निजी चिकित्सालयों में नहीं हो रहा है नर्सिंग एक्ट का पालन
बिलासपुर/अनिश गंधर्व. जिले में संचालित ऐसे सैकड़ों निजी अस्पताल हैं जहां नर्सिंग ऐक्ट का पालन नहीं किया जा रहा है। जिसकी शिकायत स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों तक पहुंचती जरूर है लेकिन फिर से मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है। सरकारी अस्पताल पहुंचने वाले मरीजों को बेहतर उपचार और सरकारी योजना का लाभ बताकर दलाल बरगला रहे हैं। गरीब तबके मरीजों को निजी अस्पताल में ठूंसने के बाद उन्हें भारी भरकम बिल भी थमाया जा रहा है।
जिले में स्वास्थ्य व्यवस्था लचर होने के कारण झोला छाप डॉक्टर व निजी चिकित्सा संस्थानों की बाढ़ आई गई है। एक ओर राज्य शासन सरकारी अस्पतालों में उपचार व्यवस्था बेहतर बनाने तरह-तरह उपाय कर रही है वहीं महंगे उपकरण भी लगावाये जा रहे हैं इसके बाद भी निजी अस्पतालों में जाना मरीजों की मजबूरी बनी हुई है। कई चिकित्सा संस्थानों के द्वारा नर्सिंग एक्ट पालन नहीं किया जाता। लिफ्ट, पार्किंग व मेडिकल वेस्ट तक उपाय नहीं है। ऐसा भी नहीं है कि स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को इनकी जानकारी नहीं है बल्कि वे जानबूझकर ऐसे चिकित्सा संस्थानों को बढ़ावा दे रहे हैं। कहीं न कहीं से कमीशन लेने के फेर में मरीजों के जेबों में डाका ही जा रहा है।
आलम यह है कि सरकारी अस्पतालों में काम करने वाले कर्मचारी भोले-भाले मरीजों को निजी अस्पतालों में भेजने की व्यवस्था भी खुलेआम करते देखे जा रहे हैं। पीडि़तों के लिए भले ही एंबुलेंस व्यवस्था न हो लेकिन निजी चिकित्सा संस्थानों में मरीजों को भेजने हर समय एंबुलेंस वाहन की व्यवस्था रहती है। रसूखदारों के संरक्षण में संचालित हो रहे निजी अस्पतालों में मरीजों के मरने के बाद भी परिजनों से पैसे लेने का खेल चल रहा है। पैसे नहीं होने पर लाश को भी परिजनों को नहीं सौंपा जाता, मरीज की मौत घंटो पहले हो चुकी होती है और परिजनों को उपचार जारी है स्थिति गंभीर है कहकर परिजनों को गुमराह करने की कई शिकायतें दर्ज हैं इसके बाद भी दोषी निजी अस्पताल संचालकों पर कार्रवाई नहीं होने से उनके हौसले बुलंद हैं। जनहित में राज्य के स्वास्थ्य मंत्री को चिकित्सा के नाम पर चल रहे गोरख धंधे पर लगाम लगाकर ठोस कार्रवाई की आवश्यकता है।
आयुष्मान व स्मार्ट कार्ड के नाम पर देते हैं झांसा
निजी अस्पतालों के दलाल सिम्स व जिला चिकित्सालय में डटे रहे हैं वहीं सरकारी कर्मचारी भी मरीजों को बेहतर उपचार कराने के लिए निजी अस्पतालों में जाने की हिदायत देते हैं। सरकारी खर्च में सब कुछ फ्री का हवाला देकर मरीजों को ले जाने के बाद आयुष्मान व स्मार्ट कार्ड दर्ज करने में आनाकानी करते हैं और अंत में सर्वर डाउन कहकर मरीजों से तत्काल उपचार के नाम पर पैसे की मांग करते हैं। मरता क्या नहीं करता के चक्कर में भोले-भाले मरीज कर्ज लेकर पैसा चुकाने मजबूर हो जाते हैं। यह खेल वर्षों से शहर व आस-पास संचालित होने वाले अस्पतालों में चल रहा है। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी कर्मचारी अपनी मर्जी से यहां नहीं जाते शिकायत करने पर भी कार्रवाई नहीं होती।