तेज गेंदबाजों से छीने विकेट, स्पिनरों को मिल रहा ज्यादा लाभ


नई दिल्ली. क्रिकेट में सबसे ज्यादा विवादास्पद कोई निर्णय होता है तो वो बल्लेबाज को एलबीडब्ल्यू आउट दिए जाने का होता है. शायद ही कोई बल्लेबाज कभी इस निर्णय से संतुष्ट नजर आता होगा. पाकिस्तान पर तो सालों तक इसी तरीके से विपक्षी टीम को अपने अंपायरों के जरिए आउट कराकर टेस्ट मैच जीतने का आरोप लगता रहा और बाद में न्यूट्रल अंपायरिंग चालू करनी पड़ी. लेकिन न्यूट्रल अंपायरिंग से भी एलबीडब्ल्यू यानी पगबाधा दिए जाने को लेकर होने वाले विवाद थमे नहीं थे. इसके चलते ही डीआरएस यानी डिसिजन रिव्यू सिस्टम को लागू करना पड़ा, जिसमें थर्ड अंपायर टीवी रिप्ले देखकर गेंद विकेट पर लगती या नहीं इसका निर्णय करता है और फिर बल्लेबाज के आउट होने या नहीं होने की बात तय होती है. लेकिन क्या आपको पता है कि इस नई व्यवस्था ने स्पिनरों और तेज गेंदबाजों के लिए अलग-अलग असर दिखाया है.

2008 में चालू हुई थी डीआरएस की व्यवस्था
अंपायर के दिए एलबीडब्ल्यू आउट निर्णय की समीक्षा करने का सिलसिला सबसे पहली बार 2008 में चालू हुआ था. टीम इंडिया और श्रीलंका के बीच कोलंबो के एसएससी स्टेडियम में 23 जुलाई 2008 से चालू हुए टेस्ट मैच में पहली बार अंपायरों ने इस नई व्यवस्था के तहत निर्णय दिए थे.

तेज गेंदबाजों के विकेट घटे और स्पिनरों के विकेट बढ़ाए
डीआरएस की व्यवस्था जहां तेज गेंदबाजों के लिए घाटे का सौदा साबित हुई है, वहीं स्पिन गेंदबाजों को इसके चलते और ज्यादा विकेट मिलना चालू हो गया. क्रिकेट वेबसाइट ईएसपीएनक्रिकइंफो के मुताबिक, डीआरएस लागू होने से पहले के 10 साल में जहां तेज गेंदबाजों को मिले कुल विकेट में एलबीडब्ल्यू की हिस्सेदारी 17.76 प्रतिशत की थी तो बाद के 12 साल में ये हिस्सेदारी घटकर महज 14.78 प्रतिशत ही रह गई है. इसके उलट स्पिन गेंदबाजों के विकेटों में एलबीडब्ल्यू के जरिए मिलने वाले विकेटों का कोटा 17.48 प्रतिशत से बढ़कर 21.34 प्रतिशत पर पहुंच गया. इस हिसाब से देखा जाए तो तेज गेंदबाजों को इस तरीके से मिलने वाले करीब 3 प्रतिशत विकेट डीआरएस की भेंट चढ़ गए, जबकि स्पिनरों के लिए करीब 4 फीसदी ज्यादा एलबीडब्ल्यू की लॉटरी खुल गई.

ओवरऑल घटा है एलबीडब्ल्यू आउट का सिलसिला
हालांकि डीआरएस के कारण बल्लेबाजों के एलबीडब्ल्यू आउट होने के ओवरऑल आंकड़े में कमी आई है. जहां डीआरएस से पहले के 10 साल में गिरे कुल 13608 विकेट में 2405 बल्लेबाज यानि 17.67 प्रतिशत बल्लेबाज एलबीडब्ल्यू के शिकार बने थे, वहीं बाद के 12 साल में गिरे कुल 15 710 विकेट में से 2717 यानी 17.29 प्रतिशत ही ऐसे आउट हुए. पिछले 5 साल की बात करें तो यह आंकड़ा और घटकर 16.96 प्रतिशत ही रह गया है यानी डीआरएस की बदौलत बल्लेबाजों को अंपायरों के गलत एलबीडब्ल्यू से बचने का मौका मिला है.

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