पूरे देश में मनाया जा रहा Eid-al Adha का पर्व, जानिए इस दिन क्यों दी जाती है जानवर की कुर्बानी
नई दिल्ली. आज पूर देश में ईद-उल अजहा (Eid-al Adha) यानी बकरीद का त्योहार मनाया जा रहा है. मुस्लिम समुदाय के लिए यह त्योहार ईद-उल फित्र के बाद दूसरा सबसे बड़ा त्योहार होता है. इस खास मौके पर सुबह 6 बजे से विशेष नमाज (Namaz) अदा की जा रही हैं. कोविड महामारी को देखते हुए नमाज के लिए कुछ प्रोटोकॉल बनाए गए हैं और एक बार में सीमित संख्या में ही नमाजियों को मस्जिद में प्रवेश करने की अनुमति दी गई है.
कुर्बानी का त्योहार है बकरीद
बकरीद के मौके पर बकरे या ऊंट आदि किसी जानवर की कुर्बानी (Sacrifice of Animal) दी जाती है. ईद-उल अजहा पर कुर्बानी (बलि) देने की परंपरा सदियों पुरानी है. इसके पीछे एक घटना को कारण बताया जाता है. इस्लाम के पैगंबरों में से एक हजरत इब्राहिम 80 साल की उम्र में पिता बने थे. एक दिन उन्हें सपना आया कि अपनी सबसे प्यारी चीज को कुर्बान कर दें. जाहिर है हजरत को अपना बेटा इस्माइल सबसे प्यारा था लेकिन अल्लाह के हुक्म पर उन्होंने दिल पर पत्थर रखकर अपने बेटे की कुर्बानी देने का निर्णय लिया.
बेटे के गले पर रख दी छुरी
जैसे ही हजरत इब्राहिम ने अपनी आंखों पर पट्टी बांधकर बेटे इस्माइल की गर्दन पर छुरी रखी, इस्माइल की जगह वहां पर दुंबा (भेड़ की जाति का एक जानवर) आ गया और हजरत ने उसकी कुर्बानी दे दी. जब उन्होंने अपनी आंखों से पट्टी हटाई तो देखा कि उनका बेटा इस्माइल बाजू में ठीक-ठाक खड़ा था. कहते हैं कि यह सपना उनकी परीक्षा लेने के लिए आया था, जिसमें वह सफल हुए. उसके बाद से ही इस दिन जानवरों की कुर्बानी देने की परंपरा शुरू हुई.