अज्ञेय का साहित्य परिमाण और गुणात्मक दृष्टि से व्यापक है : प्रो. चमनलाल गुप्त
वर्धा. महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में अज्ञेय की 112 वीं जयंती के उपलक्ष्य में ‘अज्ञेय एक : रूप अनेक’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि संबोधित करते हुए भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला के कार्यकारी निदेशक प्रो. चमनलाल गुप्त ने कहा कि अज्ञेय का साहित्य परिमाण और गुणात्मक दृष्टि से व्यापक है। अज्ञेय ने अपनी रचनाओं में अभिव्यक्ति की आज़ादी को बरकरार रखा। अंतर्मुखता से उनका साहित्य जन्मा है।
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल की प्रेरणा से हिंदी एवं तुलनात्मक साहित्य विभाग की ओर से सोमवार, 07 मार्च को तुलसी भवन स्थित गालिब सभागार में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी की अध्यक्षता प्रति कुलपति प्रो. हनुमानप्रसाद शुक्ल ने की।
प्रो. चमनलाल गुप्त ने ऑनलाइन संबोधित करते हुए सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ के साहित्य पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि अज्ञेय ने साहित्य की सभी विधाओं में लिखा। उनकी कविताओं का संस्कार भारतीय हैं। उनके साहित्य में गहन विविधता है।
अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रति कुलपति प्रो. हनुमानप्रसाद शुक्ल ने कहा कि अज्ञेय एक अनूठे रचनाकार हैं। अज्ञेय मानते थे कि कविता अभिव्यक्ति नहीं अपितु संवाद या सम्प्रेषण है। उनके साहित्य ने हिंदी समाज को जागरूक बनाने का काम किया। स्वाधीनता उनके विचार का केंद्रीय तत्व रहा है। उन्होंने अपनी रचनाओं में भारतीय समझ और बोध को प्रदर्शित किया है। प्रो. शुक्ल ने कहा कि अज्ञेय का स्मरण करने से उनके विचार युवा पीढ़ी में रोपित करने में मदद मिलेगी।
कार्यक्रम की प्रस्तावना रखते हुए साहित्य विद्यापीठ के प्रो. कृष्ण कुमार सिंह ने कहा कि अज्ञेय ने साहित्य की सभी विधाओं में अव्वल दर्जे की रचनाएँ की। अनेक भाषाओं के जानकार अज्ञेय 20 वीं शताब्दी के दुर्लभ रचनाकार थे।
कार्यक्रम में स्वागत वक्तव्य हिंदी एवं तुलनात्मक साहित्य विभाग की अध्यक्ष एवं संगोष्ठी की संयोजक प्रो. प्रीति सागर ने दिया। उन्होंने कहा कि कवि, कथाकार, निबंधकार और यायावर के रूप में ख्यातिप्राप्त अज्ञेय अपने समय के अद्भुत चितेरे रचनाकार थे। उन्होंने विश्वास जताया कि संगोष्ठी के बहाने विद्यार्थी और शोधार्थी उनके साहित्य संसार से परिचित हो सकेंगे। कार्यक्रम में विभाग की छात्राएं सुश्री मौसम तिवारी और सुश्री किरण बाला मीणा ने अज्ञेय की कविता ‘उड़ चल हारिल’ का गायन प्रस्तुत किया ।
कार्यक्रम का संचालन विभाग के एसोशिएट प्रोफेसर डॉ. रामानुज अस्थाना ने किया तथा साहित्य विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो. अवधेश कुमार ने धन्यवाद ज्ञापित किया।संस्कृत विभाग के सहायक प्रो. डाॅ. जगदीश नारायण तिवारी ने मंगलाचरण प्रस्तुत किया। दीप प्रज्वलन कर तथा अज्ञेय के छायाचित्र पर पुष्प अर्पित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार रामजी तिवारी, डॉ. उमेश कुमार सिंह, डॉ. अशोक नाथ त्रिपाठी, डॉ. सुप्रिया पाठक, डॉ. बीर पाल सिंह यादव, डॉ. सुनील कुमार, डॉ. रूपेश कुमार सिंह, डॉ. सूर्य प्रकाश पाण्डेय सहित शोधार्थी एवं विद्यार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित थे। कार्यक्रम में ऑनलाइन माध्यम से भी अध्यापक एवं विद्यार्थी जुड़े थे।