न्यूजीलैंड में खतरे में है बचपन? यूनिसेफ की रिपोर्ट में चौंकाने वाले खुलासे


नई दिल्ली. न्यूजीलैंड (New Zealand) का दुनिया का पहला देश है जिसे कोरोना वायरस (coronavirus) के संक्रमण से मुक्त होने का खिताब मिला. वहां जब सौ दिन तक एक भी कोरोना केस नहीं मिला तो प्रधानमंत्री जैसिंडा अर्डर्न (Jacinda Ardern) की नीतियों और जनता के संयम की दुनिया भर में तारीफ हुई थी. लेकिन यूनीसेफ की हालिया रिपोर्ट में जो चौंकाने वाला खुलासा हुआ है वो न्यूजीलैंड सरकार के तमाम दावों की पोल खोल रहा है.

युवाओं की हालत ठीक नहीं
करीब 50 लाख आबादी वाले न्यूजीलैंड के लोगों की खुशहाली और अनुशासन की मिसाल दी जाती थी. लेकिन यूनिसेफ की रिपोर्ट में इस देश के युवाओं की शारीरिक और मानसिक सेहत सही नहीं होने का खुलासा हुआ है. बचपन में मोटापे और युवाओं की आत्महत्या की दर को लेकर न्यूजीलैंड फिसड्डी साबित हुआ है.

इनोसेंटी की रिपोर्ट के मुताबिक 41 विकसित देशों की सूची में इस मामले में न्यूजीलैंड 35 वें स्थान पर रहा. आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) और यूरोपियन यूनियन (EU) के देशों की तुलना में न्यूजीलैंड की इस स्थित पर यूनिसेफ NZ की कार्यकारी निदेशक विवियन माइडाबोर्न  (Vivien Maidaborn) ने चिंता जताई है. रिपोर्ट के मुताबिक न्यूजीलैंड में प्रति एक लाख युवाओं में आत्महत्या की दर 14.9 फीसदी है.

न्यूजीलैंड में खतरे में है बचपन ?
न्यूजीलैंड में बच्चों की शिक्षा को लेकर भी गंभीर सवाल उठाए गए हैं. रिपोर्ट के अनुसार 15 साल से कम के 64 फीसदी बच्चे ही गणित और भाषा की सामान्य समझ रखते हैं. ओईसीडी देशों के बीच हुए इस अध्यन के मुताबिक यहां हर तीन में से एक बच्चा या तो मोटापे का शिकार है या फिर ज्यादा वजन की समस्या से जूझ रहा है. एक इंटरव्यू में कार्यकारी निदेशक माइदाबोर्न ने न्यूजीलैंड के ओवर आल रिपोर्ट कार्ड को फेल करार दिया.

खस्ता हालत पर पीएम की सफाई
रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद न्यूजीलैंड की पीएम जैसिंडा अर्डर्न ने कहा कि पहले की  सरकार के दौरान इन विषयों की अनदेखी की गई थी. वहीं और भी कई क्षेत्रों पर ध्यान नहीं दिया गया इसलिए ऐसे नतीजों की एक वजह ये भी हो सकती है. पिछले साल दिसंबर में न्यूजीलैंड के बाल आयुक्त (Children’s Commissioner) Andrew Becroft ने कहा था कि सरकार बच्चों की हालत में सुधार करने में नाकाम रही है. बाल आयोग की इस रिपोर्ट में छह प्रांतों के करीब डेढ़ लाख बच्चों के परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होने का जिक्र था. इसी वजह से इन बच्चों के पास शिक्षा, स्वास्थ्य , भोजन और कपड़ो जैसी मूलभूत सुविधाओं तक की कमी होने का खुलासा किया गया था.

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