आंकड़ों की बाजीगरी के अलावा कुछ नया नहीं है बजट में : मोटवानी
रायगढ़. शनिवार को प्रस्तुत केंद्रीय बजट पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए छत्तीसगढ़ चेंबर ऑफ कॉमर्स रायगढ़ के महामंत्री हीरा मोटवानी ने कहा कि इस बजट ने नया कुछ तो दिया नहीं बल्कि ऐसा भ्रम पैदा कर दिया है कि लोग इसी में उलझ कर रह जाएंगे। उन्होंने कहा कि एक मध्यमवर्गीय परिवार बजट पर टकटकी लगाए इंतजार करता है कि जो वस्तुएं वह इस्तेमाल करता है वह कुछ सस्ती होंगी तथा विभिन्न टैक्स में कुछ राहत मिलेगी जिससे उसकी सालाना आमदनी में से कुछ हिस्सा बचेगा जिसे वह अपने अधूरे सपनों को पूरा करने में लगाएगा। परंतु ऐसा हुआ नहीं आयकर के दो स्लैब बना दिए गए और नीचे लिख दिया गया शर्तें लागू अब यदि इन शर्तों को पूरा किया जाता है तो एक बड़ा तबका जितना आयकर पहले देता था उससे कुछ न कुछ ज्यादा ही देगा क्यों कि देश में वर्षों से बचत को बढ़ावा देने के लिए आयकर की छूट को विभिन्न योजनाओं के साथ जोड़कर लागू किया जाता था जिससे न केवल बचत को प्रोत्साहन मिलता था बल्कि परिवार को आड़े वक्त में यह बचत काम आती थी। परंतु नए स्लैब ने इस धारणा को तोड़ने का काम कर दिया है।उल्लेखनीय है कि वर्तमान में केवल 13 प्रतिशत लोग ही इंश्योर्ड यानी बीमित है और लगभग 7 प्रतिशत लोग ही स्वेच्छा से बचत करते हैं शेष बचत केवल टैक्स छूट के नाम पर ही आती थी अतः ऐसे लोग जो बचत पर विश्वास नहीं रखते उनके लिए नया स्लैब फायदेमंद है और जो लोग बचत पर विश्वास रखते हैं और बरसों से प्लानिंग करते हुए चल रहे हैं उनके लिए पुराना स्लैब ही फायदेमंद रहेगा। उन्होंने कहा कि नई कंपनियों को प्रोत्साहन देने के लिए कारपोरेट टैक्स को कम करना और लघु उद्योगों को कर्ज देने की नई स्कीम की घोषणा तथा विवादास्पद टैक्स प्रकरणों में ब्याज में पेनल्टी की छूट स्वागत योग्य है परंतु आईडीबीआई और एलआईसी की हिस्सेदारी बेचना एक गलत निर्णय हो सकता है और इसे हम दूरगामी परिणाम के रूप में इन दोनों ही कंपनियों को निजी हाथों में जाने की शुरुआत कह सकते हैं। उन्होंने कहा कि वर्तमान में बैंक जमा पर बीमा के द्वारा 100000 की गारंटी को 500000 करने का स्वागत करते हैं। स्वास्थ्य कृषि बिजली पानी सड़क आवागमन के साधन और नागरिकों के मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करना तो हर सरकार का कर्तव्य है इसमें कुछ भी नया नहीं है। इसी बजट में महंगाई को कम करने की उम्मीद को भी खत्म कर दिया है सरकार ने स्वयं माना है कि जीडीपी की दर 6 प्रतिशत से ऊपर नहीं हो पाएगी अतः यह कहा जा सकता है कि आने वाला साल उसी तरह से बीतेगा जैसा कि हम पिछले दो-तीन सालों से देख रहे हैं ग्लोबल मंदी की छाया में आंकड़ों की बाजीगरी के अलावा कुछ उम्मीद करना भी बेमानी था। मंदी को दूर करने के कोई उपाय नहीं दिखे परंतु एक वर्ष के बाद हम फिर से उम्मीद कर सकते हैं कि जब अगला बजट आएगा तब शायद व्यापार जगत और आम नागरिकों की परेशानी का सुखद अंत होगा।