वायरस
हमारे सपूत किसी वायरस के शिकार हो गए हैं।उनमें नेतागीरी के लक्षण धीरे-धीरे उभरते जा रहे हैं।यह पुत्र के बिगड़ने की शुरुआत है।अभी इसकी रोकथाम हो सकती है।
होली का सीजन था और हमारे चिरंजीव अपने जैसे चार निकम्मों को साथ लेकर लोगों के घरों में दस्तक दे रहा था।पता करने पर ज्ञात हुआ कि वह होली मिलन समारोह के लिए चंदा मांगते फिर रहा है।
जिस दिन वह झकाझक सफेद पायजामा और कुर्ता पहन कर घर से बाहर जाता है तो हम समझ जाते हैं कि कोई प्रोग्राम होने वाला है।इसका खुलासा दूसरे दिन अखबारों में होता है।अख़बारों में उसकी फोटो छपती है तो वह वंदना की मुद्रा में होती है।जिसमें हमारा यह नालायक पुत्र हाथ जोड़े खांटी नेता के रूप नज़र आता है।
हमें शुरू से नेतागीरी से चिढ़ रही है इसीलिए पुत्र को राजनीति शास्त्र की बजाय अर्थशास्त्र की पढ़ाई करवाई।हमें क्या पता था कि नेतागीरी के लिए राजनीति शास्त्र की पढ़ाई जरूरी नहीं है, अर्थशास्त्र का ज्ञान होना जरूरी है।और हुआ वही जिसका हमें डर था।पार्षद चुनाव होने वाले थे जिसकी टिकट की दौड़ में वह अव्वल चल रहा था।इस तरह उसकी नेतागीरी शुरू हुई।जो चीज शुरू हो जाती है वह फिर कहां थमती है ?
वह पार्षद पद के बाद विधायिकी, विधायिकी के बाद मंत्रित्व की दौड़ दौड़ने लगा।इस तरह हमारा बच्चा हमारे हाथ से निकलता गया।हम ठगे से रह गए।भगवान न करे यह दिन किसी और बाप को दिखाए।अब तो हमारा बच्चा घर भी आना छोड़ दिया है।कितने सपने देखे थे हमने?एक मात्र पुत्र हमारे बुढ़ापे की लाठी बनेगा,धूम-धाम से उसकी शादी करेंगे और दो-चार साल में पोते-पोती हमारी गोद में खेलेंगे,पर सब कुछ पानी फिर गया।
बेटा आजकल बड़ा आदमी हो गया।अर्थशास्त्र की डिग्री बहुत काम आ रही है उसकी।धन का मैनेजमेंट वह कुछ इस तरह करता है कि छापा पड़ने का खतरा ही नहीं रहता।
यह भी सुनता हूं कि वह किसी से लव मैरिज कर लिया है।उसकी पत्नी के पास कॉमर्स की डिग्री है याने कमाई के सारे चांस उसके पास हैं।बड़ी सी गाड़ी में जब वह निकलता हैं तो उसे पास से गुजरने वाला बाप तक नज़र नहीं आता।लोग ठीक कहते हैं कि नेता और पुलिस वाले अपने बाप को भी नहीं पहचानते।हमारे मन में यह सवाल उठता रहता है कि नेताओं का कोई अधिकृत बाप भी होता है या नहीं ?