कोचिंग संचालकों को नहीं मिल रही अनुमति, लाखों का करोबार हुआ प्रभावित


बिलासपुर/अनिश गंधर्व. लॉकडाउन के बाद से कोचिंग संचालकों को अभी तक अनुमति नहीं मिली है। इसी तरह स्कूल कालेजों को भी नहीं खोला गया है। करोड़ों का कारोबार करने वाले कोचिंग संचालक माथा पीट रहे हैं। मोटी कमाई का स्वाद चख चुके कोचिंग संचालकों के पास किराया देने तक को पैसे नहीं बचे हैं, वहीं अधिकांश लोग अपना बोरिया बिस्तर समेट चुके हैं। शहर में कोचिंग संचालकों का कारोबार तेजी से बढ़ा हुआ था। पीएससी प्री. मेंस रेलवे, बैकिंग आदि का अध्ययन कराने के नाम पर जमकर वसूली का खेल चलता रहा। कोरोना काल में पूरे साल भर आम जन जीवन के साथ साथ कारोबार में भी गहरा असर पड़ा है। लोगों का रोजगार छीन गया काम बंद हो गया।

प्रदेश में बिलासपुर को कोचिंग का हब माना जाता है, हजारो युवक-युवतियां सरकारी नौकरी पाने में कामयाबी हासिल की है। भाजपा शासन काल में लाखों रुपए कमाने वाले कोचिंग संचालकों को कांग्रेस शासन काल में वैकेंसी का फायदा नहीं मिल सका। वहीं कारोना काल शुरू होने से सब कुछ तबाह सा हो गया है। कोचिंग संचालकों की माली हालत बेहद खराब हो चुकी है। किराये का भवन लेकर कोचिंग चलाने वाले किराया तक नहीं दे सके। कुछ संस्थानों तो अपना दुकान बंद ही कर लिया है। बिना फीस लिये बात तक करने को तैयार नहीं होने वाले कोचिंग संचालक अपना नोट्स तक नहीं बेच पा रहे हैं।

पीएससी प्री-मेंस परीक्षा के समय बुक का प्रकाशन कराकर लाखों रुपए एकत्र करने वालों का हाल-बेहाल है। कोचिंग सेंटरों के बंद होने के कारण पढ़ाने वाले शिक्षक भी हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। वहीं कर्मचारी भी सड़क पर आ गये है। सरकारी नौकरी छोड़कर कोचिंग संचालित करने वाले अब अपनी किश्मत पर रो रहे हैं। एक नहीं तीन ब्रांच खोलकर अध्ययन के नाम पर मोटी राशि वसूलने वालों ही दयनीय स्थिति का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। जनवरी माह में कोचिंग खुलने का आस लिये बैठे संचालकों को अभी भी हरि झंडी नहीं मिल सकी है। इसी तरह टिफिन सेंटर और हॉस्टल संचालकों का भी भारी नुकसान हुआ है। परीक्षा की तैयारी करने वाले छात्र-छात्राएं हास्टल व किराये के कमरों रहकर अपना गुजारा करते थे वहीं भोजना भी टिफिन सेंटर के माध्यम से ही करते थे। सरकारी पदों की भर्ती नहीं होना और कोचिंग संचालकों को अनुमति नहीं मिलने के कारण हॉस्टल संचालकों के साथ साथ टिफिन का घर पहुंच सेवा देने वाले भी आर्थिक तंगी से दौर से गुजर रहे हैं।

नेतागिरी भी नहीं चली
शहर व पूरे प्रदेश में पटेल ट्यूटोरियल्स का डंका बजाने वाले डीसी पटेल ने राजनीति में छलांग लगा दी किंतु वे सफल नहीं हो सके। बताया जा रहा है कि पटेल ट्यूटोरियल्स के संचालक डीसी पटेल भारतीय जनता पार्टी से विधानसभा चुनाव मैदान में उतरकर लाखों रुपए फूंक दिये। लेकिन जनता के बीच अपनी पकड़ नहीं बना पाये और चुनाव हार गए। रहे-सहे फिर से कोचिंग सेंटर की दुकानदारी पर कोरोना काल ने पानी फेर दिया है। रोजाना अखबारों में विज्ञापन प्रकाशित कराकर शहर में अपनी छाप छोडऩे वाले डीसी पटेल का कहीं कोई अता-पता नहीं है।

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!