छंदशाला में गीतों की छाई बहार


बिलासपुर/छंदशाला की मासिक काव्यगोष्ठी का आयोजन सांई आनंदम् उसलापुर में किया गया।इस आयोजन में छंदशाला के सभी सदस्य रचनाकार उपस्थित रहे। इस काव्य गोष्ठी की खास बात यह रही कि गोष्ठी पूर्णतः गीत पर आधारित थी जिसमें छंदशाला के कवियों ने एक से बढ़कर एक गीत की प्रस्तुति दी।
वरिष्ठ कवि बुधराम यादव ने ‘बेहतर होती मौन साधना ‘गीतकार विजय तिवारी ने ‘कुछ मेरे मन के भीतर , कुछ तेरे मन में, वरिष्ठ कवि ओमप्रकाश भट्ट ने बदली मथुरा, बदली काशी, बदले नहीं अयोध्या- वासी गीत पढ़ा तो अमृतलाल पाठक ने क्या बताऊं मुफ्त की रोटी नहीं भाई मुझे,तो गीतकार डॉ.सुनीता मिश्रा ने”साहस मेरा मुझ पर भारी ,दूरी तय करके माने ” कवयित्री मनीषा भट्ट ने रिश्तों की रोटी जल जाती ,राग द्वेष की आड़ में ‘कवि शैलेंद्र गुप्ता ने जंगल- जंगल गांव शहर में दरख़्त काट रहे हो ,कवि अवधेश भारत ने हे रोटी तेरी महिमा गाए सकल जहान ,कवि विनय पाठक ने राणा पर्वत पर गए लिए जीत की आस ,हूपसिंह क्षत्रिय ने मैं कहूंगा ,यही बालपन बालपन , मयंक मणि दुबे ने रात का अंतिम प्रहर है गीत की प्रस्तुति दी ।सभी गीत शुद्ध मानक पर आधारित और गेयता की दृष्टि से उच्चकोटि के थे ।
आज के गोष्ठी की खास बात यह रही कि छंदशाला पटल पर 1जून से गीतकारों का अभ्यास चल रहा है जिसमें हर दिन अलग-अलग विषय दिया जाता है जिसपर छंदशाला के सक्रिय छंद साधकों द्वारा गीतों का सृजन किया जाता है।आज की गोष्ठी में अभ्यास काल के गीतों को ही पढ़ा गया और गीतों की रसधार ऐसी बही कि हरेक ने दो दो गीतों को गाकर समां बांध दिया ।
कार्यक्रम का संचालन मयंक मणि दुबे ने और आभार प्रदर्शन छंदशाला की संयोजिका व कवयित्री डॉ. सुनीता मिश्रा ने किया।
छंदशाला के काव्यानुशासित वातावरण में यह काव्य गोष्ठी अमिट छाप छोड़ गयी जिसमें श्रोता आकंठ डूबे रहे ।कार्यक्रम में छंदशाला परिवार के सदस्य एवं नगर के कवि, रचनाकार एवं श्रोता उपस्थित थे ।

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