चावल का अधिक सेवन हो सकता है हृदय रोग का कारण
भारत में हृदय रोग के बढ़ते केसेज की एक वजह हो सकता है चावल का अधिक सेवन। क्योंकि चावल टॉक्सिन्स और आर्सेनिक को अधिक मात्रा में सोख लेता है। यहां जानें पूरी बात…
हमारे देश में गेहूं के बाद जिस अनाज का सबसे अधिक उपयोग किया जाता है, वह है सफेद चावल। अलग-अलग तरीकों से अलग-अलग भोजन और पकवान बनाने में चावल का उपयोग लगभग पूरे भारतवर्ष में किया जाता है। पूर्वी और उत्तरी भारत और हिंदी भाषी राज्यों में तो चावल डेली डायट का हिस्सा है। यानी चावल के बिना दोपहर का खाना यहां पूरा ही नहीं होता है। यह पुराने समय की जरूरत के हिसाब से ठीक था लेकिन आज की जीवनशैली में यह नुकसानदायक साबित हो सकता है…
क्यों हो रही है इस तरह की चर्चा?
-चावल सदियों से हमारे भोजन का हिस्सा है और सेहत के लिए बहुत लाभकारी भी होता है। फिर ऐसे में यह चर्चा क्यों होने लगी कि नियमित रूप से चावल का सेवन हमारी सेहत को नुकसान पहुंचा सकता है?
-ऐसा दरअसल इसलिए हो रहा है क्योंकि हमारे देश में तेजी से बढ़ते शुगर और हार्ट के मरीजों के दैनिक जीवन पर किए गए अध्ययन में यह बात सामने आई है कि अधिक मात्रा में चावल का सेवन करने और शारीरिक रूप से बहुत ऐक्टिव ना रहने के चलते चावल इनके शरीर पर बुरा असर डालते हैं।
अधिक चावल खाने के नुकसान
-आपके मन में यह सवाल जरूर आ सकता है कि हमारी पुरानी पीढ़ियां तो लंबे समय से चावल खाती आ रही हैं, लेकिन फिर भी वे हमसे अधिक लंबा जीवन जीती थीं और स्वस्थ रहती थीं। ऐसे में हमें क्यों दिक्कत हो रही है? तो इसका जवाब है, हमारी जीवनशैली से शारीरिक श्रम का गायब हो जाना। पहले ज्यादातर लोग खेती करते थे।
-हर दिन कई किलोमीटर पैदल चला करते थे क्योंकि आने-जाने के इतने साधन नहीं थे। इसलिए उनका शरीर और पाचनतंत्र उतने अच्छे तरीके से काम करता था। जबकि उनकी तुलना में हम आज बहुत अधिक निष्क्रिय हो चुके हैं। इसके साथ ही चावलों में आर्सेनिक बहुत अधिक मात्रा में पाया जाता है, जो कि हृदय संबंधी रोगों के बढ़ने की वजह बन रहा है।
बढ़ते हृदय रोगियों की एक संभावित वजह
-मैनचेस्टर और सलफोर्ड विश्वविद्यालय के शोधार्थियों ने अपने शोध में यह पाया है कि जिन जगहों पर किसान चावलों की खेती करते हैं, उन जगहों की मिट्टी में आर्सेनिक अधिक मात्रा में होता है। इसके साथ ही यदि उन क्षेत्रों में बाढ़ अधिक आती है तो चावलों में आर्सेनिक की मात्रा और अधिक बढ़ जाती है। यही आर्सेनिक अन्य टॉक्सिन्स के साथ मिलकर हमारे शरीर में कार्डियोवस्कुलर डिजीज की वजह बनता है।