विश्व रोगी सुरक्षा दिवस – बीमारी एक ऐसी दशा है जिसका अनुभव शरीर में किया जाता है, पर इसका अस्तित्व होता है मन में : महेश अग्रवाल

भोपाल. आदर्श योग आध्यात्मिक केन्द्र स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल ने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2019 में 17 सितंबर को ‘विश्व रोगी सुरक्षा दिवस’ घोषित किया। इस दिवस का उद्देश्य है रोगी सुरक्षा को लेकर विश्व स्तर पर जागरूकता लाना और स्वास्थ्य सुरक्षा में जनभागीदारी बढ़ाना।  वर्ष 2021 की थीम है ‘सुरक्षित मातृत्व व नवजात ‘देखभाल’ और नारा है- ‘शिशु जन्म के लिए सुरक्षित और सम्माननीय प्रसव के लिए अभी कदम उठाएं। पूरे विश्व के लिए इस साल की थीम बहुत प्रासंगिक है क्योंकि असुरक्षित चिकित्सा सेवा के कारण महिला व बच्चे स्वास्थ्य हानि के बड़े जोखिम से जूझते हैं। सहयोगात्मक वातावरण में कुशल स्वास्थ्यकर्मी सुरक्षित एवं गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा सेवा उपलब्ध करवाकर अजन्मे शिशु, मातृ एवं नवजात शिशु मौतों की संख्या कम कर सकते है। बेहतर गुणवत्ता के लिए होना होगा सजग सुरक्षित स्वास्थ्य सेवाओं के लिए नई शुरुआत का मौका है | योग गुरु अग्रवाल ने इस अवसर पर कहा कि बीमारी एक ऐसी दशा है जिसका अनुभव शरीर में किया जाता है, पर इसका अस्तित्व होता है मन में। योग के अनुसार बीमारी हमारी अन्तश्चेतना में दबी रहती है, चूँकि हम उसके प्रति संवेदनशील नहीं होते, अत: उसकी अनुभूति मन और इन्द्रियों के जरिये शरीर में होती है। सभी रोग, चाहे वे पाचन सम्बन्धी हों या रक्त परिसंचरण सम्बन्धी, असावधानी और स्वास्थ्य के नियमों के प्रति लापरवाही से ही पैदा होते हैं।वर्तमान समय में बीमारियों के निदान में योग की महत्वपूर्ण भूमिका होगी |  हमारे आधुनिक समाज में कई प्रकार के दैनिक और मानसिक रोग व्याप्त हैं। आज जो नई बीमारियाँ पैदा होती जा रही हैं, उनका कारण है- परेशान और चिन्ताग्रस्त मन । कोई दवा इन रोगों का सामना नहीं कर सकती। तुम अगर इसके लिये समाज को कोई नई जीवन पद्धति देना चाहो तो यह कार्य एक वर्ष में होने का नहीं, बीस वर्षों में भी नहीं होगा। तब भी रोगों के वे रंग-ढंग चलते रहेंगे। ये रोग आधुनिक जीवन के महत्त्वपूर्ण अंग बन चुके हैं। इन समस्याओं के समाधान का एक ही रास्ता दिखलाई देता है और वह है योग। शरीर के गंभीर रोगों के लिये सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा है सहानुभूति | हर एक रोगी चिकित्सा अवधि में पूर्ण विश्राम एवं सेवा चाहता है। रोगी सहानुभूति का भूखा रहता है। वह अपना साधारण कार्य भी स्वयं करना नहीं चाहता है |  रोगी को प्रेम से सेवा एवं सहानुभूति का बर्ताव मिले तो उसे स्वस्थ होने में कम समय लगता है। रोगी को हँसमुख रखना, स्वस्थ होने के लिये आशा और विश्वास बढ़ाना उसके क्रोध को प्रसन्नता से सहन करने एवं प्रेम तथा सहानुभूति से सेवा चालू रखने में ही रोगी की भलाई समझना चाहिये।दीर्घकालीन व मूलभूत रोगों को हठयोग द्वारा सफलतापूर्वक ठीक किया जा सकता है। जो बीमारियाँ शुद्ध रूप से शारीरिक किस्म की हैं, उन्हें आसन, प्राणायाम और षट्कर्म द्वारा सीधे दुरुस्त किया जा सकता है। यदि रोग का कारण शरीर में न होकर मन की गहराई में हो तब तो हठयोग के साथ-साथ राज योग का अभ्यास करना होगा। कैंसर जैसे रोग मन में पैदा होते हैं और एक लम्बी तैयारी के बाद  शरीर पर प्रकट होते हैं। चिकित्सा विज्ञान के जनक की उपाधि से पहचाने जाने वाले यूनानी चिकित्सक हिप्पोक्रेट्स का प्रसिद्ध कथन है कि ‘इलाज की पहली अवधारणा होनी चाहिए कि व्यक्ति को कोई नुकसान न पहुंचे।’ हालांकि यह भी सब जानते हैं कि सावधानियां बरतने के बावजूद, स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में कुछ त्रुटियां ऐसी होती हैं जो टाली जा सकती हैं। इस संदर्भ में, रोगी या मरीज सुरक्षा से आशय है कि स्वास्थ्य सेवा किसी भी व्यक्ति को कोई अवांछित के दौरान त नुकसान न  पहुंचे। देखा गया है कि स्वास्थ्य सेवाओं में मरीजों को हानि होने के चलते, जो स्वास्थ्य सेवाओं में गुणवत्ता की कमी की निशानी भी हैं, लोगों का स्वास्थ्य सेवाओं से विश्वास कम होने लगता है। इससे स्वास्थ्य कार्यकर्ता भी हतोत्साहित होते हैं और फिर लोग जरूरत होने भी स्वास्थ्य सेवाओं के इस्तेमाल में देरी करने लगते हैं। सबसे बड़ी बात, एक अनुमान के अनुसार असुरक्षित सेवाओं की वजह से कुल स्वास्थ्य लागत का करीब 15 प्रतिशत बेकार चला जाता है। स्वास्थ्य देखभाल सुरक्षित बनाने के लिए इन मुद्दों की हर स्तर पर बेहतर समझ जरूरी है। दरअसल, स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के साथ अगर आमजन भी इस बात को समझे कि स्वास्थ्य सेवाओं के कौन-से ऐसे घटक हैं, जिनसे स्वास्थ्य हानि को टाला जा सकता है तो वे सरकारों से बेहतर गुणवत्ता वाली अधिक सुरक्षित स्वास्थ्य सेवा की मांग कर सकेंगे। स्वास्थ्य सेवाओं के प्रदाता भी अवसर अपनी व्यस्त दिनचर्या में भूल जाते हैं कि उनका हर छोटे से छोटा कदम स्वास्थ्य सुरक्षा में योगदान साबित हो सकता है। जैसे स्वच्छ और सुरक्षित वातावरण रोगी सुरक्षा का अहम पहलू है। हर रोगी वार्ड के पास और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों  पर हाथ धोने के लिए पानी और साबुन की व्यवस्था संक्रमण से बचाव में कारगर है। उपचार संबंधी सरल व मानक प्रोटोकॉल अपना कर चिकित्सकीय संसाधनों का अनावश्यक दोहन कम किया जा सकता है। हर स्वास्थ्य कार्यकर्ता के प्रशिक्षण में रोगी सुरक्षा का प्रावधान सम्मिलित किया जाना चाहिए। इनके साथ रिपोर्टिंग, विचार-विमर्श और गलतियों से सबक लेने की आदत डालना जरूरी है। भारत में स्वास्थ्य राज्य सरकार का विषय है, इसलिए केन्द्र सरकार के साथ राज्यों को भी रोगी सुरक्षा में सुधार के लिए अतिरिक्त एवं ठोस उपाय करने की जरूरत है। विश्व रोगी सुरक्षा दिवस स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार लाने की नई शुरुआत का एक और मौका है। सभी की भागीदारी और समन्वय से ही यह संभव होगा।

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