हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति ने एसआईटी जाँच को लेकर दुष्प्रचार का खंडन किया
वर्धा. महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के फर्जी डिग्री मामले को लेकर एक अंग्रेजी दैनिक में प्रकाशित समाचार को भ्रामक बताया है। उन्होंने कहा है कि समाचार में तथ्यों के साथ तोड़फोड़ की गई है। उन्होंने कहा कि उत्तरप्रदेश की एसआईटी के द्वारा फर्जी डिग्री की जांच रिपोर्ट को उत्तर प्रदेश सरकार ने स्वयं असंगत होने के फलस्वरूप 03 जून 2021 को पुन: जांच प्रारंभ की। उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा 03 जून 2021 को जारी आदेश के तहत एसआईटी ने 02 सितंबर 2021 को पत्र भेजकर उन्हें अपना अभिकथन अंकित करने को कहा। नई जाँच का संज्ञान न लेते हुए एसआईटी की पुरानी जाँच रिपोर्ट के आधार पर पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर अनर्गल और भ्रामक आरोप लगाते हुए समाचार प्रकाशित किया गया। जब विधिक दृष्टि से नई जाँच शुरू हो गई है, तब पुरानी एवं असंगत जाँच रिपोर्ट के आधार पर आरोप लगाने के पीछे व्यक्ति की मर्यादा को चोट पहुँचाने और विधिक जाँच को प्रभावित करने की मंशा दिखती है।
प्रो. शुक्ल ने बताया, “एसआईटी के 02 सितंबर 2021 के पत्र के आलोक में मैंने एसआईटी उत्तर प्रदेश को शपथ पत्र के माध्यम से बताया था कि जाँच शासनादेश संख्या 1008पी / 6पुर 3.2013 गृह पुलिस अनुभाग 3 दिनांक 29.05.2014 के द्वारा सम्पूर्णानन्द संस्कृत विद्यालय में अनियमिताओं की जाँच (51/2014) वाराणसी एस.आई.टी. द्वारा की गई, जिसकी अन्तिम जाँच आख्या दिनांक 09.11.2020 को प्रस्तुत की गई है, उसमें आरोप था कि सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी के अधिकारियों एवं कर्मचारियों द्वारा शैक्षिक अभिलेखों में अनियमितता की जा रही है। एस.आई.टी. द्वारा कोई ऐसा तथ्य उद्घाटित नहीं किया गया है जो दिनांक 23.03.2011 से दिनांक: 19.12.2011 तक कार्यवाहक कुलसचिव के रूप में कार्यरत मेरे द्वारा न उठायी गई हो। अपितु यह जाँच उसकी पुष्टि मात्र है।”
प्रो. शुक्ल ने बताया, “दिनांक 23 मार्च 2011 को कुलसचिव का कार्यभार संभालते ही मैंने प्राप्त शिकायतों पर कार्यवाही प्रारंभ की तथा प्रकरण की गंभीरता को समझते हुए केवल सात दिन में दो कर्मचारियों श्री विजय शंकर शुक्ल (स्थानापन्न सहायक कुलसचिव) एवं अधीक्षक तथा कार्यालय सहायक श्री मिहिर मिश्र के विरुद्ध सत्यापन पत्र में गड़बड़ी के लिये थाना चेतगंज में दिनांक 29.03.2011 को प्राथमिकी दर्ज करायी। उक्त दोनों के विरुद्ध विभागीय जाँच भी संस्तुत की तथा इस हेतु जाँच समिति गठित की। छानबीन के बाद प्रथम दृष्टया दोषी पाये जाने पर दोनों को दिनांक 15.04.2011 को निलम्बित किया और पुलिस दवारा उन्हें गिरफ्तार किया गया। गहन छानबीन के बाद बागपत डायट को सत्यापन आख्या उपलब्ध करायी गयी और दो व्यक्तियों शमा परवीन एवं रेखा तोमर की गलत ढंग से प्राप्त शास्त्री की उपाधि को विद्या परिषद् की बैठक दिनांक 27.07.2011 में निरस्त किया गया। समिति ने दिनांक 24.04.2011 को ही अपनी अन्तरिम रिपोर्ट कुलपति को प्रस्तुत की और जिसमें सघन जाँच की संस्तुति दी गई। दिनांक 24.04.2011 को ही प्रकरण की जटिलता को समझते हुए विश्वविद्यालय के विनयाधिकारी (प्रॉक्टर) को भी इस समिति में जोड़ा गया। सत्यापन में किसी प्रकार की हेरफेर न हो इसके लिये उक्त समिति को सत्यापन के सभी प्रकरणों का अभिलेखों से मिलान कर भेजने के लिये संगणक डाटा से भी प्रमाणित कराना प्रारंभ किया जिसे परीक्षा समिति ने अपनी स्वीकृति भी दी।”
23 मार्च 2011 से 05 जनवरी 2012 तक नौ महीने 13 दिनों के मेरे कुलसचिव के कार्यकाल में ही फर्जीगिरी के विरुद्ध कार्यवाही एवं दोषियों को दण्डित करने का कार्य प्रारंभ हुआ।