Ahok Gehlot और Sachin Pilot के बीच कलह जारी! इस बार कांग्रेस आलाकमान ने क्यों साधी चुप्पी?


जयपुर. राजस्थान (Rajasthan) की गहलोत सरकार के बीच घमासान कम होने का नाम नहीं ले रहा है. गहलोत सरकार के भीतर कलह के बढ़ते संकेतों पर कांग्रेस (Congress) आलाकमान की चुप्पी ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं. क्या यह चुप्पी जानबूझकर है या फिर आलाकमान कुछ लक्ष्यों को निशाना बनाकर चुप हैं? सच्चाई जो भी हो, वास्तविकता यह है कि इससे कांग्रेस खेमे में चल रहे तमाम गुटों के बीच मतभेदों का समाधान नहीं हुआ है और पार्टी के साथ-साथ पार्टी कार्यकर्ताओं की किस्मत अधर में लटकी हुई है.

दोनों गुट विधायकों के ‘शिकार’ में व्यस्त

छह बार के विधायक हेमाराम चौधरी ने 22 मई को कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और वह अपना इस्तीफा वापस लेने के लिए तैयार नहीं दिख रहे हैं. एक अन्य विधायक वेद प्रकाश सोलंकी ने इस्तीफा देने की धमकी दी है. दोनों प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के गुट से जुड़े हैं. इस बीच अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) खेमा अपने चिर प्रतिद्वंद्वी पायलट के खेमे से विधायकों के ‘शिकार’ में व्यस्त नजर आ रहा है. पायलट खेमे के दो ऐसे विधायक इंद्रराज गुजर और पीआर मीणा हैं, जिन्होंने हाल ही में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के काम की तारीफ ऐसे समय में की थी, जब पायलट के अन्य अनुयायी सरकार के काम पर सवाल उठा रहे थे.

कलह की कहानी जारी है

कलह की कहानी यहीं खत्म नहीं होती है क्योंकि गहलोत के बेहद करीबी माने जाने वाले दो मंत्रियों के बीच हाल ही में हुई कैबिनेट बैठक के दौरान कथित तौर पर कहासुनी भी चर्चा में है. एक मायने में गहलोत और उनके पूर्व डिप्टी के बीच अब मतभेद नहीं रहे बल्कि अब यह एक आंतरिक युद्ध है. कांग्रेस की राज्य इकाई, प्रदेश कांग्रेस कमेटी जमीन पर कमजोर दिखाई दे रही है, पिछले साल जुलाई से 39 सदस्यीय टीम के साथ काम कर रही है क्योंकि राज्य नेतृत्व के खिलाफ पायलट के खुले विद्रोह के बाद सभी स्थानीय कांग्रेस समितियों को भंग कर दिया गया था.

पार्टी में उठ रहे ये सवाल

फोन टैपिंग के मोर्चे पर चिंतित पार्टीजन इस बात से परेशान हैं कि उन्हें जीत का इनाम नहीं मिला. कुछ ऐसे सवाल भी हैं जो पार्टी के लोग पूछ रहे हैं. जैसे कि कुमार विश्वास की पत्नी को राजस्थान में राजनीतिक नियुक्ति क्यों दी गई है. विश्वास ने अमेठी में राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के खिलाफ चुनाव लड़ा था? उसे पुरस्कृत क्यों किया गया था? रिटायर्ड नौकरशाहों को प्रमुख राजनीतिक पदों पर क्यों नियुक्त किया जा रहा है जबकि पार्टी के लिए कड़ी मेहनत करने वाले पार्टी कार्यकर्ताओं को अभी तक पुरस्कृत नहीं किया गया है?

समिति भंग करने की मांग

एक मंत्री ने बताया कि विद्रोह के डर से राजनीतिक नियुक्तियों में देरी हो रही है. उन्होंने आगे कहा, अगर हम 10 कार्यकर्ताओं को एक पद देते हैं, तो बाकी 90 नखरे करेंगे और एक और विद्रोह हो सकता है जिसे हम महामारी के बीच अभी नहीं संभाल सकते हैं. एक पायलट शिविर अनुयायी ने कहा, ‘कांग्रेस में प्रतिद्वंद्वी खेमा इससे सहमत नहीं है. पार्टी में बगावत के बाद हमें नेतृत्व के मुद्दे पर समझौता करने के लिए कहा गया और हमने खेल के सभी नियमों का पालन किया. हमने पार्टी के खिलाफ कुछ नहीं कहा लेकिन अब, 11 महीने हो गए हैं जब एक समिति गठित की गई थी. हमारे मुद्दों में और यह समिति परिणाम लाने में विफल रही है. क्या आपको नहीं लगता कि समिति को भंग कर दिया जाना चाहिए? आलाकमान इस मुद्दे को क्यों नहीं देख रहा है.’

दूसरी लहर खत्म होने के बाद होंगी नियुक्तियां

एक अन्य कार्यकर्ता ने कहा कि पिछले साल जुलाई में अनुभवी नेताओं अहमद पटेल, के.सी. वेणुगोपाल और अजय माकन ने पायलट खेमे की शिकायतों को सुना. पटेल का निधन हो गया, लेकिन समिति के अन्य दो सदस्य शिकायतों को हल करने में सक्रिय नहीं हैं. इस बीच, राज्य पीसीसी प्रमुख गोविंद सिंह डोटासरा ने बताया कि कोविड की दूसरी लहर के बाद मामला शांत होने पर पार्टी राजनीतिक नियुक्तियां देने के लिए प्रतिबद्ध है.

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!