आपको जरूर जाननी चाहिए विडाल टेस्ट से जुड़ी ये जरूरी बातें
यहां जानें, क्या होता है विडाल टेस्ट और कैसे की जाती है टायफाइड की जांच साथ ही यह भी कि ऐंटिजन और ऐंटिबॉडीज होते क्या हैं…
विडाल टेस्ट एक ऐसी जांच है, जिसकी सबसे अधिक जरूरत बरसात के मौसम में ही पड़ती है। क्योंकि टायफाइड (Typhoid Fever) जैसा रोग इस मौसम में ही अधिक फैलता है और विडाल टेस्ट को इसीलिए किया जाता है ताकि इस बात का पता लगाया जा सके कि रोगी को टायफाइड है या नहीं…
क्यों होता है टायफाइफाइड?
-सबसे पहले आपको यह बात पता होनी चाहिए कि आखिर टायफाइड होता कैसे हैं और क्यों यह रोग बरसात के मौसम में अधिक फैलता है। तो जान लीजिए कि टायफाइड दूषित भोजन और दूषित पानी के कारण फैलता है।
-बारिश के मौसम में हवा में मौजूद नमी पके हुए भोजन को बहुत जल्दी दूषित करने का काम करती है। इससे भोजन और पानी में साल्मोनेला टायफी नामक पैथोजेन्स विकसित हो जाते हैं। यदि कोई स्वस्थ व्यक्ति ऐसे दूषित पानी या भोजन का सेवन कर लेता है तो साल्मोनेला उस व्यक्ति की आंत को संक्रमित कर देता है।
टायफाइड के लक्षण
-आंत में संक्रमण फैलाने के बाद साल्मोनेला शरीर के अन्य हिस्सों पर बुरा असर डालता है। आंत में संक्रमण के चलते सबसे पहले तेज बुखार, पेट दर्द, उल्टी या लूज मोशन जैसी दिक्कतें हो जाती हैं। वहीं कुछ लोगों को टायफाइड के दौरान कब्ज की समस्या हो जाती है।
टायफाइड का प्रभाव
-टायफाइड के दौरान आमतौर पर रोगी के शरीर का तापमान 102 के आस-पास रहता है। बुखार बढ़ने पर यह 104 तक भी पहुंच जाता है। इस कारण व्यक्ति शरीर में अकड़न, दर्द और कमजोरी से कराहने लगता है।
-आमतौर पर टायफाइड 4 से 6 सप्ताह में पूरी तरह ठीक हो जाता है। लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि इस रोग के लक्षणों को पहचानकर जल्दी से जल्दी इलाज कराना जरूरी होता है। इलाज में लापरवाही की स्थिति में रोगी की जान भी जा सकती है।
कैसे किया जाता है विडाल टेस्ट?
-एक सदी से भी अधिक समय से टायफाइड की जांच के लिए विडाल टेस्ट का उपयोग किया जाता रहा है। हालांकि अब और भी आधुनिक टेस्ट आ चुके हैं लेकिन फिर भी बहुत सारी जगहों में विडाल टेस्ट का उपयोग होता है।
-विडाल टेस्ट का नाम इस जांच को विकसित करनेवाले वैज्ञानिक जॉर्जेज फर्नैंड विडाल नाम पर रखा गया है। इसलिए इसे विडाल टेस्ट कहते हैं। इस परीक्षण के लिए सबसे पहले संक्रमित रोगी के खून का नमूना (Blood Sample) लिया जाता है। फिर इस ब्लड से सीरम निकालकर अलग किया जाता है।
-इस सीरम में ऐंटिजन और ऐंटिबॉडीज की जांच की जाती है। ऐंटिजन वायरस के वो सबसे हानिकारक भाग होते हैं, जो हमारे शरीर की कोशिकाओं को संक्रमित करते हैं। हमारा शरीर ऐंटिजन के खिलाफ ऐंटिबॉडीज बनाता है और इंफेक्शन को फैलने से रोकता है। साथ ही ऐंटिजन को खत्म करने का काम भी करता है।
ऐसे होती है टायफाइड की जांच
-यदि ब्लड में ऐंटिजन-एच और ऐंटिजन-ओ होते हैं तो व्यक्ति को रिपोर्ट को पॉजिटिव माना जाता है। इसके साथ ही सीरम में ऐंटिबॉडीज की जांच की जाती है और ऐंटिबॉडीज का स्तर नापा जाता है। इन सभी की जांच के बात इस बात को पुख्ता किया जाता है कि रोगी का टेस्ट नेगेटिव है या पॉजिटिव है। यानी रोगी को टायफाइड है या नहीं है।