जिनके पूर्वज अंग्रेजों की चाटुकारिता में स्वतंत्रता आंदोलन का विरोध करते रहे, अब सत्ता में बने रहने के लिए गौरव दिवस मना रहे

धरती के आबा भगवान बिरसा मुंडा के कृतित्व आज के परिवेश में और अधिक प्रासंगिक
 
भगवान बिरसा मुंडा ने आदिवासी हितों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी, वर्तमान सरकार आदिवासियों के अधिकारों को बलपूर्वक कुचल रही है


रायपुर/17 नवंबर 2025।
 जनजातीय गौरव दिवस के सरकारी आयोजनों को राजनैतिक पाखंड करार देते हुए प्रदेश कांग्रेस कमेटी के वरिष्ठ प्रवक्ता सुरेंद्र वर्मा ने कहा है कि जिन संघीयों और भाजपाइयों के पूर्वज अंग्रेजों की चाटुकारिता में स्वतंत्रता आंदोलन का विरोध करते रहे, अब सत्ता में बने रहने के लिए स्वतंत्रता संग्राम के अमर शहीद भगवान बिरसा मुंडा के नाम पर गौरव दिवस मना रहे, भाजपाइयों के राजनैतिक पाखंड को जनता समझ चुकी है। भगवान बिरसा मुंडा नें सीमित संसाधनों के बावजूद अंग्रेजी साम्राज्य को कड़ी चुनौती दी और आदिवासी समाज के शोषण के विरुद्ध संघर्ष का बिगुल फूंका। भगवान बिरसा मुंडा के बताए रास्तों पर चलना वर्तमान परिवेश में आवश्यक हो गया है, ताकि सत्ता के संरक्षण में जल, जंगल, जमीन और खनिज संसाधनों की लूट और कंपनी राज के षडयंत्रों के खिलाफ एकजुट होकर लड़ा जाए।


प्रदेश कांग्रेस कमेटी के वरिष्ठ प्रवक्ता सुरेंद्र वर्मा ने कहा है कि यह ऐतिहासिक तथ्य है कि संघीयों, भाजपाइयों और उनके पितृ संगठनों की भूमिका आजादी की लड़ाई के दौरान नकारात्मक थी, अपने पितृ संगठनों के कालिख पुते इतिहास पर पर्देदारी करने और सत्ता कायम रखने के लिए भाजपाई महापुरुषों के कृतित्व का राजनीतीकरण कर रहे हैं। भगवान बिरसा मुंडा ने मात्र 20 वर्ष की आयु में अंग्रेजों के शोषण और अत्याचारों के विरुद्ध संघर्ष प्रारंभ कर दिया था। अंग्रेज शासन ने उन्हें पकड़ने के लिए पांच वर्षों में 75 असफल छापे मारे थे।आदिवासी समाज उन्हें भगवान की उपाधि देकर “धरती आबा“ के रूप में पूजते हैं। भगवान बिरसा मुंडा ने आदिवासी हितों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी, उस दौर में एक वर्ग अंग्रेजों के साथ खड़ा था अब उन्हीं के वैचारिक वंशजों की वर्तमान सरकार आदिवासियों के अधिकारों को बल पूर्वक कुचलने का काम कर रही है।


प्रदेश कांग्रेस कमेटी के वरिष्ठ प्रवक्ता सुरेंद्र वर्मा ने कहा है कि भगवान बिरसा मुंडा ने आदिवासी समाज को संगठित कर शोषण के विरुद्ध संघर्ष का बिगुल फूंका। वर्तमान दौर में एक बार फिर आदिवासी हितों पर डकैती हो रही है। वर्तमान सरकार के द्वारा वन अधिकार अधिनियम 2006 के प्रावधानों में आदिवासी हितों के विरुद्ध संशोधन किए गए, पेसा कानून के प्रावधानों का खुलेआम उल्लंघन हो रहा है, कोल बेयरिंग एक्ट में आदिवासी विरोधी संशोधन किए गए, वन अधिकार अधिनियम के तहत आबंटित पट्टे बड़ी संख्या में निरस्त किए जा रहे हैं, इरादातान षडयंत्र पूर्वक पट्टे की भूमि का रिकॉर्ड गायब किया जा रहा है, आदिवासी क्षेत्रों के संसाधन भाजपाइयों के पूंजीपति मित्रों पर लुटाए जा रहे हैं, इस सरकार के कथनी और करनी में बड़ा फर्क है अतः वर्तमान परिवेश में धरती के आबा भगवान बिरसा मुंडा के कृतित्व और उनके संदेश और अधिक प्रासंगिक हो गया है, सरकार इवेंट के बजाय आदिवासियों के अधिकारों के संरक्षण और संवर्धन पर जमीनी स्तर पर काम करे।

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