मोपका-चिल्हाटी जमीन घोटाले में तत्कालीन पटवारी और तहसीलदार की भूमिका संदिग्ध
बिलासपुर/अनिश गंधर्व. जिस नाटकीय ढंग से गरीब भोंदू दास को मोपका-चिल्हाटी में हुए जमीन घोटाले का आरोपी बनाया गया है उससे साफ पता चलता है कि आगे की कार्रवाई में कोई ठोस परिणाम सामने आने वाला नहीं है। राजस्व अधिकारियों और जमीन दलालों को बचाने के लिये सब कुछ पहले से तय है। मामले की तह तक जाने के लिये सबसे पहले तत्कालीन तहसीलदार और पटवारी को हिरासत में लेने की सख्त जरूरत है। कानून के जानकार शहर के अधिवक्ताओं का कहना है कि फर्जी रजिस्ट्री की बुनियाद पर जांच पड़ताल की जा रही है जबकि निस्तार पत्रक, मिशल रिकार्ड की जांच नहीं कराई गई और न ही के्रता विक्रेताओं को तत्कालीन तहसीलदार ने कभी न्यायालय में बुलाया न कि नोटिस जारी की गई। इसी तरह तत्कालीन दोषी पटवारी को कटघेरे में लाने की सख्त जरूरत है जिसने बिना जांच पड़ताल के प्रतिवेदन बनाया। पद का दुरूपयोग कर मालामाल हो चुके जिम्मेदार अधिकारियों की काली करतूतों पर पर्दा डाला जा रहा है।
भाजपा शासनकाल में हुए इस जमीन घोटाले के मामले में जमकर लीपापोती की जाती रही। रजिस्ट्रार आफिस के दागदार कर्मचारियों से मिलीभगत कर फर्जी रजिस्ट्री की गई। जबकि यह बात सभी जानते थे कि ग्राम चिल्हाटी खसरा नंबर 224 की डबरी को कूटरचना कर बेचा जा रहा था। जिला प्रशासन के आला अधिकारी जानबूझकर अंजान बने रहे। मामले को दबाने दोषी अधिकारी कर्मचारियों का तबादलता कर दिया और प्रमोशन भी दे दिया गया। पूरे प्रदेश में बिलासपुर जिला इन दिनों चर्चा में है। जिले के राजस्व अधिकारी जमीन दलालों के लिये जी जान लगाकर काम कर रहे हैं। सरकारी रिकार्ड में हेरफेर, मिशल रिकार्ड चोरी करा ली गई है। बिना चांदा मुनारा के राजस्व अधिकारी बेलगाम होकर काम कर रहे हैं। नाटकीय ढंग से गरीब भोंदूदास को हिरासत में लिया गया है। अगर मामले की केन्द्रीय टीम से जांच कराई गई तो दोषियों को जेल की हवा खाने से कोई रोक नहीं सकता। सबसे गौर करने वाली बात यह है कि जिस भोंदूदास ने साल 1976 में जिससे जमीन खरीदने का दावा किया है, उसकी मौत 1974 में ही हो चुकी थी। इसके बावजूद साल 2015 में नामांतरण और रिकॉर्ड के लिए फाइल राजस्व कार्यालय पहुंची तो बिना जांच ही तत्कालीन तहसीलदार संदीप ठाकुर ने साइन कर दिया। अब उन्हीं ने सरकंडा थाने में एफआईदर्ज कराई है।