May 2, 2022
विश्व श्रमिक दिवस : कार्य की सिद्धि केवल इच्छा से नहीं वरन् कठिन परिश्रम से होती है : योग गुरु
भोपाल. आदर्श योग आध्यात्मिक केंद्र स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल ने बताया कि मई की पहली तारीख यानी 1 मई को को दुनिया भर के श्रमिकों और मजदूरों को समर्पित अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस है। यह दिन मजदूरों के लिए मनाया जाता है। ये दिन उन्हें उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
योग गुरु अग्रवाल ने कहा कि जब आप ठहरे पानी में पत्थर फेंकते हैं तो नहीं जानते उसकी लहरें कितनी दूर तक जाएंगी। अकसर जब हम मुश्किलों का सामना करते हैं तो मनुष्य के रूप में कोई देवता हमें प्रेरित करता है और रास्ता दिखलाता है। ऐसा समय आता है, जब हम अपनी ही क्षमताओं पर विश्वास नहीं कर पाते, लेकिन उस दौरान प्रोत्साहन के शब्द हमें आगे बढ़ने का हौसला देते हैं। आज हम जहां भी हैं, वह इसलिए है कि जीवन के किसी मोड़ पर किसी ने हम पर इतना विश्वास किया था, जितना कि हम भी खुद पर नहीं करते थे। अब हमारी बारी है कि दुनिया के लिए वह करें, जो दुनिया ने हमारे लिए किया था। अगर वे विश्वास की खोज कर रहे हैं तो हम उन्हें भरोसा दिला सकते हैं। अगर ने प्रेरणा की तलाश कर रहे हैं तो हम उनके लिए प्रेरणा बन सकते हैं। जब तक उन्हें अपने पर यकीन नहीं आता, हम उनमें वह यकीन पैदा कर सकते हैं।
हम सभी किसी न किसी के यहां काम करते हैं, लेकिन फिर भी हम सभी के लिए नहीं तो जीवन में आने वाले कुछ लोगों के लिए जरूर प्रेरणा बन सकते हैं। उत्सव मनाइए, आज हमरा श्रम दिवस है। कहा गया है कि कर्म ही जीवन है । कर्म के अभाव में जीवन का कोई अर्थ नहीं रह जाता । मनुष्य को जीवनपर्यन्त कोई-न-कोई कर्म करते रहना पड़ता है और कर्म का आधार है- श्रम । यही कारण है कि प्राचीन ही नहीं आधुनिक विश्व साहित्य में भी श्रम की महिमा का बखान किया गया है ।
जीवन में सफलता प्राप्ति के लिए श्रम अनिवार्य है। इसलिए कहा गया है- “परिश्रम ही सफलता की कुंजी है ।” उन्हीं लोगों का जीवन सफल होता है, वे ही लोग अमर हो पाते हैं जो जीवन को परिश्रम की आग में तपाकर उसे सोने की भाँति चमकदार बना लेते हैं । परिश्रमी व्यक्ति सदैव अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर रहता है । उसके संकल्प कभी अधूरे नहीं रहते एवं मार्ग में आने वाली सभी बाधाओं को पार करते हुए वह सफलता के लिए निरन्तर प्रयत्नशील रहता है ।
श्रम शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी आवश्यक है । बिना श्रम के शरीर अकर्मण्य हो जाता है एवं आलस्य घेर लेता है । परिश्रम करने के बाद शरीर थक जाता है, जिससे नींद अच्छी आती है । नींद में परिश्रम के दौरान हुई शारीरिक टूट-फूट की तेजी से मरम्मत होती है । श्रम का अर्थ लोग केवल शारीरिक श्रम समझते हैं, जबकि ऐसा नहीं है । शारीरिक श्रम के साथ-साथ मन-मस्तिष्क के प्रयोग को मानसिक श्रम की संज्ञा दी गई है । शारीरिक श्रम ही नहीं, बल्कि मानसिक श्रम से भी शरीर थक सकता है ।
कारखानों में काम करने वाले मजदूरों को जहाँ शारीरिक श्रम करने की आवश्यकता होती है, वहीं शिक्षक, वैज्ञानिक, डॉक्टर, शोधकर्ता इत्यादि को मानसिक श्रम से अपने उद्देश्यों की प्राप्ति करनी पड़ती है । यदि आदिमानव श्रम नहीं करता, तो आधुनिक मानव को इतनी सुख-शान्ति कहाँ से मिलती। गहरी एवं चौड़ी नदियों के आर-पार आवागमन के लिए मजबूत पुल, लम्बी-लम्बी सड़कें, महानगर की अट्टालिकाएँ बड़े-बड़े कारखाने, बड़े समुद्री पोत, हवाई जहाज, रॉकेट, मानव की अन्तरिक्ष यात्रा इत्यादि सभी मानव के अथक श्रम के ही परिणाम हैं । अपने कठोर श्रम के ही परिणामस्वरूप मानव आज आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, औद्योगिक एवं वैज्ञानिक रूप से अभूतपूर्व प्रगति प्राप्त करने में सक्षम हो सका है ।
प्रायः देखा जाता है कि असफलता मिलने के बाद लोग आगे सफलता के लिए प्रयास करना बन्द कर देते हैं, किन्तु सफलता उन्हें मिलती है, जो निरन्तर प्रयासरत रहते हैं । आलसी एवं अकर्मण्य व्यक्ति जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त नहीं कर पाता । वह निरा पशु के समान अपना जीवन व्यतीत कर इस संसार से विदा हो जाता है । *जीवन गति का नाम है । जहाँ गति है, वहाँ जीवन है, जहाँ जड़ता है, वहाँ मृत्यु अर्थात् जीवित रहते हुए भी यदि कोई बिना श्रम किए निष्क्रिय होकर अपना जीवन व्यतीत करता है, तो उस व्यक्ति को मानव के स्थान पर मानव-रूपी पशु ही कहना बेहतर होगा ।
जिस प्रकार एक स्थान पर ठहरा हुआ जल बहुत समय तक स्वच्छ और निर्मल नहीं रह सकता और वह दुर्गन्धयुक्त हो जाता है, उसी प्रकार श्रम के बिना मनुष्य का जीवन व्यर्थ हो जाता है । अकर्मण्यता शरीर को आलसी एवं बेकार बना देती है, इसलिए जीवन में सफलता के लिए निरन्तर परिश्रम करते रहना चाहिए । वार्जिल ने कहा हैं- ”उद्यम सब पर विजय प्राप्त करता है ।”
प्रयास एवं परिश्रम से ही मनुष्य को किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त होती है । कहते हैं कि शेर को भी मृग का शिकार करना ही पड़ता है । मृग स्वयं शेर के मुख में नहीं आ जाता । निरुद्यमी मनुष्य भाग्यवादी हो जाते हैं और सब कुछ भाग्य के सहारे छोड़कर जीवन के दिन यूँ ही पूरे करते हैं, किन्तु अपने परिश्रम पर भरोसा करने बाले लोग सफलता के लिए अन्तिम क्षण तक प्रयासरत रहते हैं । लक्ष्य तक पहुँचने के लिए लहरों के समान प्रवाहमान रहने की आवश्यकता है । यदि एक स्थान पर खड़े रहकर हम आगे बढ़ने की मात्र कल्पना करते रहें और स्वयं को कष्ट देने से कतराते रहें, तो हम भवसागर को सरलता से पार नहीं कर पाएंगे ।
भवसागर को पार करने के लिए श्रम एवं उद्यम दोनों ही आवश्यक हैं । ईश्वर भी उन्हीं की मदद करते हैं, जो स्वयं अपनी मदद करते हैं । परिश्रम करने से ही मनुष्य को अपरिमित लाभ मिलता है । उसे सुख की तो प्राप्ति होती ही है, साथ ही आत्मिक शान्ति भी मिलती है और यह आत्मिक सुख हृदय को पवित्रता प्रदान करता है । जीवन की उन्नति के लिए मनुष्य हर काम करने के लिए तैयार हो जाता है, किन्तु वास्तविक सफलता प्राप्त करने के लिए उसका हर कदम ईमानदारी से भरा होना चाहिए । बेईमानी से प्राप्त की गई कोई भी सफलता न तो स्थायी होती है और न ही वह आत्मिक शान्ति देती है । राष्ट्र की रक्षा तब ही सम्भव है, जब उसके नागरिक परिश्रमी हों, उद्यमी हों । इस तरह, जीवन में श्रम का अत्यधिक महत्व है । परिश्रमी मनुष्य को धन और यश दोनों ही मिलते हैं तथा मरणोपरान्त भी वह अपने कर्मों के लिए आदरपूर्वक याद किया जाता है ।