January 31, 2025

भक्ति आंदोलन को तुलनात्मक दृष्टि से परखने की आवश्यकता : प्रो. तंकमणि अम्मा

वर्धा. ‘हिंदी और मलयालम का भक्ति साहित्य : सांस्कृतिक पुनर्पाठ’ विषय पर बीज वक्‍तव्‍य देते हुए केरल विश्‍वविद्यालय के हिंदी विभाग की पूर्व अध्‍यक्ष मलयालम साहित्य की विदुषी प्रो. एस तंकमणि अम्मा ने कहा कि पूरे भारतीय परिप्रेक्ष्य में भक्ति आंदोलन को तुलनात्मक दृष्टि से  परखने की आवश्यकता है। वह श्री शंकराचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय ,कालडी एवं महात्मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के संयुक्त तत्वावधान में दो दिवसीय (23-24 मार्च ) राष्‍ट्रीय वेबिनार के  उद्घाटन सत्र में संबोधित कर रही थी। उन्‍होंने ‘भारतीय भाषाओं में भक्ति साहित्‍य : हिंदी और मलयालम का विशेष संदर्भ’ विषय पर व्‍याख्‍यान दिया।

 संगोष्‍ठी के संरक्षक महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्‍ल और श्री शंकराचार्य संस्‍कृ‍त विश्‍वविद्यालय, कालडी केरल के कुलपति प्रो. एम.वी. नारायण थे।

उद्घाटन सत्र में वरिष्‍ठ आलोचक प्रो. विनोद शाही ने ‘मध्‍यकालीन नवजागरण और भक्ति’ विषय पर अपने विचार रखते हुए शंकराचार्य के दर्शन और चिंतन के महत्व को भक्ति की अवधारणा से जोड़कर देखने पर बल दिया। सत्र का स्‍वागत वक्‍तव्‍य श्री शंकराचार्य संस्‍कृत विश्‍वविद्यालय, कालडी, केरल के हिंदी विभाग की प्रो. एवं अध्‍यक्ष तथा संगोष्‍ठी की संयोजक डॉ. के. श्रीलता ने दिया। उन्‍होंने संगोष्‍ठी के बहाने भक्ति साहित्‍य के सांस्‍कृतिक विमर्श और उसके पुनर्पाठ की आवश्‍यकता प्रतिपादित की। उद्घाटन सत्र का आभर वक्‍तव्‍य संगोष्‍ठी के समन्‍वयक हिंदी विश्‍वविद्यालय के हिंदी एवं तुलनात्‍मक साहित्‍य विभाग के प्रो. कृष्‍ण कुमार सिंह ने दिया। उदघाटन सत्र के पश्‍चात ‘सगुण भक्ति साहित्‍य का पुनर्चिंतन-तुलनात्‍मक परिप्रेक्ष्‍य‘ विषय पर कालिकट विश्‍वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व प्रोफेसर एवं भाषा समन्‍वयवेदी के संस्‍थापक डॉ. आरसु और ‘भक्तिकाल की कवयित्रियां और उनका साहित्य’ विषय पर चौधरी चरण सिंह विश्‍वविद्यालय, मेरठ के हिंदी विभाग के अध्‍यक्ष एवं कला संकाय के अधिष्‍ठाता प्रोफेसर नवीन चंद्र लोहनी ने विचार व्‍यक्‍त किये।

संगोष्‍ठी के दूसरे दिन 24 मार्च को ‘भक्ति साहित्‍य का सामाजिक प्ररिप्रेक्ष्‍य’ विषय पर दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर गोपेश्‍वर सिंह ने तथा महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के पूर्व प्रतिकुलपति प्रो. ए. अरविंदाक्षन ने ‘पुन्‍तानम का भक्ति साहित्‍य – सांस्‍कृतिक पुनर्पाठ’ विषय पर व्याख्यान दिया। काशी हिंदू विश्‍वविद्यालय, वाराणसी के हिंदी विभाग के प्रोफेसर प्रभाकर सिंह ने ‘उत्तर समय में भक्त कवि और भक्ति कविता का पुनर्पाठ’ विषय पर तथा त्रिशूर के बी. विजय कुमार ने ‘कृष्‍ण भक्ति का जनोन्मुखी चेहरा : कुचेलवृत्तम वज्चिप्‍पाट्ट्’ विषय पर अपने विचार व्‍यक्‍त किये। श्री शंकराचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय  के हिंदी विभाग की अध्यक्षा एवं संगोष्ठी की संयोजक  प्रो. के  श्रीलता  ने  इस तरह की गोष्ठी के महत्व पर बात करते हुए सभी विद्वानों के प्रति आभार व्यक्त किया। संगोष्‍ठी में दोनों विश्‍वविद्यालयों के अध्‍यापक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी बडी संख्‍या में शामिल हुए।

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