November 24, 2024

दुर्घटना के इंतजार में कौन…?

शीर्षक पढ़कर चौंक गए न? आपका चौंकना स्वाभाविक है और मेरा प्रश्न भी जरूरी है । मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं कि बीते 23 जून को समलेश्वरी मंदिर रामबांधा तालाब के पास एक बड़ा पीपड़ पेड़ का भारी भरकम डाल टूटा और यह डाल मंदिर के टूटे छत के सहारे टिका हुआ है । यह पेड़ का डाल टूटकर बैगा पंचराम तंबोली के घर के सामने तक गिरा था ।

बैगा ने अपने घर आने जाने के लिए इस टूटे हुए पेड़ के डाल को छटनी करके अपनी सुविधा तो बना ली लेकिन एक सप्ताह बीत जाने के बाद भी इस टूटे पेड़ के डाल को जो मंदिर के छत से टिका हुआ और सड़क पर फैला हुआ है इसे किसी ने वहां से हटाने का प्रयास नहीं किया । ऐसे मे यह प्रश्न सहज ही उठता है कि आखिर दुर्घटना को आमंत्रित करते इस टूटे पेड़ की भारी भरकम डाल को कौन हटाएगा ..? और दुर्घटना का इंतजार किसको है? जिस मंदिर पर यह डाल अटका है उस मंदिर के निर्माण करता को ? नगरपालिका को ? वन विभाग को ? इस पेड़ को लगाने वाले को ? या फिर इस टूटे हुए डाल से संभावित रुप से हाथ पैर तुड़वाने वाले , सिर फुटवाने या फिर मरने वाले के परिवार वालों को ?
क्या नियम कायदे के बीच फंसा यह टूटा पेड़? 
बहुत पहले मैंने एक व्यंग पढ़ी थी इस कारण भी मेरे मन मे यह सवाल सहज ही उत्पन्न हुआ कि  क्या  नियम कायदे के बीच यह पेड़ भी तो नहीं फंस गया ? व्यंग मे बताया गया था कि एक भारी भरकम पेड़ टूट कर गिरता है और उसमें एक आदमी दब जाता है । कुछ लोग उस पेड़ को हटाने काटने के लिए बढ़ते हैं तब एक कथित जागरूक व्यक्ति उनको रोकता है और कहता है कि वन विभाग के अनुमति बिना तुम लोग पेड़ को हाथ मत लगाओ ।
उसके सलाह के अनुसार लोग वन विभाग से संपर्क करते है वन विभाग के अधिकारी आते है और पेड़ को देखकर कहते है कि यह राजस्व क्षेत्र मे आता है इसलिए वन विभाग इस पेड़ को काटने मे असमर्थ है । ( इन सब सलाह मशविरा के बीच पेड़ मे दबा व्यक्ति कराहता रहता है ) इसी बीच कुछ लोग राजस्व विभाग के अधिकारियों को बुलाकर लाते है । वे जैसे ही पेड़ को काटने हटाने का प्रयास करते है एक बहुत ही होशियार या यूं कहे कि नेता का पढ़ा-लिखा चमचा सामने आ जाता है और उनको पेड़ काटने से रोकते हुए कहता है कि इस पेड़ को हमारे नेताजी के पिताजी ने लगाया था अत: उनके परिवार की सहमति के बिना पेड़ काटोगे तो क्या अंजाम होगा आप लोग ठीक से सोच समझ लो । इस तरह चर्चाओं का सलाह मशविरा का लंबा दौर चलते रहता है और इस चर्चा के बीच पेड़ मे दबे व्यक्ति की आवाज सदा के लिए बंद हो जाती है यानि उसकी मौत हो जाती है ।
-अनंत थवाईत, स्वतंत्र पत्रकार चांपा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Previous post भूविस्थापित और खनन प्रभावित किसानों की पंचायत में केंद्र सरकार की पुनर्वास नीति लागू करने की मांग
Next post गांधी का संपूर्ण जीवन योगमय था : प्रो. आरके गुप्ता
error: Content is protected !!