छग सरकार की वित्तीय मदद करने और जनस्वास्थ्य से खिलवाड़ बंद करने की केंद्र से मांग की माकपा ने
रायपुर. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने कोरोना की दूसरी लहार के भयंकर संक्रामक होने और प्रदेश को पुनः लॉक डाउन करने के मद्देनजर मोदी सरकार से छत्तीसगढ़ राज्य सरकार को वित्तीय सहायता देने और आवश्यक स्वास्थ्य उपकरण तथा वैक्सीन के पर्याप्त डोज़ उपलब्ध कराने की मांग की है।
आज यहां जारी एक बयान में माकपा राज्य सचिवमंडल ने कहा है कि केंद्र सरकार कोरोना संकट से निपटने के लिए अपने संवैधानिक और सामाजिक दायित्व से मुंह नहीं मोड़ सकती। आम जनता और सार्वजनिक संस्थाओं से बटोरे गए हजारों करोड़ रुपयों के पीएम केअर फंड नामक निजी कोष पर वह कुंडली मारकर नहीं बैठ सकती और इसका उपयोग इस संकट से निपटने के लिए किया जाना चाहिए।
माकपा राज्य सचिव संजय पराते ने कहा है कि पिछले 10 दिनों से जारी लॉक डाउन के कारण प्रदेश के असंगठित क्षेत्र के मजदूर और ग्रामीणजन फिर से भूखमरी की कगार पर पहुंच गए है और उन्हें मुफ्त अनाज, नगद वित्तीय मदद और रोजगार के जरिये राहत पैकेज की जरूरत है। माकपा ने कहा है कि आम जनता की इन न्यूनतम बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए देश में संसाधनों की कमी नहीं है। इसके लिए मोदी सरकार को केवल अपनी कॉर्पोरेटपरस्त नीतियों में बदलाव करने की जरूरत है। पार्टी ने कोरोना संकट से निपटने के लिए जीडीपी का 5% खर्च किये जाने की मांग की है।
माकपा नेता ने कहा है कि प्रवासी मजदूरों की रक बार फिर घर वापसी को देखते हुए उनके सुरक्षित रूप से घर लौटने का इंतज़ाम केंद्र सरकार को करना चाहिए और उन्हें मनरेगा में काम देने के लिए अतिरिक्त आबंटन किया जाना चाहिए। सभी गैर-आयकर दाता परिवारों को 7500 रुपये मासिक की मदद की जाए। केवल इसी तरीके से घरेलू मांग को बढ़ाकर अर्थव्यवस्था को उत्प्रेरित किया जा सकता है, वरना अर्थव्यवस्था और ज्यादा मंदी का शिकार होगी।
माकपा नेता ने कहा है कि पिछले एक साल में कोरोना संकट से निपटने के नाम पर कॉरपोरेटों की तिजोरियों को भरने के जो अवसर खोजे गए और स्वास्थ्य क्षेत्र के निजीकरण को बढ़ावा दिया गया, उसका दुष्परिणाम है कि कोरोना की यह दूसरी लहर जन स्वास्थ्य के लिए और ज्यादा खतरनाक साबित हो रही है और इससे निपटने के लिए हमारे पास आवश्यक ढांचागत सुविधा, पर्याप्त चिकित्सक और प्रशिक्षित नर्स तक उपलब्ध नहीं है। नागरिकों की बड़े पैमाने पर हो रही इन मौतों के लिए केंद्र और राज्य सरकारों की ये जन विरोधी नीतियां ही जिम्मेदार है।