बलरामपुर/धीरेन्द्र कुमार द्विवेदी. छत्तीसगढ़ में रोका-छेका जैसी व्यवस्थाएं प्राचीन समय से चल रही है। नई फसल की बुआई के पूर्व पशुपालक अपने पशुओं को खुले में न छोड़कर चरवाहों के माध्यम से चरने के लिए भेज देते थे। ऐसे समय में पशुओं के खुले में चराई से फसलों का नुकसान होता है। राज्य शासन द्वारा