर्श पति, आदर्श पुत्र थे उनका आचरण ही धर्म था। वर्तमान की सभी चुनौतियों का समाधान रामचरितमानस में है। राम हमेशा प्रासंगिक है। रामचरितमानस और गोस्वामी तुलसीदास हमारे प्रेरणास्त्रोत है । डॉ. रामजी तिवारी ने कहा कि गिरमिटिया लोग अपने साथ रामचरितमानस ले गए । जो पढ़ सकते थे वह ले गए । वहाँ पर उनके साथ हो रही पीड़ा से जो लोग रोते थे वे रामचरितमानस पढ़कर अपनी पीढ़ा कम करने का प्रयास करते थे, बाकी लोग उनके आँसू पोछ़ते थे। गिरमिटिया लोगों का मनोबल बढ़ाने में रामचरित मानस का बड़ा योगदान रहा । लखनऊ विश्वविद्यालय के हिंदी एवं आधुनिक भारतीय भाषा विभाग की प्रो. अलका पाण्डेय ने कहा कि हिंदी हमारे लिए जीविकापार्जन का साधन है, उसको विश्व व्यापी बनाने के मूल में रामकथा ही है । केवल भारत में ही नहीं दुनिया में रामकथा की प्रस्तुति हिंदी में ही होती है । विश्व में फैले भारतियों के लिए रामकथा व हनुमान चालीसा ही आधार है। उन्होंने कहा कि राम धर्म से परे मानवी मूल्यों के संस्थापक है ।
भारतीय संस्कृति में राम आते है तो तुलसी भी आते है। सत्र का प्रास्ताविक तुलनात्मक साहित्य विभाग के प्रो. कृष्ण कुमार सिंह ने किया तथा संचालन व धन्यवाद ज्ञापन जनसंचार विभाग के अध्यक्ष प्रो कृपाशंकर चोबे ने किया। सत्र में गणमान्य अतिथि विश्वविद्यालय के अध्यापक, विद्यार्थी, शोधार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित थे।