September 20, 2024

लोकतंत्र को ख़तरे के साथ अब अमीर और गरीब की खाई और बढ़ रही है-शैलेश

मोदीवाद अब पूंजीवाद का पर्याय बनता जा रहा है- शैलेश

मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों के कारण पूंजीवाद देश में एक चुनौती बनता जा रहा है

बिलासपुर. हमारा देश एक कृषि प्रधान देश हुआ करता था और शायद अभी भी है और पहले जय जवान जय किसान का नारा दिया जाता था ताकि हमारी आर्थिक स्तिथि और सुरक्षा सुधरे, लेकिन देश में पिछले कुछ वर्षों में खास तौर से चार वर्षों में जिस तरह से निवेश के खाते बढ़े है और आज 16 करोड़ से भी ज्यादा खाते हो गये है इससे साफ़ होता है कि देश में कैपिटलिज्म बढ़ता जा रहा है और एसा पहले नहीं होता था।पहले “ज़िंदगी के साथ भी और ज़िंदगी के बाद भी” के नारे से संतुष्टि मिलती थी और सुरक्षा महसूस होती थी,अब पूंजीवाद के बढ़ने से खतरे भी बढ़ रहे है और आने वाले समय में सत्ता का अंकुश ख़त्म हो जाएगा।बेरोज़गारी बढ़ रही है इसके कारण लोग आय के स्रोत ढूँढ रहे है और कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा है।मोदी सरकार पूंजीवाद को बढ़ावा दे रही है, जिससे लोकतंत्र को गहरा खतरा है। पूंजीवाद के कारण कॉर्पोरेट घरानों का लोकतंत्र पर नियंत्रण बढ़ रहा है, जिससे लोकतंत्र की मूल भावना खतरे में पड़ रही है। यह कॉर्पोरेट घरानों को सरकार की नीतियों को निर्धारित करने की शक्ति दे रहा है, जिससे लोगों के हितों की अनदेखी हो रही है।

पूंजीवाद के कारण मीडिया पर कॉर्पोरेट घरानों का नियंत्रण भी बढ़ रहा है, जिससे सच्चाई को दबाया जा रहा है और लोगों को गुमराह किया जा रहा है। यह मीडिया की स्वतंत्रता को खतरे में डाल रहा है और लोगों को सही जानकारी से वंचित कर रहा है और कहीं न कहीं सत्य छुप सकता है।

यही नहीं पूंजीवाद के कारण सामाजिक असमानता भी बढ़ रही है, जिससे लोकतंत्र की मूल भावना खतरे में पड़ रही है। यह गरीबों और अमीरों के बीच की खाई को बढ़ा रहा है और सामाजिक तनाव को बढ़ा रहा है।
और पर्यावरणीय क्षति भी हो रही है, जिससे लोगों के स्वास्थ्य और जीवन पर खतरा हो रहा है। यह प्रदूषण, जंगलों की कटाई, और जल संसाधनों के दोहन जैसी समस्याओं को बढ़ा रहा है। श्रमिकों का शोषण भी हो रहा है, जिससे लोगों के अधिकारों का हनन हो रहा है। यह श्रमिकों को कम वेतन, लंबे कार्य घंटे, और खराब कार्य स्थितियों के साथ छोड़ रहा है। इन सभी खतरों को देखते हुए, हमें पूंजीवाद के साथ-साथ लोकतंत्र और सामाजिक न्याय को भी बढ़ावा देना चाहिए। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि लोकतंत्र की मूल भावना को बनाए रखा जाए और लोगों के हितों की अनदेखी न हो। पूंजीवाद के कारण राजनीतिक दलों पर कॉर्पोरेट घरानों का प्रभाव बढ़ रहा है, जिससे राजनीतिक निर्णयों में कॉर्पोरेट हितों को प्राथमिकता दी जा रही है। यह लोकतंत्र की मूल भावना को खतरे में डाल रहा है और लोगों के हितों की अनदेखी कर रहा है।
सामाजिक सेवाओं जैसे कि शिक्षा, स्वास्थ्य, और पेंशन का निजीकरण हो रहा है, जिससे गरीबों और वंचितों को इन सेवाओं से वंचित किया जा रहा है। यह सामाजिक असमानता को बढ़ा रहा है और लोकतंत्र की मूल भावना को खतरे में डाल रहा है। इसके अलावा, पूंजीवाद के कारण पर्यावरणीय नीतियों की अनदेखी हो रही है, जिससे पर्यावरणीय क्षति हो रही है और लोगों के स्वास्थ्य और जीवन पर खतरा हो रहा है। यह प्रदूषण, जंगलों की कटाई, और जल संसाधनों के दोहन जैसी समस्याओं को बढ़ा रहा है।

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