71 Land Mines का पता लगाने वाला बहादुर चूहा Magawa, बचाई हैं हजारों लोगों की जान

कंबोडिया. आपने बहादुरी की कई कहानियां सुनी होंगी, लेकिन यह कहानी बिल्‍कुल अलग है. इसमें 71 बारूदी सुरंगे खोजकर हजारों लोगों की जान बचाने जैसी बहादुरी का काम किसी विशालकाय प्राणी ने नहीं बल्कि एक चूहे ने किया है. अफ्रीकी नस्ल के इस चूहे की बहादुरी के किस्से मशहूर हैं. इसे बे‍ल्जियम के एक एनजीओ एपीओपीओ (APOPO) ने लैंड माइंस (Land Mines) खोजने के लिए प्रशिक्षित किया है. इसे दुनिया का सबसे सफल कृंतक (Rodents) माना जाता है.

मिल चुका है सर्वोत्‍तम नागरिक का पुरस्‍कार

मगावा (Magawa) नाम के इस 7 साल के चूहे (Rat) को अपनी बहादुरी के लिए ब्रिटिश चैरिटी का टॉप सिविलियन अवॉर्ड भी पिछले साल मिल चुका है. जबकि इससे पहले तक यह अवॉर्ड केवल कुत्‍तों को उनकी बहादुरी भरे कामों के लिए दिया जाता था. इस चूहे को उस समय प्रशिक्षित किया गया था, जब दक्षिण पूर्व एशियाई देश कंबोडिया में बारूदी सुरंगों का पता लगाना था. मगावा ने प्रशिक्षण के बाद अपने काम को बखूबी अंजाम दिया.

20 फुटबॉल पिच के बराबर जमीन नाप डाली 

द गार्डियन में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक इस छोटे से चूहे ने अपने सूंघने की क्षमता का उपयोग करके 1.4 लाख स्‍कवायर मीटर यानी कि 20 फुटबॉल पिच जितनी जमीन को सुरंग मुक्‍त बनाने में मदद की है. इससे हजारों लोगों की जान बची है. इतना ही नहीं यह 28 जिंदा विस्फोटकों का भी पता लगा चुका है. एपीओपीओ ने कहा है कि वैसे तो इस काम के लिए दूसरे चूहों को भी प्रशिक्षित किया जा सकता था लेकिन अफ्रीकन चूहों का आकार उन्‍हें इस काम के लिए परफेक्‍ट बनाता है.

रिटायर हो रहा है मगावा 

बहादुरी के कई कामों को अंजाम देने के बाद अब मगावा रिटायर हो रहा है. मगावा के हैंडलर मालेन का कहना है, ‘मगावा का प्रदर्शन नाबाद रहा है. मुझे उसके साथ काम करने में बहुत गर्व महसूस होता है क्‍योंकि इतना छोटा होने के बाद भी उसने कई लोगों की जान बचाने में मदद की है. उसकी सेहत अब भी अच्‍छी है लेकिन अब उसके रिटायर होने का समय आ गया है. हालांकि उसकी कमी को पूरा करना आसान नहीं है, लेकिन चैरिटी ने कुछ नए रंगरूटों को भर्ती किया है.’

बता दें कि 1970 से 1980 के दशक में कंबोडिया (Cambodia) में भयंकर गृह युद्ध छिड़ा था. यह युद्ध तो खत्‍म हो गया लेकिन दुश्मनों को मारने के लिए बड़े पैमाने पर बिछाईं गईं बारूदी सुरंगे यहां के आम लोगों की जान ले रहीं थीं.

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