प्रख्यात आलोचक वीरेंद्र यादव ने कहा कि आज देश के जो हालात हैं, उसमें तमाम वर्ग समाज को बचाने के लिए मोर्चे पर हैं। एक साहित्यकार और जनबुद्धिजीवी बतौर संविधान और जनतंत्र को बचाने के लिए हमें हस्तक्षेपकारी भूमिका निभानी होगी, जैसी कि प्रेमचंद ने निभायी थी। आजादी के आंदोलन के दौर में एक वक्त