शोषणमुक्त समाज के निर्माण के लिए मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ का संघर्ष साझा : पराते
भोपाल. भले ही छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश दो अलग राज्य बन गए हो, लेकिन शोषणमुक्त समाज के निर्माण के लिए उनका संघर्ष साझा है, क्योंकि शोषण से मुक्ति की आशा-आकांक्षाएं दोनों राज्यों की जनता में एक समान है। जल-जंगल-जमीन-खनिज और प्राकृतिक संसाधनों की लूट दोनों राज्यों में निर्मम तरीके से हो रही है और हमारे किसान और आदिवासी भाई-बहनों का इसके खिलाफ संघर्ष भी उतनी ही तेजी से बढ़ रहा है। मनुवाद आधारित जाति व्यवस्था का उत्पीड़न दोनों राज्यों की हकीकत है। इस लूट और उत्पीड़न के खिलाफ हमारा संघर्ष साझा है और सामाजिक उत्पीड़न के खिलाफ लड़ाई को वर्गीय उत्पीड़न से जोड़ने के काम में हम दोनों राज्यों में जुटे हुए हैं।
उक्त बातें मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के भोपाल में आयोजित 16वें मध्यप्रदेश राज्य सम्मेलन को अपनी शुभकामनाएं देते हुए छत्तीसगढ़ माकपा के सचिव संजय पराते ने कही। सम्मेलन में पूरे प्रदेश से निर्वाचित 200 प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे है। 16-18 जनवरी तक चलने वाले इस तीन दिनी सम्मेलन में माकपा महासचिव सीताराम येचुरी और पोलिट ब्यूरो सदस्य व पूर्व सांसद सुभाषिणी अली भी उपस्थित है।
मध्यप्रदेश माकपा के सम्मेलन को अपनी शुभकामनाएं देते हुए उन्होंने कहा कि यदि मध्यप्रदेश में किसानों पर गोलियां चलती है और आदिवासियों को जल समाधि लेने को मजबूर होना पड़ता है, तो छत्तीसगढ़ की स्थिति भी इससे अलग नहीं है। पूरा छत्तीसगढ़ भूमि विस्थापन की चपेट में है। इसके खिलाफ आंदोलन उबाल पर है। बस्तर में रोज गोलियां चल रही है। कॉर्पोरेट मुनाफे को सुनिश्चित करने के लिए आदिवासियों को नक्सली करार दिया जा रहा है। इन गोली कांडों की कहीं कोई सुनवाई नहीं है। मानवाधिकार आयोग, आदिवासी आयोग, सीबीआई आदि जितनी भी संस्थाओं की रिपोर्ट आई है, जिसमें इन जनसंहारों के लिए जिम्मेदारों को चिन्हित किया गया है, उनके खिलाफ पहले भाजपा और अब कांग्रेस सरकार कार्यवाही करने से इंकार कर रही है। बस्तर के सिलगेर में पिछले आठ माह से 2000 से ज्यादा आदिवासी अप्रैल 2021 में हुए गोलीकांड के जिम्मेदारों पर कार्यवाही करने और सैनिक छावनी हटाने की मांग पर धरना दे रहे हैं। बस्तर के कई जनसंहारों के खलनायक कल्लूरी आज भी कांग्रेस सरकार के राज में सुरक्षित है।
अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि ये परिस्थितियां बताती हैं कि दमन और उत्पीड़न के खिलाफ हम दोनों राज्यों के संघर्ष समान हैं। हमारी जनता की आशा-आकांक्षाएं, दुःख-दर्द समान है। इसकी अभिव्यक्ति का राजनैतिक माध्यम केवल मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ही हो सकती है। हमारी पार्टी, हमारे जन संगठनों की मजबूती और आम जनता के हितों के प्रति चिंता रखने वाले दूसरे संगठनों के साथ मिलकर साझा संघर्ष ही इस अभिव्यक्ति को और मजबूत कर सकते है। इस अभिव्यक्ति का स्वर जितना तेज होगा, हमारे देश का जनतांत्रिक आंदोलन उतना ही मजबूत होगा।
माकपा नेता ने देश और दोनों प्रदेशों के सामने फासीवादी आरएसएस और उसके हथियार भाजपा की राजनैतिक चुनौती का भी जिक्र किया, जो हमारे देश के बुनियादी मूल्यों को ही तहस-नहस करने पर तुली हुई है। उन्होंने कहा कि इन मूल्यों को हमने अपने स्वाधीनता संघर्ष के दौरान अर्जित किया है। इन मूल्यों ने ही हमारे देश को एक आधुनिक और सभ्य राज्य के रूप में विकसित किया है, लेकिन आज सांप्रदायिक-फासीवादी ताकतें हमारी आधुनिकता, सभ्यता और वैज्ञानिक सोच को कुचलकर एक बर्बर समाज में बदलने की साजिश रच रही है। पिछले दिनों छत्तीसगढ़ में आयोजित धर्म संसद का उल्लेख करते हुए पराते ने कहा कि इसमें न केवल हिन्दू धर्म की विकृत व्याख्या की गई थी, बल्कि धर्मनिरपेक्षता के तमाम प्रतीकों पर हमला किया गया और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हत्यारे को महिमामंडित किया गया। माकपा नेता ने इस आयोजन में कांग्रेसी नेताओं के शामिल होने की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि भाजपा के उग्र हिंदुत्व की राजनीति का मुकाबला नरम हिंदुत्व से करने की कांग्रेस की रणनीति और सोच पूरी तरह से गलत है। वास्तव में इस देश में धर्मनिरपेक्षता का कोई विकल्प नहीं है और एक कम्युनिस्ट के नाते दोनों राज्यों में धर्मनिरपेक्षता के लिए हमारा संघर्ष एक है।
अपने संबोधन में माकपा नेता ने आशा व्यक्त की कि दोनों राज्यों में वामपंथ और माकपा के झंडे तले चल रही छोटी-बड़ी लड़ाईयां एक दिन मानव-मुक्ति के एक विशाल संघर्ष में तब्दील होंगी, क्योंकि पूंजीवाद का पराभव अवश्यंभावी है और समाजवाद का कोई विकल्प नहीं है।