आम किसानों से उपवास रखने की अपील के साथ पूरे प्रदेश में उपवास रखेंगे किसान सभा के सदस्य

रायपुर. अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति और 500 से अधिक किसान संगठनों से मिलकर बने साझे मोर्चे संयुक्त किसान मोर्चा के देशव्यापी आह्वान पर कल 23 दिसम्बर को छत्तीसगढ़ किसान सभा और आदिवासी एकता महासभा के सदस्य किसान विरोधी कानूनों के खिलाफ संघर्ष को तेज करने और शहीद किसानों की स्मृति और उनके सम्मान में दिन भर का उपवास करेंगे। किसान सभा ने पूरे प्रदेश के किसानों से भी अपील की है कि रोजमर्रा के काम करते हुए इन किसान विरोधी कानूनों की खिलाफत में कल सुबह 8 बजे से शाम 5 बजे तक उपवास करें और अन्न ग्रहण न करें। छत्तीसगढ़ किसान सभा का एक जत्था आज पलवल में दिल्ली की सीमा पर पहुंच चुका है और वहां जारी क्रमिक भूख हड़ताल में कल वहां शामिल भी होगा।
आज यहां जारी एक बयान में छत्तीसगढ़ किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते और महासचिव ऋषि गुप्ता ने कहा है कि पूरे देश के किसानों को आंदोलन के अलग-अलग रूपों से जोड़ने की कोशिश की जा रही है, ताकि एक देशव्यापी दबाव बनाकर किसान विरोधी कानूनों को वापस लेने के लिए मोदी सरकार को बाध्य किया जा सके। उन्होंने कहा कि इस किसान आंदोलन का दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है और आम जनता के विभिन्न तबकों का उन्हें समर्थन मिल रहा है। यह आंदोलन न केवल आज़ादी के बाद का सबसे बड़ा ऐतिहासिक आंदोलन बन रहा है, बल्कि मानव इतिहास का भी ऐसा बड़ा आंदोलन बन रहा है, जिसमें करोड़ों लोग प्रत्यक्ष भागीदारी कर रहे हैं। इन सीमाओं पर एक लाख से ज्यादा ट्रैक्टर-ट्रॉलियां जमा हो चुकी है, जिसे किसानों ने अपना रैन-बसेरा बनाकर रखा हुआ है।
इस देशव्यापी किसान आंदोलन के खिलाफ मोदी सरकार द्वारा किये जा रहे दुष्प्रचार और किसान संगठनों की एकता को तोड़ने की साजिश की तीखी निंदा करते हुए किसान सभा नेताओं ने कहा है कि यह आम किसानों की मांगों के लिए, आम जनता का, आम जनता द्वारा संचालित आंदोलन है। इस आंदोलन में 35 से ज्यादा किसानों ने अभी तक शहादत दी है और सरकार द्वारा कानून वापस लिए जाने तक यह शांतिपूर्ण आंदोलन और शहादतें जारी रहेगी। किसान सभा नेताओं ने कहा कि बिना राय-मशविरा किये गैर-लोकतांत्रिक ढंग से पारित किये गए कानून की आम जनता के लिए कोई वैधता नहीं है और वह उसे मानने के लिए बाध्य नहीं है।
छत्तीसगढ़ किसान सभा ने प्रदेश के आम किसानों से अपील की है कि कल एक समय का भोजन त्यागकर मोदी सरकार की किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद करें। यह संघर्ष देश की अर्थव्यवस्था को कारपोरेटीकरण से बचाने का और खाद्यान्न आत्मनिर्भरता और सुरक्षा को बचाने का देशभक्तिपूर्ण संघर्ष है, जबकि संघी गिरोह इस देश को साम्राज्यवाद के हाथों बेचना चाहता है। इस देश के नागरिकों के लिए भारतीय राष्ट्रवाद और संघी गिरोह के हिन्दू राष्ट्रवाद में यही बुनियादी अंतर है। हमारे देश के किसान केवल अपनी खेती-किसानी बचाने की लड़ाई नहीं लड़ रहे हैं, वे इस देश की स्वतंत्रता और अस्मिता की रक्षा के लिए भी लड़ रहे हैं।

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