स्त्री अध्ययन कार्यक्रमों में स्त्री अस्मिता और अधिकार के विषयों में संतुलन की आवश्यकता है : प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल
वर्धा. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के स्त्री अध्ययन विभाग एवं क्षेत्रीय केंद्र, प्रयागराज के संयुक्त तत्वावधान में ‘अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के भारतीय अर्थ-संदर्भ’विषय पर मंगलवार 8 मार्च को आयोजित ऑनलाइन राष्ट्रीय संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने कहा कि स्त्री अध्ययन कार्यक्रमों में स्त्री अस्मिता और अधिकार के विषयों में संतुलन की आवश्यकता है ।
उन्होंने 1857 से लेकर 175 वर्षों के संघर्ष के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आज के संदर्भ में महिला सशक्तिकरण की चर्चा करते हुए पिछले संदर्भ को ध्यान में रखना आवश्यक प्रतीत होता है। आज़ादी के बाद संविधान, न्याय,स्वतंत्रता और समानता की गारंटी देता है परंतु वास्तव में महिलाओं को अभी भी इसके लिए संघर्ष करना पड़ता है। कुलपति प्रो. शुक्ल ने भारत में महिलाओं द्वारा किये गए अनेक आंदोलनों का उदाहरण देते हुए कहा कि महिलाओं ने पानी की समस्या से लेकर पर्यावरण के संरक्षण और पेड़ों की कटाई के विरोध में आंदोलन किये हैं। उनके संघर्ष का मूल्यांकन वर्तमान परिप्रेक्ष्य में किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि स्त्री – पुरुष समानता स्थापित करने और सुसंगत समाज निर्मित करने के लिए अपनी जड़ों को जानते हुए अपनी रचनाएँ खडी़ करनी चाहिए।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में भारतीय स्त्री शक्ति,मुंबई की उपाध्यक्ष श्रीमती नयना सहस्त्रबुद्धे ने कहा कि महिला सशक्तिकरण की दिशा में सकारात्मक पहल से महिलाओं की क्षमताओं का विकास करना चाहिए। महिलाओं के प्रश्नों को संवेदना और सहवेदना के साथ उठाते हुए समाज सुधारकों द्वारा किये गए कार्यों को प्रबुद्ध जनों के द्वारा आगे बढाना चाहिए।
सारस्वत अतिथि के रूप में मुंबई विश्वविद्यालय के मुंबई स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एण्ड पब्लिक पॉलिसी की प्रो. मेधा तापियावाला ने अपने उद्बोधन में कहा कि आज भी महिलाओं को लेकर नकारात्मकता का भाव दिखाई देता है। उन्होंने कहा कि निर्णय प्रक्रिया में भागीदारी बढाने और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने से महिलाओं के सशक्तिकरण में मदद मिलेगी। उन्होंने महिलाओं की आर्थिक,सामाजिक एवं सांस्कृतिक समस्याओं पर विस्तार से प्रकाश डाला। इस अवसर पर डॉ.ऋचा द्विवेदी की चार पुस्तकें यथा पंत और कालाकांकर,हरसिंगार की टहनियाँ,काव्य और संगीत में अंतःसंबंध,मुक्तिबोध की कविताओं में संवेदना और शिल्प का विमोचन कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल द्वारा किया गया।
कार्यक्रम में विषय प्रवर्तन स्त्री अध्ययन विभाग की अध्यक्ष डॉ. सुप्रिया पाठक ने किया। उन्होंने सन 1848 में जर्मनी की महिलाओं का संघर्ष और इसी वर्ष भारत में सावित्रीबाई फुले द्वारा महिलाओं की शिक्षा हेतु किये गए कार्य को उद् धृत करते हुए महिलाओं के संघर्ष को वैश्विक पृष्ठभूमि के संदर्भ में व्याख्यायित किया। स्वागत वक्तव्य प्रयागराज क्षेत्रीय केंद्र के अकादमिक निदेशक प्रो. अखिलेश कुमार दुबे ने दिया। उन्होंने सामंजस्य पर आधारित स्त्री- पुरुष समानता और भारतीय मूल्यों के प्रभाव की चर्चा अपने वक्तव्य में की। कार्यक्रम का संचालन प्रयागराज क्षेत्रीय केंद्र की सहायक प्रोफेसर डॉ. आशा मिश्रा ने किया तथा धन्यवाद सहायक प्रोफेसर डॉ. शरद जायसवाल ने ज्ञापित किया। इस कार्यक्रम में डॉ. अवन्तिका शुक्ला, डॉ.अख्तर आलम, डॉ.हरप्रीत कौर,डॉ.विजया सिंह, डॉ.अनुराधा पाण्डेय, डॉ.अनूप कुमार, डॉ.विजय सिंह तथा अन्य अध्यापकगण, शोधार्थी तथा विद्यार्थियों ने बड़ी संख्या में सहभागिता की।