जिस तरह से चाहो बजाओ इस देश में आदमी नहीं हम झुनझुनें हैं, साहेब मजदूर जो हैं!!

विषम से विषम परिस्थितियों में भी मजबूती से खड़े रहने वाला यह वर्ग अपनें जीवन के सबसे कठिन दौर से गुजर रहा है “कोरोना वायरस ” अमीर और गरीब मे फ़र्क न करें लेकिन व्यवस्था एवं इनके परिवाहन पर केन्द्र सरकार की नीति जरूर फर्क करतीं दिखाई दे रही हैं जीवन संघर्ष का दूसरा नाम है मजबूत भी आज मजबुर दिखाईं दे रहा है। सड़कों या रेल की पटरियों मे कैसे भी ज़िन्द नहीं सही मर के ही सही पहुंचे अपने घर द्वार इसी उद्देश्य को लेकर हजारों सैकडों किलोमीटर की दूरी तय करने सर पर गृहस्थी का समान छोटे बच्चों महिलाओं बुजुर्गो के साथ इस आशा एवं विश्वास के साथ चलें चलों चलें चलों मंजिल मील ही जावेगी एक दिंन जिंदा ना सही मर तो पहुंचेंगे अपने घर द्वार।
“भूख मौत से बड़ी है सुबह खाओ शाम के फिर खड़ी है”
रेल की पटरियों पर बिखरे मजदूरों के शव एवं बिखरी रोटियां इस बात की गवाह हैं साहेब!!
मज़दूरों के लिए ट्रेन चलानी थी मालिक, आपने तो मज़दूरों पर ट्रेन चला दी!गरीब ट्रैन से कट के मर जाते है
अमीर तो पुष्पक विमान से घर वापस लाएं जा रहें हैं!
 संकट के इस काल में मजदूर को मजदूर की हैसियत से मत देखो वह भी इंसान हैं इंसानियत की नजरों से देखो साहेब श्रद्धांजलि नमन् श्रमशील शर्मसार हैं हम!
महेश दुबे टाटा महाराज 
सचिव प्रदेश कांग्रेस कमेटी छत्तीसगढ़
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