भगवान विश्वकर्मा जी भी नहीं रोक सकतें है इन क्षेत्रों में पानी के भराव को, फिर इंसान की क्या बकत जो रोक ले इस भरावों को : महेश दुबे


बिलासपुर. आज से लगभग तीस साल पहले इन क्षेत्रों में खेती-किसानी हुआ करतीं थी. तेजी से बदलते हालात जमीनों के मूल्यों पर हुईं बेतहासा वृद्धि का परिणाम एकड़ो पर बिकने वाले खेत-खलिहान फुटो पर नपने लगे विकसित होते इस नगर को अव्यवस्थित तरीके से शहर बनने का परिणाम है इन क्षेत्रों मे पानी भरावों. विकसित होते बिलासपुर का दुर्भाग्य ही रहा है अव्यवस्थित, मनमार्जी का विकास, प्रकृति अपना स्वभाव नहीं बदलती है. बारिशों का पानी सदैव खेत-खलिहानों से गुजर कर नदी-नालों में पहुंचते है. प्रकृति की ऐ अपनी व्यवस्था है जो निरंतर आदिकाल से चलीं आ रही है. रोंढा तो हम पैदा कर रहें हैं उनके रास्तों पर अव्यवस्थित मकान-दुकान, कालोनियों को बनकर खेत-खलिहानों में कांक्रीट के जंगलों को खड़े करने के पहले बारिशों के पानी निकासी की समुचित व्यवस्था करनी थी. जो नहीं कि गाई घरों के पानी को निकलने नालियों का निर्माण करके छुट्टी पाली. प्रकृति के बहाव का ध्यान ही नहीं रहा परिणाम आप सबके समाने है. आज भी वही व्यवस्था एवं व्यवहार से हम कार्य कर रहे हैं खाली भूमियों पर बन रहे मकान थोड़ा ऊंचा कर बना लिया जाता है. पानी भी बाजू में खाली भूमि पर छोड़ दिया जाता है. लगभग ऐसी स्थिति आसपास क्षेत्रों में बने रहे मकान एवं कॉलोनियों में देख सकते हैं. शहर के प्रमुख विद्यानगर विनोबा नगर, पुराना बस स्टैंड, गुरु विहार, व्यापार विहार सहित तेलीपारा, कश्यप कॉलोनी में निरंतर वर्षा ऋतु उत्पन्न होने वाली इस विकट समस्या से सीख नहीं लेकर उसी ढर्रे में में चल रहे हैं. नगर निगम एवं जिला प्रशासन को चाहिए कि नए बसने वाले कालोनियों एवं आसपास के क्षेत्रों में बन रहे मकानों पर अपनी कड़ी नजर रखें. अन्यथा ऐसी स्थिति अन्य जगहों में भी देखने को मिलेगी प्राकृतिक रूप से बारिश के बगैर है पानी निकासी की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए विकास के नाम पर इसके रोकने का परिणाम का दुष्प्रभाव ऐसा ही देखने को मिलेगा.

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