विश्व जनसंख्या दिवस : ग्रहस्थ जीवन के साथ स्वास्थ्य और कल्याण के लिए यौगिक अभ्यास जरुरी – योग गुरु महेश अग्रवाल
भोपाल. आदर्श योग आध्यात्मिक केंद्र स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल ने बताया कि व्यक्ति की शारीरिक क्षमता, उसके मन व भावनाएं तथा ऊर्जा के स्तर के अनुरूप योग कार्य करता है। इसे व्यापक रूप से चार वर्गों में विभाजित किया गया है कर्मयोग में हम शरीर का प्रयोग करते हैं; ज्ञानयोग में हम मन का प्रयोग करते हैं, भक्तियोग में हम भावना का प्रयोग करते हैं और क्रियायोग में हम ऊर्जा का प्रयोग करते हैं। योग की जिस भी प्रणाली का हम अभ्यास करते हैं, वह एक दूसरे से आपस में कई स्तरों पर मिली-जुली हुई होती हैं। प्रत्येक व्यक्ति इन चारों योग कारको का एक अद्वितीय सयोंग है | हठयोग शरीर के अन्दर के हॉर्मोनों को इस प्रकार प्रभावित कर सकता है, कि प्रजनन प्रणाली की जैविक प्रक्रियाएँ पूर्णतः बन्द हो जायें। साथ ही शुक्र नाड़ी एवं वज्र नाड़ी के द्वारा जो उत्तेजना स्नायु तन्त्र के माध्यम से मन तक पहुँचायी जाती है उसे भी पूर्णतः अवरुद्ध किया जा सकता है। किन्तु योग दमन का मार्ग नहीं, बल्कि इसके प्रयोग से मनुष्य शरीर एवं मन के बीच सामंजस्य स्थापित कर आत्म साक्षात्कार करता है । योग उदात्तीकरण पर बल देने के साथ दाम्पत्य सम्बन्ध की अनिवार्यता को भी स्वीकार करता है, क्योंकि यह विकास की प्रक्रिया के लिए संस्कारों के स्वस्थ विलोपन का एक साधन है।
योग गुरु अग्रवाल ने बताया कि ग्रहस्थ जीवन के साथ स्वास्थ्य और कल्याण के लिए यौगिक अभ्यास जरुरी
योग साधनाओं में यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि, बंध एवं मुद्रा, षट्कर्म, युक्ताहार, मंत्र-जप, युक्तकर्म आदि साधनाओं का अभ्यास सबसे अधिक किया जाता है। यम प्रतिरोधक एवं नियम अनुपालनीय हैं। इन्हें योग अभ्यासों के लिए पूर्व अपेक्षित एवं अनिवार्य माना गया है। आसन का अभ्यास शरीर एवं मन में स्थायित्व लाने में सक्षम हैं, कुर्यात् तदासनम् स्थैर्यम् अर्थात् आसन का अभ्यास महत्त्वपूर्ण समय सीमा तक मनोदैहिक विधि पूर्वक अलग-अलग करने से स्वयं के अस्तित्व के प्रति दैहिक स्थिति एवं स्थिर जागरुकता बनाए रखने की योग्यता प्रदान करता है। प्राणायाम श्वास-प्रश्वास प्रक्रिया का सुव्यवस्थित एवं नियमित अभ्यास है। यह श्वसन प्रक्रिया के प्रति जागरुकता उत्पन्न करने एवं उसके पश्चात् मन के प्रति सजगता उत्पन्न करने तथा मन पर नियंत्रण स्थापित करने में सहायता करता है। अभ्यास की प्रारंभिक अवस्था में श्वास-प्रश्वास प्रक्रिया को सजगता पूर्वक किया जाता है। बाद में यह घटना नियमित रूप से नियंत्रित एवं निर्देशित प्रक्रिया के माध्यम से नियमित हो जाती है। प्राणायाम का अभ्यास नासिका, मुख एवं शरीर के अन्य छिद्रों तथा शरीर के आंतरिक एवं बाहरी मार्गों तक जागरुकता बढ़ाता है।
प्राणायाम अभ्यास के दौरान नियमित, नियंत्रित और निरीक्षित प्रक्रिया द्वारा श्वास को शरीर के अन्दर लेना पूरक कहलाता है, नियमित नियंत्रित और निरीक्षित प्रक्रिया द्वारा श्वास को शरीर के अन्दर रोकने की अवस्था कुंभक तथा नियमित, नियंत्रित और निरीक्षित प्रक्रिया द्वारा श्वास को शरीर के बाहर छोड़ना रेचक कहलाता है। प्रत्याहार के अभ्यास से व्यक्ति अपनी इंद्रियों के माध्यम से सांसारिक विषय का त्याग कर अपने मन तथा चैतन्य केन्द्र के एकीकरण का प्रयास करता है। धारणा का अभ्यास मनोयोग के व्यापक आधार क्षेत्र के एकीकरण का प्रयास करता है, यह एकीकरण बाद में ध्यान में परिवर्तित हो जाता है। इसी ध्यान में चिंतन (शरीर एवं मन के भीतर केंद्रित ध्यान) एवं स्थिर रहने पर कुछ समय पश्चात् यह समाधि की अवस्था में परिवर्तित हो जाता है। बंध एवं मुद्रा ऐसे योग अभ्यास हैं, जो प्राणायाम से सम्बन्धित हैं। ये उच्च यौगिक अभ्यास के प्रसिद्ध रूप माने जाते हैं, जो मुख्य रूप से नियंत्रित श्वसन के साथ विशेष शारीरिक बंधों एवं विभिन्न मुद्राओं के द्वारा किए जाते हैं।
यही अभ्यास आगे चलकर मन पर नियंत्रण स्थापित करता है और उच्चतर यौगिक सिद्धियों के लिए मार्ग प्रशस्त करता है। हालांकि, ध्यान का अभ्यास, जो व्यक्ति को आत्मबोध एवं श्रेष्ठता की ओर ले जाता है, योग साधना पद्धति का सार माना गया है। षट्कर्म-शरीर एवं मन शोधन का सुव्यवस्थित एवं नियमित अभ्यास है जो शरीर एकत्रित हुए विषैले पदार्थों को हटाने में सहायता प्रदान करता है। युक्ताहार स्वस्थ जीवन के लिए पर्याप्त सुव्यवस्थित एवं नियमित भोजन का समर्थन करता है। मंत्र जाप-मंत्रों का चिकित्सकीय पद्धति से उच्चारण ही जाप अथवा दैवीय नाम कहलाता है। मंत्र जाप सकारात्मक मानसिक ऊर्जा की सृष्टि करता है जो धीरे-धीरे तनाव से बाहर आने में सहायता करता है। युक्तकर्म-स्वस्थ जीवन के लिए सम्यक (उचित) कर्म की प्रेरणा देता है। विश्व जनसंख्या दिवस 11 जुलाई को दुनिया भर के लोगों को बढ़ती आबादी के प्रति, परिवार नियोजन, लैंगिक समानता, मानवाधिकार, गरीबी, मातृ स्वास्थ्य, और स्वास्थ्य के बारे में जागरूक किया जाता है | पृथ्वी पर जनसंख्या में निरंतर वृद्धि पर्यावरण को नुकसान पहुंचा सकती है.