November 25, 2024

बाल मधुमेह में योग : बच्चों में मधुमेह की निरंतर वृद्धि आधुनिक जीवनशैली में असंतुलन के कारण है – योग गुरु महेश अग्रवाल

भोपाल.आदर्श योग आध्यात्मिक केंद्र  स्वर्ण जयंती पार्क कोलार रोड़ भोपाल के संचालक योग गुरु महेश अग्रवाल ने  बताया कि यदि बच्चे आश्रम में एक-आध महीना व्यतीत करते हैं तो आसन, प्राणायाम, षट्कर्म और शिथिलीकरण के व्यापक अभ्यास अक्सर बाल मधुमेह पर प्रभाव डालते है। योग गुरु अग्रवाल ने बाल मधुमेह के बारे में बताया कि कुछ वर्ष पूर्व तक बच्चों में मधुमेह होना असामान्य था। मधुमेह को सामान्यतः वृद्धावस्था का रोग माना जाता था। पचास-साठ की उम्र में यह उन लोगों में प्रकट होने वाला माना जाता था जिनके भोजन में चीनी और माँड़युक्त पदार्थों की अधिकता होती थी, जिनका वजन बहुत अधिक होता था और जो कभी व्यायाम नहीं करते थे। पैन्क्रियास की कमजोरी को योगोपचार तथा नियंत्रित एवं नियमित भोजन के माध्यम से नियंत्रित और पुनः सक्रिय किया जा सकता है। शरीर के टिश्यू अपने ही इंसुलीन के प्रति ग्रहणशील बनते हैं, पैन्क्रियाज तथा पाचक ग्रंथियों का कायाकल्प होता है और शरीर का वजन भी उपयुक्त बनता है। मधुमेह के रोगी यौगिक अभ्यासों के माध्यम से अपने रक्त में चीनी के स्तर को नियंत्रित करना सीख लेते हैं।

जो भी हो, समय बदल गया है और मधुमेह के स्वरूप में भी परिवर्तन आ रहा है। डॉक्टरों का कहना है कि बच्चों में मधुमेह बढ़ता जा रहा है। बच्चों में मधुमेह की निरंतर वृद्धि आधुनिक जीवनशैली में असंतुलन के कारण है। ढलती उम्र में जो मधुमेह धीरे-धीरे पनपता है उसे यौगिक अभ्यासों के द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है, लेकिन मधुमेह का नया स्वरूप वृद्धावस्था में होने वाले मधुमेह से कहीं अधिक गंभीर है। चिकित्सा विज्ञान के अनुसार बाल मधुमेह में इन्सुलीन की सुई लेने की आवश्यकता होती है। बच्चों को स्वयं यह सुई लेना सिखा दिया जाता है जो उन्हें प्रतिदिन दो-तीन बार लेना होता है। कभी-कभी उन्हें 50 से 75 इकाई दवा लेनी पड़ती है। दुर्भाग्यवश इसका बुरा प्रभाव भी पड़ता है। यह इंसुलीन पशुओं के पैन्क्रियाज से निकाला जाता है। पशुओं से निकाले गये ये प्रोटीन बाह्य तत्त्व या ऐंटीजेन जैसा प्रभाव डालते हैं जिसके प्रति शरीर का सुरक्षातंत्र प्रतिक्रिया करता है। रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने के लिए अन्य दवाओं का भी प्रयोग किया जाता है लेकिन वे हृदय को हानि पहुँचाती हैं।

बाल मधुमेह के कारण – बाल मधुमेह को समझने के लिए पहले यह देखना होगा कि बच्चा मधुमेह से पीड़ित कैसे हो जाता है। कोई बच्चा दुर्बल या अविकसित पैन्क्रियास या यकृत के साथ उत्पन्न हो सकता है। इसका अर्थ यह नहीं है कि उसने इस रोग को अपने माता-पिता से ग्रहण किया है। ऐसा हो सकता है कि गर्भ में उस महत्त्वपूर्ण सामग्री का अभाव रहा हो जो पाचक ग्रंथियों का निर्माण करती हैं। यह भी हो सकता है कि कोई विष, रसायन या दवा माता के रक्त में घुलकर में प्लैसेन्टा के अवरोधक को पार कर गर्भ के संपर्क में आयी हो। यह हमारी आज की यांत्रिक जीवनशैली की जटिलता है।
आजकल आधुनिक भोजन कृत्रिम तरीकों से तैयार और परिरक्षित किये जाते हैं तथा पहले से कहीं अधिक दवाओं और रसायनों का सेवन किया जाता है। यहाँ तक कि जिस वायु को हम श्वास से ग्रहण करते हैं और जिस पानी को पीते हैं वह भी प्राकृतिक और शुद्ध नहीं रह गया है। पहले हम जल के माध्यम से संक्रामक रोगों के फैलने से डरते थे लेकिन आज तो विषैले रसायन हमारे स्वास्थ्य एवं सुरक्षा के लिए बड़े संकट उत्पन्न करते हैं; हमारे बच्चों को इनसे सबसे अधिक खतरा है।
यद्यपि प्लैसेन्टा माता के शरीर से आने वाले विषाक्त पदार्थों और संक्रामक रोगों को गर्भ के विकास की अवधि में अंदर प्रवेश नहीं करने देता है, फिर भी अनेक कृत्रिम दवाएँ एवं वातावरण को दूषित करने वाले औद्योगिक रसायन प्लैसेन्टा के अवरोधक को पार कर अंदर प्रवेश कर सकते हैं। गर्भ में विकसित हो रहे यकृत एवं अग्नाशय इन हानिकारक तत्त्वों से अत्यधिक प्रभावित होते हैं। यही कारण है कि कुछ बच्चे जन्म के समय पीलिया रोग से ग्रस्त रहते हैं। या तो यकृत, अग्नाशय और पाचन तंत्र अविकसित हैं या यकृत पर उस दवा या विष का प्रभाव हो गया है जो माता ने लिया होगा।
शैशव या बाल्यावस्था में बच्चे को उपयुक्त भोजन नहीं मिल पाना भी बाल मधुमेह का एक मुख्य कारण होता है। इससे अग्नाशय समय से पहले ही कमजोर हो जाता है। इस संदर्भ में अनेक माता-पिता को कुछ गलत धारणा रहती है। वे अपने बच्चों को पशुओं की तरह शीघ्र बढ़ता हुआ देखना चाहते हैं। पूर्ण परिपक्वता की आयु का संबंध संपूर्ण जीवन-अवधि से होता है। एक मानव का पूर्ण विकास बीस से पच्चीस वर्षों में होता है, जबकि एक गाय दो या तीन वर्षों में पूरी तरह परिपक्व हो जाती है।
जब हम बच्चों को बहुत अधिक दूध, मछली, मांस और अंडे, माँड़युक्त भोजन तथा चीनी खिलाते हैं तो पाचन, स्वीकरण और मेटाबोलिज्म करने वाले कोमल अंगों पर बहत अधिक दबाव पड़ता है और वे समय से पहले ही कमजोर हो जाते हैं। बच्चों के लिए सर्वोत्तम भोजन माँ का दूध होता है। यह हर दृष्टि से पूर्ण भोजन होता है। माताओं को अपना दूध छुड़ाने के लिए व्याकुल नहीं रहना चाहिए। कुछ समाजों में माताएँ बच्चों को दो-तीन वर्षों तक दूध पिलाती रहती हैं। इसलिए बच्चों को धीरे-धीरे माँ का दूध छुड़ाना चाहिए और फल, सब्जी तथा पके हुए अन्न आरंभ करने चाहिए। शैशव एवं बाल्यावस्था में विकसित हो रहे अग्नाशय की क्षमता को बढ़ाने के लिए यह आवश्यक है कि बच्चों को अधिक मात्रा में माँड़ तथा चीनी युक्त संसाधित भोज्य पदार्थ नहीं दिये जाएँ।
भावनात्मक बाधाएँ – बाल मधुमेह की समस्या हर बच्चे में भिन्न होती है। इसलिए कुल मिला कर एक जैसी बात कहना सही नहीं है। फिर भी हम पाते हैं कि मधुमेह से पीड़ित अनेक बच्चों का बचपन असुरक्षित रहा है। किसी-न-किसी कारण से शैशवकाल से ही उन बच्चों को अपने भावनात्मक वातावरण से पर्याप्त परिपोषण, पालन और प्रोत्साहन नहीं मिल पाया। स्त्रावी, अंतःस्रावी तथा पाचक ग्रंथियों की क्रमिक त्रुटि का एक महत्त्वपूर्ण कारण यह भी है। निस्संदेह भय, आशंका और क्रोध का पाचन प्रक्रिया पर प्रभाव पड़ता है। यदि आप खाने जा रहे हैं और उसी समय आप क्रोधित हो जाते हैं तो अविलंब आपकी भूख समाप्त हो जाती है। लारग्रंथी से लार का स्राव रुक जाता है और मुँह सूख जाता है। उसी प्रकार आमाशय, यकृत एवं अग्नाशय की ग्रंथियाँ भी काम करना बंद कर देती हैं और पाचन की क्षमता नष्ट हो जाती है। यदि बच्चे की भावनाओं पर निरंतर भय और आशंका की छाया पड़ती रहेगी तो उसकी पाचन प्रक्रिया स्थाई रूप से क्षतिग्रस्त हो जायेगी।

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