Facebook ने क्यों बदला अपना नाम? जुकरबर्ग के इस कदम के मायने हैं खास

सिडनी. फेसबुक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी  (CEO) मार्क जुकरबर्ग ने कंपनी का कॉरपोरेट नाम बदलकर ‘मेटा’ करने का फैसला लिया है. उन्होंने कहा कि यह कदम इस फैक्ट को दर्शाता है कि कंपनी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म (जिसे अभी भी फेसबुक कहा जाएगा) की तुलना में बहुत व्यापक है.

‘मेटा’ हुआ नया कॉरपोरेट नाम 

यह कदम कंपनी और मार्क जुकरबर्ग की ओर से ‘मेटावर्स’ पर कई महीनों के विचार-विमर्श के बाद उठाया गया है. वर्चुअल रियलिटी (VR) और ऑगमेंटेड रियलिटी (AR) जैसी तकनीकों का इस्तेमाल करके रियल और डिजिटल दुनिया को और अधिक निर्बाध रूप से इंट्रीग्रेटेड करने के विचार को मेटावर्स कहा जाता है.

जुकरबर्ग ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि मेटावर्स एक नया ईकोसिस्टम होगा, जिससे कंटेंट तैयार करने वालों के लिये लाखों नौकरियां तैयार होंगी. हालांकि आलोचकों का कहना है कि यह हाल में फेसबुक पेपर्स से दस्तावेज लीक होने से पैदा हुए विवाद से ध्यान भटकाने की कोशिश हो सकती है.

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या यह पीआर की एक कवायद मात्र है, जिसमें जुकरबर्ग कई साल से जारी विवादों के बाद फेसबुक को नए रंग-रूप में पेश करने की कोशिश कर रहे हैं या फिर यह कंपनी को सही दिशा में स्थापित करने की एक कोशिश है जिसे वह कंप्यूटिंग के भविष्य के रूप में देखते हैं?

मेटावर्स की दुनिया में फेसबुक का सफर

इस फैसले पर मार्कस कार्टर (सीनियर लेक्चरर, यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी) और बेन एगलिस्टन (सीनियर फेलो, क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉग) ने कहा कि एक तथ्य जिसपर चर्चा नहीं की जा रही है यह है कि फेसबुक ने साल 2014 में ही दो अरब अमेरिकी डॉलर में वीआर हेडसेट कंपनी ‘ऑक्यूलस’ का अधिग्रहण कर लिया था, जिसके साथ ही कॉर्पोरेट अधिग्रहण, निवेश और रिसर्च का सिलसिला शुरू हो गया था और आज जो हम देख रहे हैं वह पिछले सात साल की कवायद का नतीजा है.

ऑक्यूलस एक आकर्षक किकस्टार्टर कैंपेन के तौर पर उभरा था, और इसके कई समर्थक “गेमिंग के भविष्य” को लेकर उनके विचार को सिलिकॉन वैली में खास तवज्जो नहीं मिलने से नाराज थे, लिहाजा जब उन्हें लगा कि फेसबुक उनके विचारों को आगे ले जाने का एक बेहतर मंच साबित हो सकता है तो कंपनी को फेसबुक को बेच दिया गया.

फेसबुक के अधीन ऑक्यूलस ने वीआर बाजार में अपना दबदबा कायम किया और इस बाजार में उसकी हिस्सेदारी 60 फीसदी से ज्यादा हो गई. इसका श्रेय कंपनी को फेसबुक के विज्ञापन कारोबार से मिलने वाली भारी रियायत और मोबाइल “क्वेस्ट” वीआर हेडसेट के साथ उसके कोऑर्डिनेशन को दिया जाता है.

ऑक्यूलस के अलावा भी फेसबुक ने वीआर और एआर में भारी निवेश किया. फेसबुक रिएलिटी लैब्स की अंडर इन तकनीकों पर लगभग 10 हजार लोग काम कर रहे हैं. इनमें से फेसबुक के कर्मचारियों की संख्या 20 प्रतिशत है. पिछले हफ्ते, फेसबुक ने अपने मेटावर्स कंप्यूटिंग प्लेटफॉर्म पर काम करने के लिए यूरोपीय संघ में 10 हजार और डेवलपर्स को नियुक्त करने की योजना की घोषणा की थी.

इस तरह मेटावर्स की दुनिया में प्रभुत्व जमाने की फेसबुक की योजना कोई नई नहीं है. कंपनी इस पर पहले से ही काम कर रही थी.

प्रभुत्व क्यों चाहती है फेसबुक?

उन्होंने कहा कि हम सोशल मीडिया के मौजूदा दृष्टिकोण को देखकर मेटावर्स को लेकर फेसबुक के दृष्टिकोण का अनुमान लगा सकते हैं. इसने हमारे डेटा का इस्तेमाल कर हमारे ऑनलाइन जीवन को ताकत, नियंत्रण और निगरानी के आधार पर रेवेन्यू की धारा से जोड़ दिया है. यानी आप अपना डेटा कंपनी को दीजिए और बदले में कंपनी आपको रेवेन्यू प्राप्त करने का मंच प्रदान करेगी. ऐसे में मेटावर्स की दुनिया में पैर जमाकर फेसबुक अपने ग्राहकों को किसी न किसी तरह से अपने साथ जोड़े रखना चाहती है.

वीआर और एआर हेडसेट उपयोगकर्ता और उनके परिवेश के बारे में भारी मात्रा में डेटा जमा करते हैं. यह इन उभरती टेक्नोलॉजी के आसपास के प्रमुख नैतिक मुद्दों में से एक है, और संभवतः फेसबुक के स्वामित्व और विकास में इसका महत्वपूर्ण योगदान भी है. लिहाजा, कंपनी चाहती है कि वह किसी भी तरह से टेक्नोलॉजी के लिहाज से पुरानी न पड़े, इसलिये वह मेटावर्स की दुनिया में प्रभुत्व कायम रखना चाहती है.

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!